चंद लोगों की महत्त्वाकांक्षा के चलते देश विभाजन का जिन्न समय—समय पर कुरेदा जाता रहा है, आखिर क्यों? किसने की सबसे पहले मांग और किसने की अलग धर्म के आधार पर भारत के विभाजन की बात? यह प्रश्न शांत होने का नाम ही नहीं लेता, आखिर क्यों?
ये तो आरोप—प्रत्यारोप हैं जिस पर अब बातें करने से कोई फायदा नहीं है। हम आजाद भारत के लोग हैं और हमें अपने विकास की बात करनी चाहिए। हमने सरकार चुनी है इसलिए उसके निर्णयों का सम्मान करना चाहिए और यदि कोई असहमत है तो निश्चित विरोध करना चाहिए। शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन करने का अधिकार है, यूं देश की सम्पत्ति को नष्ट करना, खुद का ही नुकसान है। हम 130 करोड़ भारतीय हैं। आज के समय में मीडिया हर घटना पर तेज नजर रखती है। छोटी से बात अंतर्राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों तक पहुंचती है।
ऐसा ही एक प्रश्न जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) में कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने शुक्रवार को छेड़ दिया। उन्होंने बताया कि सबसे पहले दो राष्ट्र की बात सावरकर ने की थी। वे चाहते थे कि हिंदू और मुस्लिम के दो देश बने। यह प्रस्ताव मुस्लिम लीग के पाकिस्तान रिजॉल्यूशन पास होने से तीन साल पहले हिंदू महासभा में आया था। दीन दयाल उपाध्याय को मोदी अपना मेंटर मानते हैं। यह उन्होंने भी स्वीकार किया था कि मुस्लिमों के लिए अलग देश होना चाहिए।
कांग्रेस सांसद का तर्क सही हो सकता है, अगर कोई अन्य पार्टी ये कहे कि इस बंटवारे को स्वीकार किसने किया। या फिर क्या अब आप चाहते हैं कि तीन देश एक हो जाए?
जब ऐसा संभव नहीं तो फिर इन बातों को करने से क्या फायदा। जब देश के प्रबुद्ध जन और जनप्रतिनिधि ही इस तरह की बात करेंगे तो सामान्य जनता पर इन बातों को नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा क्या?
हां, यह सत्य है लोगों को दूसरे के लाख कमियां नजर आती है, लेकिन खुद की एक भी नहीं। तभी तो आज देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियां लोगों को भ्रमित करने में लगी हुई है और जनता इनके पीछे लग्गू बनकर खुद का नुकसान कर रही है।
हम भारतीय हैं और हमें चाहिए कि हमें आजादी दिलाने वालों का सम्मान करना चाहिए। फिर चाहे वह कांग्रेस से जुड़े व्यक्ति हो या फिर उस समय की किसी अन्य राजनीतिक पार्टी या क्रांतिकारी। इन सबका एक ही लक्ष्य था भारत को आजाद कराना। फिर चाहे तो आप आज की राजनीतिक पार्टियों को माने या नहीं।
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