उत्तराखंड और हिमाचल में बारिश ने अपना विकराल रुप धारण किया हुआ है। यहां लगातार हो रही भारी बारिश का मुख्य कारण ‘बादल फटना’ (cloud burst) है। यह पहली बार नहीं है जब इन पहाड़ी क्षेत्रों से बादल फटने की खबर सामने आई है। बारिश के मौसम में यह आम बात है। जिसके कारण यहां आम जीवन थम जाता है। एक बार फिर उत्तराखंड और हिमाचल का नजारा साल 2013 में केदारनाथ में आई जल प्रलय की दर्दनाक यादें ताजा कर रहा है। आखिर क्या होता है बादल फटना? आइए बादल फटने से जुड़ी बातों पर डालते हैं एक नज़र।
बादल फटना
अधिकतर बादल फटने की घटनाए पहाड़ी क्षेत्रों में होती है। इस स्थिति में सामान्य से कई गुना तेज बारिश होती है। जो मूसलाधार बारिश से भी तेज होती है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक यदि क्षेत्र में 100 मिलीमीटर (3.94 इंच) प्रति घण्टा या इससे अधिक बारिश हो तो इसे बादल फटना कहा जाता है। जो उस क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति पैदा करती है। बादल फटने की घटना पृथ्वी से करीब 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर होती है।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
बादल फटने की घटना तब होती है जब ज्यादा नमी वाले बादल आसमान में चलते है और उनके रास्ते में कोई रुकावट आ जाती है। ऐसी स्थिति में वे एक जगह रुक जाते है। जिसकी वजह से इनमें मौजूद पानी की बूंदे आपस में मिलने लगती है। आपस में मिली बूंदो के भारों के कारण बादल का घनत्व बढ़ जाता है जिसकी वजह से अचानक मूसलाधार से भी तेज बारिश होती है। वहीं बादल फटने के पीछे का एक कारण उनके मार्ग में आई गर्म हवा भी है। दरअसल नमी वाले बादलों से जब गर्म हवा टकराती है तब भी बादल फटने की घटना होती है। साल 2005 में मुंबई में हुई भारी बारिश इसका उदाहरण है।
पहाड़ी इलाकों में ही क्यूं होती है ये घटना
इस सवाल के जवाब से अधिकांश लोग बेखबर रहते हैं कि बादल फटने की ज्यादातर घटनाए पहाड़ी इलाकों में ही क्यूं होती है। तो चलिए आपको इसकी जानकारी भी देते हैं…
दरअसल मानसून के समय पानी से भरे हुए बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैं, जिनके मार्ग में हिमालय पर्वत एक बड़े अवरोधक के रूप में खड़ा है। यही वजह है कि नमी से भरे बादलों को आगे जाने का रास्ता नहीं मिल पाता जिसकी वजह से एक ही जगह पर वे इकट्ठा होकर बरस जाते है। यही वजह है कि अधिकांश बादल फटने की घटना पहाड़ी इलाकों में ही होती है।
जानिए देश में कब-कब बादल फटने की हुई घटना
18 जुलाई, 2005 में मुंबई में बादल फटने से भारी तबाही हुई। 6 अगस्त 2010 को लेह में एक के बाद एक फटे कई बादलों के कारण पुराना लेह पूरी तरह से बर्बाद हो गया था। इस घटना में करीब 100 से अधिक लोगों की मौत और 300 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इसके बाद बादल फटने की घटना साल 2013 में 16 और 17 जून को केदारनाथ में देखने को मिली। जिसकी दर्दनाक याद आज भी लोगों के जहन में बनी हुई है।
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