**FILE** New Delhi: In this file photo dated October 01, 2011, shows suspended IPS officer Sanjeev Bhatt being produced in the court, in Ahmadabad. According to the officials, Bhatt was arrested on Wednesday, Sept 05, 2018, by the Gujarat CID in connection with a 22-year-old case of alleged planting of drugs to arrest a man. (PTI Photo) (PTI9_5_2018_000267B) *** Local Caption ***
पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट, जिन्होंने 2002 के मुस्लिम विरोधी दंगों में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की मिलीभगत का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था, उन्हें 1990 में हिरासत में हुई यातना और मौत के मामले में जामनगर सेशन कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है।
कोर्ट ने भट्ट को, जामनगर में एसपी पद पर रहते हुए हिरासत में टॉर्चर के कारण प्रभुदास वैष्णानी की मौत के मामले में दोषी पाया। एक अन्य पुलिसकर्मी प्रवीणसिंह जाला को भी इसी मामले में दोषी पाया गया। दोनों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या की सजा) के तहत सजा दी गई है।
भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी नवंबर 1990 में जामजोधपुर शहर से अपनी रथ यात्रा निकाल रहे थे। उस दौरान वहां दंगा भड़क गया जिसके बाद लगभग 150 लोगों को हिरासत में लिया गया। हिरासत में लिए जाने वाले लोगों में प्रभुदास वैष्णानी भी थे जिन्हें 9 दिनों के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया था।
वैष्णानी के रिहा होने के दस दिन बाद अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई थी जिसके बाद उनके भाई अमृतलाल ने तब भट्ट और आठ अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ हिरासत में अत्याचार करने के आरोप लगाते हुए मामला दर्ज करवाया।
1995 में यह मामला मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान में लिया गया, जिसके बाद 2011 तक गुजरात हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी थी। बीते एक हफ्ते पहले, सुप्रीम कोर्ट ने भट्ट की जमानत याचिका पर फिर से विचार करने से इनकार कर दिया, ताकि मामले में 11 अतिरिक्त गवाहों की जांच की जा सके।
भट्ट की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि इस मामले में लगभग 300 गवाह बनाए गए थे जिनमें से केवल 32 की ही जांच की गई है। उन्होंने दावा किया कि टीम का हिस्सा रहे तीन पुलिसकर्मियों सहित कई महत्वपूर्ण गवाहों को छोड़ दिया गया।
गुजरात सरकार ने भट्ट के इस कदम को “मुकदमे में देरी के लिए रणनीति” बताया।
भट्ट को 2011 में बिना परमिशन के ड्यूटी से गायब रहने और आधिकारिक वाहनों का दुरुपयोग करने के लिए सस्पेंड कर दिया गया था। अगस्त 2015 में भट्ट को सर्विस से हटा दिया गया था।
उसी साल, सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार द्वारा उनके खिलाफ दायर मामलों के लिए एक विशेष जांच टीम बनाए जाने की याचिका खारिज कर दी। भट्ट 1996 के एक ड्रग प्लांटिंग मामले में सितंबर 2018 से सलाखों के पीछे है। 8 दिसंबर को गुजरात के बनासकांठा जिले की एक अदालत ने भी उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया। भट्ट 1996 में बनासकांठा जिले में पुलिस अधीक्षक थे।
2011 में, भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें 2002 के गुजरात दंगों से एक दिन पहले एक मीटिंग में शामिल होने के बारे में बताया। भट्ट ने बताया कि मोदी, जो तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे और अब प्रधानमंत्री हैं, उन्होंने एक आईपीएस अधिकारी से कहा “हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ अपने गुस्से को बाहर निकलने दो”।
हलफनामे में उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मीटिंग में इस बात पर भी चर्चा हुई थी कि गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में मारे गए हिंदू तीर्थयात्रियों के शवों को अंतिम संस्कार से पहले अहमदाबाद लाया जाएगा।
भट्ट के अनुसार, कई पुलिस अधिकारियों ने इसके खिलाफ सलाह दी थी, क्योंकि उन्हें डर था कि इससे धार्मिक हिंसा भड़क सकती है।
संजीव भट्ट, जो 2002 में डिप्टी पुलिस कमीश्नर थे और राज्य के खुफिया ब्यूरो में तैनात थे। भट्ट का कहना था कि उन्होंने नानावती आयोग (जो कि दंगों की जांच के लिए बनाई गई एक कमेटी थी) के बनने से पहले ही व्यक्तिगत रूप से मोदी को कांग्रेस नेता ईशान जाफरी की जान पर मंडराते खतरे के बारे में बता दिया था। आपको बता दें कि बाद में हुए दंगों में भीड़ ने ईशान जाफरी को मार दिया।
दंगों को लेकर नानावती आयोग की अंतिम रिपोर्ट अक्टूबर 2018 में गुजरात सरकार को सौंप दी गई थी, लेकिन अभी तक इसे सार्वजनिक नहीं किया गया है।
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