भारत में सांख्यिकी विज्ञान के जनक और प्रख्यात सांख्यिकीविद प्रशांत चंद्र महालनोबिस की 28 जून को 49वीं पुण्यतिथि है। उन्होंने वर्ष 1931 में बंगाल प्रांत के कोलकाता में भारतीय सांख्यिकी संस्थान की स्थापना की थी। महालनोबिस की अध्यक्षता में ही ‘राष्ट्रीय आय समिति’ का गठन किया गया था। उन्होंने द्वितीय पंचवर्षीय योजना का मसौदा तैयार किया था। मालूम हो कि महालनोबिस के जन्मदिन 29 जून को भारत में ‘सांख्यिकी दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसे में इस मौके पर जानते हैं उनके बारे में…
प्रशांत चंद्र महालनोबिस का जन्म 29 जून, 1893 को बंगाल प्रांत के कोलकाता स्थित 210 कार्नवालिस स्ट्रीट स्थित निवास स्थान पर हुआ था। उनके पिता प्रबोध चंद्र महालनोबिस ब्रह्म समाज के सदस्य थे। वहीं, उनकी माता निरोदबसिनी बंगाल के एक शिक्षित परिवार से थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके दादा गुरु चरण महालनोबिस द्वारा बनवाए ‘ब्रह्म बॉयज स्कूल’ में हुई। वहां से वर्ष 1908 में मैट्रिक की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने वर्ष 1912 में प्रेसीडेंसी कॉलेज से भौतिकी में ऑनर्स की पढ़ाई पूरी की और उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए लंदन चले गए।
महालनोबिस को गणित विषय पढ़ना बेहद पसंद था, इसलिए लंदन जाकर उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय में दाखिला लिया एवं भौतिकी और गणित दोनों विषयों में डिग्री प्राप्त की। उसके बाद महालनोबिस कुछ समय के लिए कोलकाता लौट आए, जहां उनकी मुलाकात प्रेसीडेंसी कॉलेज के प्रधानाचार्य से हुई, जिन्होंने उन्हें वहां भौतिक विज्ञान विषय पढ़ाने का आमंत्रण दिया। महालनोबिस ने 27 फरवरी, 1923 को निर्मल कुमारी से विवाह किया।
पीसी महालनोबिस पुनः इंग्लैंड लौटे, तो उन्होंने वहां किसी के कहने पर ‘बायोमेट्रिका’ नामक पत्रिका खरीदी। वह एक सांख्यिकी जर्नल था और वह इससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसका पूरा सेट खरीद लिया। ‘बायोमेट्रिका’ पत्रिका से प्रेरित और ब्रजेंद्रनाथ सिल के मार्गदर्शन में उन्होंने सांख्यिकी के क्षेत्र में कार्य करना शुरू कर दिया। बायोमेट्रिका पढ़ने के बाद उन्हें मानवशास्त्र और मौसमविज्ञान जैसे विषयों में सांख्यिकी की उपयोगिता का ज्ञान हुआ। जब वह भारत लौटे तो इस पर काम करना शुरू कर दिया। महालनोबिस ने सबसे बड़ा योगदान ‘सैंपल सर्वे’ की संकल्पना में दिया। उसी सैंपल सर्वे के आधार पर आज की नीतियां और योजनाएं बनाई जा रही हैं।
वर्ष 1920 में प्रशांत चंद्र महालनोबिस की मुलाकात नेल्सन एन्ननडेल से हुई। नेल्सन एन्ननडेल की वजह से महालनोबिस में मानवमिति की समस्या के अध्ययन में रुचि जागी। एन्ननडेल ने उन्हें कोलकाता में एंग्लो-इंडियन के मानवमिति मापों का अध्ययन करने को कहा और इन मापों पर अध्ययन करने पर उन्होंने वर्ष 1922 में सांख्यिकी से संबंधित अपना पहला शोध-पत्र तैयार किया। यही वह अध्ययन था, जिसके दौरान उन्होंने बहुचर दूरी माप का प्रयोग कर जनसंख्या के समूहीकरण और तुलना के एक तरीके का पता लगाया, जिसे ‘महालनोबिस दूरी’ सांख्यिकी माप कहा गया।
पीसी महालनोबिस ने सांख्यिकी में रुचि रखने वाले कुछ मित्रों के सहयोग से भारतीय सांख्यिकी संस्थान की स्थापना की। इस संस्थान ने सांख्यिकी के क्षेत्र में इतना सराहनीय काम किया कि वर्ष 1959 में इसे ‘राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान’ घोषित कर ‘डीम्ड विश्वविद्यालय’ का दर्जा दे दिया गया। उन्होंने देश के स्वतंत्रता होने के बाद जनसंख्या अध्ययन, फसल उत्पादन जैसे विषयों में बेहतर तरीके से माप करने की दिशा में योगदान दिया।
पीसी महालनोबिस को वर्ष 1944 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने ‘वेलडन मेमोरियल मेडल’ पुरस्कार से सम्मानित किया था। इसके अगले वर्ष 1945 में लंदन की रॉयल सोसायटी ने उन्हें अपना फेलो नियुक्त किया। उन्हें ‘इंडियन साइंस कांग्रेस’ का अध्यक्ष भी चुना गया। महालनोबिस को अमेरिका के ‘इकोनोमेट्रिक सोसायटी’ का फेलो नियुक्त किया गया। उन्हें वर्ष 1952 में पाकिस्तान सांख्यिकी संस्थान का फेलो बनाया गया। वर्ष 1954 में रॉयल स्टेटिस्टिकल सोसायटी का मानद फेलो नियुक्त किया गया। वर्ष 1957 में उन्हें देवी प्रसाद सर्वाधिकार स्वर्ण पदक दिया गया। महालनोबिस को वर्ष 1957 में ही अंतरराष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान का मानद अध्यक्ष बनाया गया। भारत सरकार ने वर्ष 1968 में उन्हें ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया।
प्रशांत चंद्र महालनोबिस की पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से काफी नजदीकी थी, इसके बावजूद उन्होंने कभी कोई सरकारी पद आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया। भारत में सांख्यिकी के जनक पीसी महालनोबिस का 79वें जन्मदिन से एक दिन पूर्व 28 जून, 1972 को देहांत हो गया।
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