Inder Kumar Gujral had refused coverage of Indira Gandhi's rally on Doordarshan.
स्वतंत्रता सेनानी व भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल की आज 104वीं जयंती है। आईके गुजराल का जन्म 4 दिसंबर, 1919 को अविभाजित भारत के पंजाब राज्य के झेलम (अब पाकिस्तान) में हुआ था। अवतार नारायण व पुष्पा गुजराल के घर जन्मे इंद्रकुमार पढ़ाई में शुरू से ही तेज थे, इसलिए माता-पिता ने उनको बड़े और अच्छे स्कूलों में पढ़ाया। कॉलेज में आते ही वह अपने स्वतंत्रता सेनानी पिता की राह पर चल पड़े थे। बाद में इंद्र कुमार गुजराल भारत के 12वें प्रधानमंत्री भी बने। गुजराल सदन में अपना भाषण देते वक्त शेरों-शायरियों का इस्तेमाल किया करते थे। इस ख़ास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद इंद्रकुमार गुजराल डीएवी कॉलेज व हैली कॉलेज ऑफ कामर्स और फॉर्मन क्रिश्चियन कॉलेज जैसे नामी कॉलेजों में पढ़ाई करने पहुंचे थे। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही गुजराल भारती की आजादी के आंदोलन से काफी प्रभावित हुए और उससे जुड़ गए। आजादी के संघर्ष के दौरान गुजराल ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन में बहुत अहम भूमिका निभाई और कई बार जेल में भी रातें बिताईं। स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े रहने के दौरान गुजराल का राजनीति से भी नाता जुड़ गया। देश के प्रधानमंत्री बनने से पहले इंद्रकुमार गुजराल ने कई अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली थी।
वर्ष 1975 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी काफी विवादों में रही। इंदिरा को इन विवादों से निकालने के लिए उनके बेटे संजय गांधी उत्तर प्रदेश से समर्थन के लिए ट्रकों में भरकर लोगों को दिल्ली ला रहे थे। अपनी मां के लिए वो जनता को इकट्ठा करके विश्वास वापस हासिल करना चाहते थे। संजय गांधी लोगों की समर्थन रैली की दूरदर्शन पर कवरेज दिखाना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने उस समय के सूचना-प्रसारण मंत्री इंद्रकुमार गुजराल से अनुमति मांगी, लेकिन गुजराल ने उनको साफ मना कर दिया।
आखिरकार आईके गुजराल को मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा, लेकिन वो अपने फैसले पर अड़े रहे। वहीं, गुजराल के कांग्रेस में रहने के दौरान कई तरह की खींचतान की खबरें भी समय-समय पर सामने आती रहती थी। वर्ष 1980 में उनके कांग्रेस से इस्तीफा देने की कई खबरें सामने आईं।
पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल शुरू से ही अपनी पढ़ाई को लेकर काफी चर्चा में रहते थे। अपनी मातृ भाषा के अलावा उन्हें उर्दू समेत कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। गुजराल बातों-बातों में शेरो-शायरी का काफी इस्तेमाल किया करते थे। वह लोकसभा में भी कई बार भाषण के दौरान शायरियों का इस्तेमाल किया करते थे। फेफड़े में संक्रमण के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां वह एक वर्ष तक डायलिसिस पर रहे। 30 नवंबर, 2012 को इंद्रकुमार गुजराल ने अस्पताल में अंतिम सांस लीं।
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