How much do you know about these two famous Durga Pujas of Bengal.
दुनिया में भारत एक ऐसा देश है, जहां विभिन्न संस्कृतियों के अनेकों रंग देखने को मिलते हैं। यहां बारह महीने तीज-त्योहारों की बहार लगी रहती है। इनदिनों देशभर में नवरात्रि की धूम मची हुई है, और खासकर बंगाल में। हालांकि, कोरोना महामारी को देखते हुए राज्य सरकार की ओर से जारी निर्देशिका में पूजा आयोजकों को स्पष्ट तौर पर निर्देश दिया गया है कि दुर्गा पूजा पंडाल इस तरह से बनाने होंगे, ताकि दूर से ही लोग मां दुर्गा के दर्शन कर सकें। इससे पहले हाईकोर्ट ने दुर्गा पूजा पंडालों में प्रवेश पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया है।
ऐसे में पूजा पंडाल के करीब आने वालों के प्रवेश और निकासी की बेहतर व्यवस्था करनी होगी, ताकि अधिक से अधिक सोशल डेस्टेंसिंग (शारीरिक दूरी) का पालन हो सके। इसके अलावा जो लोग बिना मास्क नज़र आएंगे, उनके बीच मास्क का वितरण करने का निर्देश भी पूजा आयोजकों को दिया गया है। दुर्गा पूजा पंडाल के करीब कोई भी सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित नहीं होगा। इसको लेकर आयोजकों को कड़े निर्देश दिए गए हैं।
जिस तरह से मुंबई-महाराष्ट्र का गणेश उत्सव दुनियाभर में विख्यात है, उसी तरह बंगाल की दुर्गा पूजा भी देश-दुनिया में काफी मशहूर है। बंगाल में दुर्गा पूजा को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां की दुर्गा पूजा इतनी भव्य होती है कि दुनिया का ध्यान खींचने में कामयाब रहती है। बंगाल का कोलकाता शहर जिसे ‘खुशी का शहर’ भी कहा जाता है, अपनी अनोखी और अनूठी परंपरा के लिए जाना जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी मगर, बंगाल में दुर्गा पूजा दो तरह से की जाती है। कोलकाता में दुर्गा पूजा को दो तरह से सेलिब्रेट किया जाता है। जिसे ‘पारा’ और ‘बारिर’ कहा जाता है। पूजा के इन दोनों तरीकों में ना सिर्फ रस्में बल्कि, सबकुछ बहुत अलग होता है। तो चलिए आपको बताते हैं दुर्गा पूजा की इन दो अनूठी विधाओं के बारे में…
पारा दुर्गा पूजा और बारिर पूजा एक-दूसरे से बिल्कुल अलग होती है। ‘पारा दुर्गा पूजा’ यानि स्थानीय पूजा होती है, जो थीम पर आधारित, रोशनी, डिज़ाइन्स, विचारों और भीड़ का एक भव्य शो है। यह पूजा पंडालों और कम्यूनिटी हॉल्स में संपन्न होती है। इसमें शानदार डिजाइन, बेहतरीन थीम और विचारों का एक भव्य रूप होता है।
पारा पूजा के इतर बारिर पूजा भी होती है, जो घर में ही की जाती है। यह पूजा उत्तरी कोलकाता के पुराने घरों और दक्षिण कोलकाता के धनी घरों में की जाती है। स्थानीय मान्यता के मुताबिक, इस तरह की पूजा का एक घरेलू प्रभाव होता है जो घर वापसी की भावना के साथ लोगों को अपनी जड़ों से जोड़ने का काम करती है। मालूम हो कि दुर्गा पूजा का मतलब सिर्फ पंडाल नहीं होता।
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