संस्कृत व हिन्दी साहित्य को एक नई कहानी में गढ़ने वाले महान कवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। आचार्य जी ने जीवन पर्यंत साहित्य को एक नया रूप देने के लिए काम किया। साहित्यिक प्रवृत्तियों की एक अलग धारा का स्वरूप जानकी वल्लभ की रचनाशीलता में दिखाई देता है। उनका काव्य संसार बहुत ही विविध और व्यापक है। प्रारंभ में उन्होंने संस्कृत में कविताएं लिखीं। फिर महाकवि निराला की प्रेरणा से हिंदी में भी लिखना शुरू कर दिया था। महाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री की आज 7 अप्रैल को 12वीं पुण्यतिथि है। इस अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे कुछ अनसुनी बातें…
महज 12 साल की छोटी उम्र में हो गई थी शादी
आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री का जन्म 5 फरवरी, 1916 को बिहार के औरंगाबाद जिले के दक्षिण-पश्चिम में गया के पास बसे छोटे से गांव मैगरा में हुआ था। शास्त्री जी अपनी मैट्रिक की शिक्षा बनारस से वर्ष 1935 में पूरी की। इसके बाद वर्ष 1938 में उन्होंने शास्त्राचार्य व इंटर की पढ़ाई पास की। आचार्य जानकी वल्लभ जी की शादी महज 12 साल की कम उम्र में हो गई थी। हिंदी कविता के क्षेत्र में बहुत कम कवि ऐसे रहे हैं, जिनको बड़ा सम्मान मिला हो और जानकी उन्हीं कवियों में से एक माने जाते हैं। आचार्य जी की रचनाओं का संसार अथाह माना जाता है।
महाकवि निराला से काफी प्रभावित थे आचार्य जानकी
अपने जीवन के शुरुआती दिनों से ही आचार्य जानकी जी हिंदी के महाकवि ‘निराला’ से काफी प्रभावित थे और उन्हीं को अपनी प्रेरणा का स्त्रोत मानकर कविताएं लिखना शुरू किया। वर्ष 1930 में आई आचार्य जी की कविताएं ‘संस्कृतम्’, ‘सुप्रभातम्’ और ‘सूर्योदय’ को लोगों ने काफी पसंद किया। वर्ष 1935 में महाप्राण निराला से मिलने के बाद ही आचार्य ने हिन्दी में कविताएं लिखना शुरू कर दिया। इसके अलावा ‘मेघगीत’, ‘अवन्तिका’, ‘श्यामासंगीत’, ‘राधा’, ‘इरावती’, ‘एक किरण: सौ झाइयां’ जैसी उनकी कुछ रचनाएं हैं, जिन्हें कविता पढ़ने वालों द्वारा खूब पसंद किया जाता रहा है।
जब आचार्य जानकी को ठीक नहीं लगी सरकर की ये बात
भारत सरकार की तरफ से महाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री को 25 जनवरी, 2010 को देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री अवार्ड’ देने की घोषणा हुई। शास्त्री जी ने इस पर कहा कि चलो देर से ही सही सरकार जागी तो सही। इस दौरान भारत सरकार ने औपचारिकता के तौर पर आचार्य जानकी से उनका बायोडाटा मांगा। शास्त्री जी को यह बात बिलकुल भी ठीक नहीं लगी। उनका कहना था कि जिन लोगों को मेरे काम के बारे में जानकारी ही नहीं, वो मेरे काम को कैसे सम्मान दे सकते हैं। शास्त्री जी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को चिठ्ठी लिखकर ‘पद्मश्री अवॉर्ड’ लेने से मना कर दिया। 7 अप्रैल, 2011 को बिहार के मुजफ्फरपुर में उनका निधन हो गया।
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