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वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट : किसी देश के लोगों की खुशी का कैसे पता लगाया जाता है?

वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2019 के अनुसार, भारतीय अपनी जिंदगी से काफी असंतुष्ट हैं। 156 देशों पर किए गए इस सर्वे में भारत 140वें स्थान पर है। भारत की 2019 रैंक पिछले साल की तुलना में सात पायदान नीचे गिर गई हैं और अपने अधिकांश दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों से कम है। फिनलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड, डेनमार्क और स्वीडन जैसे देशों ने टॉप 5 में जगह बनाई है।

क्या होती है वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट?

द वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट एक सर्वे होता है जो 156 देशों पर सर्वे करके वर्ल्ड हैप्पीनेस का पता लगाया जाता है। यह सर्वे 2012 में शुरू किया गया जिसे यूनाइटेड नेशन डवलपमेंट सॉल्यूशम नेटवर्क स्पॉन्सर करता है।

सर्वे इस बात पर आधारित रहता है कि लोग खुद को कितना खुश मानते हैं। हर साल, यह आबादी के खुश होने के कई पैरामीटर्स को देखता है। 2018 में आई वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में पूरे देश की खुशी को आधार मानते हुए रैंक दी गई थी। वहीं इसमें किसी देश के माइग्रेंट लोग कितने खुश है ये भी बताया गया था।

2018 की रिपोर्ट कहती है कि अप्रवासियों की खुशी मुख्यतः लाइफस्टाइल और रोजमर्रा के जीवन की गुणवत्ता पर निर्भर करती है जहां वे रहते हैं। इस साल, वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में “हैप्पीनेस और कम्यूनिटी” पर फोकस किया है कि विशेष रूप से कैसे तकनीक, सरकार और सामाजिक मानदंड किसी देश में जीवन की गुणवत्ता को निर्धारित करते हैं।

लोगों की हैप्पीनेस जानने के लिए छह प्रमुख पैरामीटर को ध्यान में रखा गया: जीडीपी प्रति व्यक्ति, सोशल सपोर्ट, जीने की आशा, बोलने की आजादी, उदारता और भ्रष्टाचार को लेकर सोच।

भारत क्यों है इतना उदास?

भारत पिछले दशक में हैप्पीनेस में सबसे बड़ी गिरावट होने वाले पांच देशों में से एक है, इसका कारण सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक उठापटक भी है। वहीं भारत के साथ वेनेजुएला, सीरिया, बोत्सवाना और यमन जैसे चार अन्य देश तेजी से नीचे गिर रहे हैं।

रिपोर्ट में बताया गया है कि जीडीपी और सोशल सपोर्ट भारतीयों की खुशी के मुख्य कारण है। भारत में लोगों की खुशी के कारण जीने की उम्मीद, उदारता और स्वतंत्रता जैसे पैरामीटर नहीं पाए गए।

भारत में स्वतंत्रता को लेकर फ्रीडम रिपोर्ट 2019 भी आई है जिसमें 100 देशों में भारत 75वें पायदान पर है। हमारे संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है और इसी का उदाहरण है कि आज नया और वैकल्पिक मीडिया जीवंत है। हालांकि, वर्तमान सरकार में पत्रकारों के खिलाफ उत्पीड़न और हिंसा की घटनाएं देखी गई हैं। इस रिपोर्ट में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों घटनाओं को ध्यान में रखा गया है।

अन्य देशों के क्या हैं हाल?

पिछले दो सालों में फिनलैंड ने हैप्पीनेस रैंकिंग में शीर्ष स्थान हासिल किया है। वहीं पाकिस्तान 67वें स्थान पर है, चीन 93वें स्थान पर है और नेपाल 100वें स्थान पर है। अफ़गानिस्तान भारत के मुकाबले 154वें स्थान पर है।

भारत के लिए कुछ सकारात्मक है क्या ?

हालांकि, सर्वे में भारत के लिए कुछ सकारात्मक आंकड़े भी हैं। इसमें कहा गया है कि भारतीयों में ज्यादा खुशी तब देखी गई जब वो अपना पैसा किन्हीं दूसरों के बजाय खुद पर खर्च करते हैं। भारतीय आबादी के एक चौथाई से अधिक हिस्से ने पिछले साल के कुछ ही महीनों में धर्मार्थ कारणों के लिए भी खूब दान किया।

यह भी पाया गया कि भारत में डिजिटल क्रांति भ्रष्टाचार को रोकने में मददगार साबित हो रही है। उदाहरण के लिए, फिंगरप्रिंट और आईरिस तकनीक का उपयोग सरकार जिन कल्याणकारी योजनाओं के लिए कर रही है वो बेईमान बिचौलियों के लिए खतरा बन रही है।

वहीं एक जरूरी बात जो कही गई है वो यह कि सरकार अच्छी नीतियां ही जनता की खुशी का निर्धारण करती है और नागरिक प्रभावी सरकारें चुनकर ही खुशी पैदा करते हैं।

अब आगे क्या ?

2019 के लोकसभा चुनाव के बाद कुछ प्रमुख मुद्दों से निपटने के बाद भारत की रैंक बढ़ सकती है। देश में सांप्रदायिक तनाव को कम करने के लिए लोग उम्मीद कर रहे हैं कि बाबरी मस्जिद का मसला शांति से सुलझाया जाए। इसके अलावा लोग फरवरी में हुए पुलवामा हमले के बाद भारत-पाक तनाव के बीच शांति की अपील कर रहे थे।

अर्थव्यवस्था के संदर्भ में, 2019 का बजट आगामी चुनावों और किसानों पर केंद्रित रहा है। किसान वित्तीय सुरक्षा और स्थिरता की मांग कर रहे हैं। बड़े पैमाने पर, यदि अधिक लोग चर्चा करने लग जाते हैं तो मुद्दे जैसे डीएचएफएल घोटाला और राफेल घोटाला लोगों की सामान्य बहस का हिस्सा बन जाते हैं।

यदि आने वाली सरकार ने लोकसभा चुनाव के बाद सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं, युवाओं को नौकरी, अपराध में कमी और न्यायिक शक्ति में मजबूती के लिए कोई ठोस नीतियां नहीं बनाई तो भारत 2020 में औऱ फिसलेगा इसमें कोई दो राय नहीं है।

sweta pachori

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