धर्म किसी को खाने को नहीं देता, अपनी आजीविका के लिए खुद को मेहनत करनी होती है। हां यह सत्य है, किसी भी धर्म के बड़े पदाधिकारी या संस्था गरीबों की गरीबी दूर नहीं कर पाते हैं, पर आतंक या साम्प्रदायिकता को पालने के लिए फंडिंग अवश्य दी जाती है। यह किसी एक धर्म पर आक्षेप नहीं है, बल्कि हर धर्म की यह कहानी है। सामान्य लोगों को आज के तकनीकी युग में आजीविका के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। वहीं ऐसे लोग भी हैं जो धर्म को पालने के लिए अपनी मेहनत को दान कर रहे हैं, लेकिन यह दान किसी गरीब की गरीबों को दूर करने में खर्च नहीं हो रहा है बल्कि आतंक को पालने में देश का पैसा विदेशों में भेज रहे हैं।
ऐसा ही ताजा उदाहरण हमारे देश में सामने आया है, जिसके तार दुबई में बैठे सरगना से जुड़े हैं। रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स (RPF) ने ई—टिकट की अवैध सॉफ्टवेयर के जरिए दलाली का अब तक का सबसे बड़ा खुलासा किया है। आरपीएफ ने देश के कई शहरों में छापेमारी की और इस गोरखधंधे में शामिल 27 लोगों को गिरफ्तार किया है। जो ई-टिकटिंग के धंधे से हर महीने 10 से 15 करोड़ कमा लेते थे और उनसे बिट कॉइन में बदल देते थे। इस गिरोह के तार आतंकी फाइनेंसिंग से जुड़े हैं। इस रैकेट के तार पाकिस्तान, बांग्लादेश और दुबई तक हैं।
खबरों के मुताबिक 10 दिन पहले बेंगलुरु से गुलाम मुस्तफा नाम के शख्स की गिरफ्तारी हुई थी। गुलाम ई-टिकट बनाने और कन्फर्म करने वाले सॉफ्टवेयर बेचता था। जब उसके लैपटॉप की जांच की गई तो उसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश, मिडिल ईस्ट और नेपाल आदि देशों से उसके लिंक का खुलासा हुआ। साथ उसके पास से इन देशों के कई नंबर भी मिले हैं। आरपीएफ के साथ गुलाम मुस्तफा की आतंकियों से लिंक की जांच आईबी, एनआईए, रॉ, ईडी और कर्नाटक पुलिस भी कर रही है।
गुलाम मुस्तफा झारखंड के गिरिडीह का निवासी है। ई—टिकट सॉफ्टवेयर बेचने से पहले वह बेंगलुरू में रेलवे के टिकट ब्लैक में बेचा करता था। इस काम में माहिर होने के लिए उसने ई-टिकटाें के साॅफ्टवेयर की ट्रेनिंग ली फिर ई-टिकट की कालाबाजारी से जुड़ गया। बाद में वह E-Ticket का सॉफ्टवेयर बेचने लगा। वह शिक्षित नहीं है, लेकिन कम्प्यूटर और हैकिंग करने में एक्सपर्ट है। उसके पास से ANMS सॉफ्टवेयर से IRCTC की 563 आईडी मिली है।
बताया गया कि मुस्तफा एक विदेशी नम्बर का प्रयोग करता है और उसी के जरिए वॉट्स एप चैट पर बात करता है। इसके अलावा उसके पास से कॉड वर्ड मैसेज भी मिले हैं। जांच एजेंसी को हैरानी हुई जब उसे पता चला कि मुस्तफा के 2400 बैंक अकॉउंट स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में, जबकि 600 अकॉउंट रीजनल बैंकों में हैं। अधिकारी ने बताया कि उसके लैपटॉप और मोबाइल की फोरेंसिक जांच जारी है। यही नहीं उसने फर्जी आधार कार्ड बनाने के लिए एक एप भी बनाया था। उसके एक वॉट्स एप ग्रुप से कई मोबाइल नंबरों की पहचान हुई।
ANMS सॉफ्टवेयर का अवैध सॉफ्टवेयर के बाजार में 85 फीसदी कब्ज़ा है। इसमें लोग-इन के लिए कैप्चा, बुकिंग कैप्चा और बैंक ओटीपी की जरूरत नहीं पड़ती है। इसके साथ ही टिकट बुकिंग बहुत तेजी से होती और कन्फर्म टिकट मिलता है। इस सॉफ्टवेयर से 3 टिकट 1.48 मिनट में बुक हो जाते हैं, जबकि अगर कोई शख्स मैन्युअली आईआरसीटीसी के एप से बुक करेगा तो उसे एक टिकट बुक करने में 2.55 मिनट लगेंगे।
जब गुलाम मुस्तफा अवैध ई—टिकट बनाने वाले रैकेट के मास्टरमाइंड हामिद अशरफ के संपर्क में आया, तो वह भी इस गोरखधंधे में शामिल हो गया। इस गैंग के मास्टरमाइंड हामिद अशरफ को सीबीआई ने वर्ष 2016 में ई-टिकट के सॉफ्टवेयर बेचने के आरोप में गिरफ्तार भी किया था। वह बेल पर था उस दौरान वह दुबई फरार हो गया। हामिद अशरफ मूल रूप से उत्तर प्रदेश का रहने वाला है, वह वर्ष 2019 में गोंडा के एक स्कूल में बम धमाके का भी आरोपी है।
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