महान संगीतकार और प्रसिद्ध पार्श्व गायक हेमंत कुमार उर्फ हेमंत दा की 16 जून को 93वीं बर्थ एनिवर्सरी है। हेमंत का जन्म वर्ष 1930 में उत्तरप्रदेश के बनारस में उनके नाना के घर हुआ था। उनके नाना एक प्रसिद्ध फिजिशियन हुआ करते थे। हेमंत दा का पूरा नाम हेमंत कुमार मुखोपाध्याय हैं। उनके पिता कालिदास मुखर्जी का परिवार जयनगर से था। सन् 1900 में उनका परिवार कोलकाता आकर बस गया था। यहीं हेमंत पले-बढ़े थे।
हेमंत के बारे में महान म्यूजिक कंपोजर सलिल चौधरी ने एक बार कहा था कि ‘ईश्वर यदि गाता होता तो उसकी आवाज़ हेमंत कुमार की तरह ही होती।’ वहीं, लीजेंड गायिका लता मंगेशकर ने कहा कि ‘हेमंत दा को सुनते हुए हमेशा ही यह लगता है कि जैसे कोई साधु मंदिर में बैठकर गीत गा रहा हो।’ इस खास अवसर पर जानिए हेमंत दा के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
कलकत्ता में की 12वीं तक की पढ़ाई
हेमंत कुमार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता के नसीरुद्दीन स्कूल और भवानीपुर एरिया स्थित मित्रा इंस्टिट्यूट स्कूल से पूरी की। इंटर की परीक्षा पास करने के बाद हेमंत ने जादवपुर यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए प्रवेश ले लिया था। लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में छोड़ दी। क्योंकि उस समय उनको संगीत से गहरा लगाव हो गया था और उन्होंने म्यूजिक में ही कॅरियर बनाने की ठान ली थी।
इस दौरान उनकी मुलाक़ात उनके लंबे समय तक दोस्त रहे सुभाष मुखोपाध्याय हुई, जो बाद में बंगाली कवि बन गए थे। उनके अलावा हेमंत की दोस्ती चर्चित लेखक संतोष कुमार घोष से भी हो गई थी। हेमंत कुमार लघु कहानियां लिखा करते थे, संतोष कुमार कविता और सुभाष मुखोपाध्याय गाना गाया करते थे। इसी बीच हेमंत कुमार ने साहित्य जगत मे भी अपनी पहचान बनानी चाही और एक बंगाली पत्रिका ‘देश’ में उनकी एक कहानी भी प्रकाशित हुई थी। लेकिन साल 1930 के अंत तक हेमंत ने अपना पूरा ध्यान संगीत पर लगा दिया था।
संगीत की प्रारंभिक शिक्षा शैलेश दत्त गुप्ता से ली
अपने बचपन के मित्र सुभाष की सहायता से इसी साल हेमंत कुमार को आकाशवाणी के लिए अपना पहला बंगला गीत गाने का मौका मिल गया था। हेमंत ने संगीत की अपनी प्रारंभिक शिक्षा एक बंगला संगीतकार शैलेश दत्त गुप्ता से ली। उन्होंने उस्ताद पैयाज खान से शास्त्रीय संगीत की भी शिक्षा ली थी। हेमंदा बंगाली, हिंदी और कई अन्य भारतीय भाषाओं में गायन करते थे। वे रविन्द्र संगीत के प्रसिद्ध आर्टिस्ट भी हुआ करते थे।
कई म्यूजिक कंपनियों ने ऑडिशन में ठुकरा दिया था
हेमंत कुमार मुखोपाध्याय के एक सफ़ल संगीतकार बनने से उन्हें तमाम रेकॉर्ड कंपनियों ने ऑडिशन में ठुकरा दिया था। युवा हेमंत को म्यूजिक कंपनियों ने यह कहकर वापस भेज दिया था कि उनकी आवाज़ गायन के लिए उपयुक्त नहीं है। बाद में उनमें से एक कोलंबिया म्यूजिक ने हेमंत से प्रभावित होकर रवीन्द्रनाथ टैगोर के गीत उनकी आवाज़ में रिकॉर्ड करके बिक्री के लिए लोगों के बीच उतारे। हेमंत को पहली बार पंडित अमरनाथ के संगीत-निर्देशन में हिंदी फिल्म ‘इरादा’ (1944) के लिए गायन का अवसर मिला था।
