Indian Revolutionary Rajendranath Lahiri was deeply interested in literature, He wrote articles for many newspapers.
“मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूं”
ये शब्द पढ़कर आपके दिमाग में बेशक किसी क्रांतिकारी के जोशीले अंदाज वाली तस्वीर बन रही होगी। देश को आजादी दिलाने का संघर्ष कई दशकों तक चला, जिसमें कितने ही नौजवानों ने अपने राष्ट्र के खातिर अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी थी। फांसी के फंदे पर चढ़ना तो इनके लिए एक मजाक होकर रह गया था। उन्हें इससे ज़रा भी डर नहीं लगता था। हम बात कर रहे हैं एक ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानी राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी की। शुरुआत में लिखे शब्द उनके आखिरी शब्द थे। लाहिड़ी अमर क्रांतिकारियों में से एक थे, जो देश के खातिर हंसते-हंसते शहीद हो गए।
अंग्रेजों को हिला देने वाले ‘काकोरी कांड’ में भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल के नाम के साथ ही एक राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी भी थे, जिन्होंने अंग्रेजों की चूलें हिला कर रख दी थी। लाहिड़ी ने काकोरी कांड के बाद गिरफ्तार किए गए 16 स्वतंत्रता सेनानियों के साथ गिरफ्तारी दी थीं। आज 29 जून को भारतीय क्रांतिकारी राजेंद्रनाथ लाहिड़ी की 122वीं जयंती है। इस अवसर पर जानिए लाहिड़ी के प्रेरणादायी जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का जन्म 29 जून, 1901 को बंगाल प्रांत के पबना जिला (अब बांग्लादेश) स्थित लाहिड़ी मोहनपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम क्षितिज मोहन शर्मा और माता का नाम बसंत कुमारी था। देश की आजादी के संघर्ष करने वाले राजेन्द्रनाथ काफी सालों तक कारावास में रहे थे। वर्ष 1909 में राजेन्द्रनाथ बंगाल से वाराणसी गए और अपने मामा के घर रहकर अपनी पढ़ाई पूरी की।
राजेन्द्रनाथ को देशभक्ति और निडरता तो परिवार से ही मिली थी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. करते समय उनका रूझान क्रांतिकारी गतिविधियों की तरफ बढ़ गया। इस दौरान ही उनकी मुलाकात बंगाल के क्रांतिकारी नेता शचीन्द्रनाथ सान्याल से हुई और वो क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ गए। कुछ ही समय में लाहिड़ी देश के और क्रांतिकारियों से भी जुड़ने लगे व ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहम योजना बनाने लगे।
क्रांतिकारी राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को कुछ समय बाद क्रांतिकारी संगठन ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के बैनर तले चलाना शुरू किया और वो इससे जुड़ भी गए। क्रांतिकारी स्वभाव होने के साथ लाहिड़ी साहित्य में गहरी रूचि रखते थे। वो नियमित रूप से कई अखबारों में लेख लिखा करते थे।
‘काकोरी कांड’ को अंजाम देने के बाद राजेन्द्रनाथ को रामप्रसाद बिस्मिल ने बम बनाने और जंग की ट्रेनिंग के लिए कलकत्ता भेजा, जहां वे बम बनाने और चलाने का अभ्यास करने लगे। एक दिन कुछ असावधानी की वजह से बम वहीं फट गया और उसकी आवाज सुनकर अंग्रेजों ने उन्हें और उनके 9 साथियों को गिरफ्तार कर लिया।
जब अंग्रेजों ने काकोरी कांड के लिए क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए छापे मारने शुरू किए तो एक-एक करके सभी पकड़े गए। उनमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी भी जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए। उन पर काकोरी कांड के लिए मुकदमा चला, जिसके लिए उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई गईं।
राजेन्द्रनाथ जैसे क्रांतिकारियों के दुनिया से जाने के बाद देश में क्रांति की आग भड़क चुकी थी। जनता गुस्से में जल रही थी। अंग्रेजी सरकार की घबराहट हर दिन बढ़ने लगी। जनता और राजनीतिक दबाव की वजह से राजेन्द्रनाथ को तय समय से दो दिन से पहले ही 17 दिसंबर, 1927 को फांसी पर चढ़ा दिया गया। इस तरह भारत मां का यह वीर सपूत हमेशा के लिए अमर हो गया। चूंकि, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी 17 दिसंबर शहीद हुए, इसलिए उनकी याद में इस दिन को उत्तरप्रदेश के गोण्डा जिले में प्रशासन की ओर से ‘लाहिड़ी दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है।
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