“अपने हाथों को पैरों के नीचे से लेकर दोनों कानों को पकड़ो और उठना-बैठना शुरू करो”, ये लाइन अपने स्कूल के दिनों में हर किसी ने सुनी होगी, जब क्लास में कोई गलती होने पर मास्टर जी सजा देते थे। कुछ स्टूडेंट्स के लिए यह सबसे खतरनाक सजा होती थी, यही कारण है कि इसे गैरकानूनी माना जाता था।
लेकिन हम आपको जो बताने जा रहे हैं वो आपको स्कूल के खौफ भरे दिनों में जरूर ले जा सकता है। हरियाणा के भिवानी जिले में एक सरकारी स्कूल ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत सिट-अप्स को अनिवार्य करने का फैसला किया है।
स्कूल ने सिट-अप यानि उठक बैठक को अपने करिकुलम में शामिल करते हुए इसे “सुपर ब्रेन योगा” कहा है। स्कूल का यह भी कहना है कि यह वैज्ञानिक रूप से साबित हो चुका है कि सिट-अप से दिमाग की कार्यक्षमता बढ़ती है। इन सभी दावों के बीच हम आपको बताते हैं कि क्या होता है सुपर ब्रेन योगा और क्या वाकई यह फायदेमंद है।
सुपर ब्रेन योगा क्या है?
सिट-अप्स के लिए सुपर ब्रेन योगा शब्द का जिक्र फिलीपींस के एक आध्यात्मिक गुरु चोआ कोक सुई द्वारा लिखी गई एक किताब में मिलता है।
चोआ कोक सुई की वेबसाइट के मुताबिक, चोआ कोक सुई ने 45 देशों में योग के लिए ऐसे केंद्र बनाए हैं। इसके अलावा वह एक प्रोफेशन से केमिकल इंजीनियर हैं।
क्या सिट-अप्स वाकई फायदेमंद है?
चोआ कोक सुई के मुताबिक, सुपर ब्रेन योगा या सिट-अप “शरीर की सभी मुख्य एनर्जी का उपयोग करके दिमाग की शक्ति बढ़ाने वाली एक पुरानी भारतीय तकनीक है”।
उनकी किताब में यह दावा किया गया है कि यह दिमाग को ऊर्जावान बनाने और इसकी समझने की क्षमता को बढ़ाने वाली वैज्ञानिक तकनीक है। इसके अलावा इससे हमारी याद्दाशत भी तेज होती है।
वहीं किताब में यह भी दावा किया गया है इस तकनीक से “डिस्लेक्सिया, एडीएचडी, लर्निंग में आने वाली कठिनाइयाँ, अल्जाइमर और कमजोर मेमोरी वाले बच्चों की मदद भी करती है।
हालांकि, कुछ ऐसी भी घटनाएं सामने आई हैं जिसमें सिट-अप्स करना बच्चों के लिए बहुत खतरनाक साबित हुआ है। ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें छात्रों को बैठने के लिए कहा गया जिसके बाद थकावट के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
2012 में, हैदराबाद में क्लास 10 के एक छात्र ने स्कूल में 100 सिट-अप किए जिसके बाद उसे बुखार आया और इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।
2017 में एक अन्य मामले में, महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में क्लास 8 की एक छात्रा से होमवर्क पूरा नहीं कर पाने के कारण स्कूल में उससे 500 सिट-अप करने के लिए कहा जिसके बाद वो बीमार हो गई।
कानून क्या कहता है?
बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून 2009 और भारतीय दंड संहिता यानि आईपीसी की धारा 88 के तहत स्कूलों में शारीरिक सजा बैन है। लेकिन संबंधित कानून केवल तभी लागू होते हैं जब कोई भी फिजिकल एक्टिविटी को “सजा” के रूप में दिया जाता है।
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