हलचल

राजस्थान : सरकारी स्कूलों की किताबों में सावरकर अब “वीर” नहीं रहे !

जब सरकारें बदलती है तो योजनाओं के नाम, स्मारकों और सड़कों के नाम बदलने के साथ ही आजकल सरकारी स्कूलों की किताबों का सिलेबस बदलने का ट्रेंड भी जोरों पर है। इतिहास की मार्मिकता कुछ ऐसी रह गई है कि सरकारें इसे अपने हिसाब से गढ़ने लगी है।

ताजा अपडेट यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि आरएसएस के विचारक रहे ’वीर’ सावरकर अब राजस्थान की 10वीं क्लास की सामाजिक विज्ञान की किताब में “वीर” नहीं रहे हैं।

वीर हटाकर सावरकर को “महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रचने वाले” के रूप में बताया गया है इसके अलावा एक बिंदु यह भी जोड़ा गया है कि उन्होंने अंग्रेजों के शासन के दौरान सावरकर ने अपनी जेल की सजा कम करने के लिए अंग्रेजी हुकूमत को तीन माफीनामे भी लिखे थे।

किताब में सावरकर को लेकर किया गया बदलाव तब सामने आया जब नए अकेडमिक ईयर की किताब की एक कॉपी मीडिया में वायरल हो गई। आपको ज्ञात होगा कि 2017 में प्रदेश की वसुंधरा सरकार ने सिलेबस में सावरकर को लेकर एक चैप्टर अलग से जोड़ा था।

इसके बाद गहलोत सरकार ने इस साल मार्च में, सरकारी स्कूलों का सिलेबस बदलने और समीक्षा के लिए एक समिति बनाई जिसने तय किया कि 80% सिलेबस वैसा ही रहेगा जबकि 20% में बदलाव किया जाएगा।

शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा का कहना है कि गत भाजपा सरकार ने शिक्षा का भगवाकरण किया। सिलेबस में बदलाव के सवाल पर वो बोले कि सभी बदलाव तथ्यों के आधार पर किए गए हैं और किसी भी तरह की आपत्ति पर चर्चा के लिए आदर्श आचार संहिता समाप्त होने के बाद विभाग का मंच सभी का स्वागत करता है।

अंडमान की जेलयात्रा के दौरान सावरकर कहते हैं, (जैसा किताब में लिखा है) “जेल में उन्हें इस बात के लिए परेशान किया गया था कि सावरकर ने ब्रिटिशों से माफी मांगते हुए चार खत लिखे थे…और 2 मई, 1921 को उनकी सजा इस शर्त पर माफ की गई थी कि वह राजनीति से दूर रहेंगे।” इसके बाद सावरकर ने भारत को “हिंदू राष्ट्र” बनाने के लिए अभियान चलाया।

चैप्टर में यह भी बताया गया है कि उन पर महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रचने और हत्यारे नाथूराम गोडसे की मदद करने का भी आरोप था हालांकि कोर्ट ने उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था।

गौरतलब है कि पिछले आठ सालों में, राजस्थान में पहली क्लास 12वीं क्लास की किताबों का सिलेबस तीन बार बदला गया है। न्यूयॉर्क में पूर्व नीति नियोजक यूनीसेफ के केबी कोठारी ने इसे “गलत प्राथमिकताओं” का उदाहरण बताया।

sweta pachori

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