भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 की पहली तस्वीरें दुनिया के सामने जारी की हैं। चंद्रयान-2 को 9 से 16 जुलाई के बीच लॉन्च किया जाएगा। इससे पहले इसरो ने चंद्रयान-1 का सफल प्रक्षेपण 22 अक्टूबर, 2008 को किया था।
चंद्रयान-2 में प्रयुक्त पेलोड और सभी हिस्से पूरी तरह स्वदेशी है, जबकि चंद्रयान-1 के ऑर्बिटर में 3 यूरोप और 2 अमेरिका के पेलोड्स थे। इसरो ने एक बार फिर 11 साल बाद चंद्रमा की सतह को खंगालने के लिए तैयारी कर ली है। इसरो ने उम्मीद जताई है कि चंद्रयान-2 चांद पर 6 सितंबर को दक्षिणी ध्रुव के पास उतरेगा।
तीन हिस्से में बंटा है चंद्रयान-2
चंद्रयान-2 ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) नामक तीन हिस्सों में बंटा हैं। इस योजना की लागत 800 करोड़ रुपए है। 9 से 16 जुलाई के बीच चंद्रमा की पृथ्वी से दूरी 384400 किलोमीटर रहेगी। यदि चंद्रयान—2 सफल हुआ तो अमेरिका, रूस, चीन के बाद भारत चांद पर रोवर उतारने वाला चौथा देश बन जाएगा।
चंद्रयान-2 में प्रयुक्त ऑर्बिटर चन्द्रमा से 100 किमी ऊपर चक्कर लगायेगा एवं लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान से प्राप्त जानकारी को इसरो सेंटर पर भेजने का कार्य करेगा। इसमें 8 पेलोड हैं। साथ ही इसरो से भेजे गए कमांड को लैंडर और रोवर तक पहुंचाएगा। इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने वर्ष 2015 में बनाया और इसरो को सौंपा था।
जब रूस ने लैंडर देने से मना कर दिया तो इसरो ने ही अपना स्वदेशी लैंडर बनाया। इसका नामकरण इसरो के संस्थापक और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। इसमें चार पेलोड हैं। यह 15 दिनों तक वैज्ञानिक प्रयोगों का कार्य करेगा। इसकी शुरुआती डिजाइन इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर, अहमदाबाद द्वारा बनाया गया। बाद में इसका वर्तमान डिजाइन बेंगलुरु के यूआरएससी ने विकसित किया।
इस रोबोट का वजन 27 किलो है और पूरे मिशन की जिम्मदारी इसके कंधों पर है। इसमें लगे दो पेलोड की मदद से यह विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग करेगा। फिर चांद से प्राप्त जानकारी को विक्रम लैंडर पर भेजेगा। लैंडर वहां से ऑर्बिटर को डाटा भेजेगा। फिर ऑर्बिटर उसे इसरो सेंटर पर भेजेगा।
चंद्रयान-2 मिशन में चौदह भारतीय पेलोड को लेकर जाएगा जो विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे और चांद की तस्वीरें भेजेंगे। साथ ही चंद्रयान-2 लूनरक्राफ्ट नासा के एक पैसिव एक्सपेरिमेंटल इंस्ट्रूमेंट को चांद पर ले जाएगा। अमेरिकी एजेंसी इस मॉड्यूल के जरिए धरती और चांद की दूरी को नापने का कार्य करेगी।
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