जतीन्द्र नाथ दास एक ऐसे भारतीय क्रांतिकारी थे, जिन्होंने राजनीतिक कैदियों के लिए समानता की मांग उठाई थी। वो 63 दिन की भूख हड़ताल करते हुए लाहौर जेल में शहीद हो गए थे। भारतीय स्वतंत्रता सेनानी जतीन्द्र नाथ की 27 अक्टूबर को 119वीं जयंती है। उन्हें यतीन्द्र नाथ दास और ‘जतीन दा’ के नाम से भी जाना जाता है। इस खास अवसर पर जानिए भारतीय क्रांतिकारी जतीन्द्र नाथ दास के जीवन के बारे में कुछ अनसुने बातें…
क्रांतिकारी जतीन्द्र नाथ दास का जन्म 27 अक्टूबर, 1904 को पश्चिम बंगाल के कलकत्ता में हुआ था। जतीन बचपन से ही क्रांतिकारी विचारों वाले थे। जतीन पढ़ाई में होशियार थे। इन्होंने मैट्रिक और इंटर की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। इस दौरान ही वह बंगाल के क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति में शामिल हो गए थे। जतीन्द्र वर्ष 1921 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए ‘असहयोग आंदोलन’ में शामिल हो गए। तब इनकी उम्र महज 17 साल थी। इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 6 महीने की कैद भी हुईं।
लेकिन, जब गांधीजी ने ‘चौरी-चौरा हत्याकांड’ के बाद आंदोलन वापस ले लिया तो उन्हें काफी निराशा हुईं। इन्होंने वर्ष 1925 में कलकत्ता के बंगबासी कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल कीं। इस दौरान इनकी मुलाकात बंगाल के प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल से हुईं। इन्हे राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने की वजह से गिरफ्तार किया गया और मैमनसिंह सेंट्रल जेल में कैद कर दिया गया। इस बीच ही जतीन्द्र क्रांतिकारी संगठन ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के सदस्य बन गए। शचीन्द्र ने इन्हें बम बनाना सिखाया था।
धीरे-धीरे जतीन्द्र नाथ दास अनेक क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे। इस दौरान यतीन्द्र ने बम बनाने की विधि भी सीख ली थी। वर्ष 1925 में यतीन्द्रनाथ को दक्षिणेश्वर बम कांड और काकोरी कांड के सिलसिले में गिरफ़्तार कर लिया गया था। लेकिन इनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं होने के वजह से उन पर मुकदमा नहीं चल सका। इन्हें नजरबंद कर दिया गया। जतीन इस दौरान जेल में रह रहे राजनीतिक बंदियों से मिले। जेल में इन कैदियों के साथ दुर्व्यवहार होता था।
उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए विरोध स्वरूप भूख हड़ताल शुरू कर दी। 21 दिन के उपवास के दौरान उनका स्वास्थ्य बिगड़ता देख जेल अधीक्षक ने माफी मांगी और उन्होंने रिहा कर दिया। बाद में जतीन ने देश के अनेक हिस्सों में क्रांतिकारियों से संपर्क किया। वर्ष 1928 में उनकी भेंट सरदार भगतसिंह से हुई और उनके अनुरोध पर वह बम बनाने के लिए आगरा आए। इनके द्वारा बनाए गए बम का इस्तेमाल भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, 1929 को केन्द्रीय असेम्बली पर फेंक कर किया था।
जतीन दा को 14 जून, 1929 को क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के कारण गिरफ्तार किया गया और लाहौर षड़यंत्र केस में मुकदमा चला। इन्होंने जेल में क्रांतिकारियों के साथ राजबंदियों के समान व्यवहार न होने के कारण 13 जुलाई, 1929 से अनशन आरम्भ कर दिया। इस अनशन में यतीन्द्र नाथ दास भी शामिल हो गए। अनशन कर रहे क्रांतिकारियों का कहना था कि एक बार शुरू हुए अनशन को तब तक नहीं तोड़ेंगे, जब तक कि हम अपनी मांगें नहीं मनवा लें।
जतीन्द्र नाथ दास को अनशन को तोड़ने के लिए जेल अधिकारियों ने बलपूर्वक इनकी नाक में नली डालकर लोगों के पेट में दूध डालना शुरू कर दिया। यतीन्द्र को अनशन करने का पूर्व अनुभव था, क्योंकि वह पहले 21 दिन अनशन कर चुके थे। इसलिए उनके साथ यह युक्ति काम नहीं आईं। लेकिन उनके साथ जबरदस्ती के दौरान नाक से डाली नली फेफड़ों में चली गईं। उनकी घुटती सांस की परवाह किए बिना उस डॉक्टर ने एक सेर दूध उनके फेफड़ों में भर दिया। इससे उन्हें निमोनिया हो गया।
इस तरह जतीन्द्र नाथ दास का अनशन के 63वें दिन 13 सितम्बर, 1929 को देहांत हो गया। जब उनका भाई किरण चंद्र दास शव लाहौर से कलकत्ता ले जा रहे थे, तब कानपुर रेलवे स्टेशन पर जवाहर लाल नेहरू और गणेशशंकर विद्यार्थी के नेत्तृत्व में लाखों लोग श्रद्धांजलि देने के लिए इंतजार कर रहे थे। सभी स्टेशनों पर लोगों ने शहीद जतीन को श्रद्धांजलि अर्पित कीं। हावड़ा रेलवे स्टेशन पर सुभाष चंद्र बोस के साथ 50 हजार लोगों ने शहीद को श्रद्धांजलि दीं। इनके कोलकाता में शवदाह के समय 7 लाख लोगों ने अंतिम संस्कार में भाग लिया।
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