हलचल

राहुल गांधी का गरीबी मिटाने का वादा : कितनी हकीकत, कितना फसाना ?

लोकसभा चुनावों से पहले जहां हर राजनीतिक पार्टी जनता के सामने अपने वादों का पिटारा खोलती है उसी सिलसिले में आज कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश की आवाम से गरीबी को जड़ से मिटा देने का वादा किया।

राहुल गांधी ने मास्टर स्ट्रोक चलाते हुए देश से वादा किया अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो देश के 20 फीसदी गरीब लोगों को हर साल 72 हजार रुपये दिए जाएंगे जिसका फायदा सीधे 25 करोड़ लोगों को मिलेगा। इस स्कीम का नाम न्यूनतम आमदानी गारंटी दिया गया है जिसके तहत देश की सबसे बड़ी समस्या को दूर करने का हौंसला कांग्रेस ने दिखाया है।

अब राहुल गांधी का ये वादा कितना मास्टर स्ट्रोक साबित होता है या महज चुनावी जुमला बन रह जाता है ये जमीनी हकीकत जानने के बाद ही पता चलेगा लेकिन फिलहाल हमें इस वादे में क्या तकनीकी पेचीदगी है वो समझनी जरूरी है।

यूनिवर्सल बेसिक इनकम होती क्या है ?

अगर हमारे समाज की एक आदर्श स्थिति की बात करें तो हर इंसान को जीवन-यापन करने के लिए एक न्यूनतम इनकम का प्रावधान जरूरी है। यूनिवर्सल बेसिक इनकम भी एक तरह की फिक्स इनकम है जो सभी नागरिकों (गरीब, अमीर, नौकरीपेशा, बेरोजगार) को सरकार देती है। इस इनकम को पाने के लिए किसी तरह की कोई योग्यता की शर्त नहीं होती है।

कहां से आया यह आईडिया?

सबसे पहले इस बारे में सुझाव लंदन यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर गाय स्टैंडिंग ने दिया था जिसके बाद मध्य प्रदेश में एक पंचायत ने अपने लेवल पर इस स्कीम को लागू किया जिसके परिणाम बेहद शानदार मिले थे।

स्कीम की जरूरत क्या है ?

चुनावों के समय में पार्टियां कई ऐसी स्कीम लेकर आती है जो चुनावों के बाद हवा हो जाती है ऐसे में हमें यह समझना भी जरूरी होगा कि आज के हालातों को देखते हुए इस स्कीम की क्या जरूरत है। नीचे कुछ पॉइंट्स में हम आपको यह समझाने की कोशिश करेंगे।

– न्यूनतम आमदनी गारंटी से गरीबी खत्म करने के अलावा लोगों के बीच आर्थिक स्तर पर फैली असमानता दूर की जा सकती है।

– लोगों के जीवनस्तर में सुधार होने से लोग अपनी बुनियादी जरूरतों को आसानी से पूरा कर सकते हैं।

– किसानों की आत्महत्या और बेरोजगारी दर में गिरावट इस योजना के बाद देखी जा सकती है।

– वहीं ग्लोबल हंगर इंडेक्स और स्वास्थ्य सुविधाओं के मसले पर देखें तो भी यूबीआई की जरूरत महसूस की जा सकती है।

न्यूनतम आमदनी गारंटी देने का क्या कोई आधार होगा?

राहुल गांधी ने फिलहाल अपने एक्सपर्ट से सलाह मशविरा कर इस योजना का ऐलान किया है, अभी इसे अमलीजामा पहनाया जाना बाकी है। ऐसे में इसके जरिए कितनी इनकम मिलेगी और किसे मिलेगी इस पर फिलहाल कुछ तय नहीं किया गया है। वैसे ब्राजील, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, जर्मनी, आयरलैंड जैसे देशों में यह योजना लागू है।

इकोनॉमिक सर्वे इस योजना की वकालत क्यों करता है?

आर्थिक सर्वेक्षण का सारा डेटा जिस इकोनॉमिक सर्वे में आता है उसमें भी गरीबी कम करने के विकल्पों में यूनिवर्सल बेसिक इनकम को सबसे प्रभावी कदम बताया जा चुका है। इसके अलावा मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं और विभिन्न प्रकार की सब्सिडी के बजाय इस विकल्प को बेहतर बताया गया है।

क्या योजना में एक भी खामी नहीं है?

– ऐसा नहीं है कि इस स्कीम में कोई खामी नहीं है। मोटे तौर पर देखा जाए तो अगर लोगों के हाथ में इस तरह पैसे दिए जाएंगे तो एक खास तबका खरीददारी करने में मजबूत हो जाएगा जिससे एक दूसरे वर्ग में गुस्सा पैदा हो सकता है।

– कुछ लोगों को बिना काम किए अगर पैसे दिए जाएंगे तो समाज में एक विरोधाभासी माहौल भी बन सकता है।

– स्कीम की राह में सबसे बड़ा रोड़ा हमारे सरकारी आंकड़े बन सकते हैं। हमारे देश में गरीबी रेखा की कोई परिभाषा अभी तक सामने नहीं है। इसके अलावा सभी लोगों के आधार कार्ड बना दिए गए हैं जिनमें बाहरी लोग भी हैं तो क्या आधार कार्ड के हिसाब से पैसे दिए जाएंगे तो इसकी सुनिश्चित कैसे तय की जाएगी।

sweta pachori

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