लेकिन उन्हें संगीतकार के रूप में पहचान दिलाने वाली पहली फिल्म ‘आनंदमठ’ (1952) रहीं। हेमंत कुमार के कई बड़े संगीतकारों से आत्मीय रिश्ते रहे थे। उनमें पंडित अमरनाथ, सलिल चौधरी, कमल दासगुप्ता जैसे दिग्गज नाम शामिल हैं। साल 1947 में हेमंत कुमार ने बंगला फिल्म ‘अभियात्री’ के लिए बतौर संगीतकार काम किया। इस दौरान वे भारतीय जन नाट्य संघ ‘इप्टा’ के सक्रिय सदस्य के रूप में भी काम कर रहे थे।
हेमंत दा ने कई बंगला फिल्मों में संगीत दिया
धीरे-धीरे हेमंत कुमार बंगला फिल्मों में बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाते चले गए। इस दौरान हेमंत कुमार ने कई बंगला फिल्मों में संगीत दिया, जिनमें हेमेन गुप्ता निर्देशित कई फिल्में शामिल थीं। कुछ समय के बाद जब हेमेन गुप्ता मुंबई आ गए तो उन्होंने हेमंत कुमार को भी मुंबई आने का आमंत्रण दिया। वर्ष 1951 में फिल्मीस्तान के बैनर तले बनी उनकी पहली हिंदी फिल्म ‘आनंद मठ’ में हेमेन गुप्ता ने हेमंत संगीत देने का मौका दिया।
इस फिल्म की सफलता के बाद हेमंत दा बतौर संगीतकार बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए थे। इस फिल्म का लता मंगेशकर की आवाज में रिकॉर्ड ‘वंदे मातरम’ आज भी श्रोताओं को भाव ला देता है। वर्ष 1954 में हेमंत कुमार के संगीत से सजी फिल्म ‘नागिन’ की सफलता के बाद हेमंत दा सफलता के शिखर पर पहुंच गए थे। इसका एक गीत ‘मन डोले मेरा तन डोले’ आज भी म्यूजिक लवर्स में काफ़ी पॉपुलर है। इस फिल्म के उन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर का दो बार जीता नेशनल अवॉर्ड
हेमंत कुमार ने अपने म्यूजिक करियर के दौरान 2 बार बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर का नेशनल अवॉर्ड जीता। साल 1959 में हेमंत कुमार ने फिल्म मेकिंग के क्षेत्र मे भी कदम रखा और ‘हेमंता बेला प्रोडक्शन’ नाम की फिल्म कंपनी की स्थापना की थी। कंपनी के बैनर तले मृणाल सेन के निर्देशन में एक बंगला फिल्म ‘नील आकाशेर नीचे’ का निर्माण किया था। इस फिल्म को प्रेसिडेंट गोल्ड मेडल मिला था।
इसके बाद हेमंत कुमार ने अपने बैनर तले 20 साल बाद ‘कोहरा’, ‘बीबी और मकान’, ‘फ़रार’, ‘राहगीर’ और ‘खामोशी’ जैसी कई हिंदी फिल्में बनाई। वर्ष 1971 में हेमंत कुमार ने एक बंगला फिल्म ‘आनंदिता ‘ का निर्देशन भी किया था, लेकिन यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से फ्लॉप रही थीं।
दिल का दौरा पड़ने से हुआ था निधन
हेमंत ने वर्ष 1979 में 40-50 के दशक में सलिल चौधरी के संगीत निर्देशन में गाये गानों को दोबारा रिकार्ड कराया और उसे ‘लीजेंड ऑफ ग्लोरी-2’ के रूप में जारी किया। उनकी यह एलबम काफ़ी सफ़ल रही। वर्ष 1989 में हेमंत कुमार बांग्लादेश की राजधानी ढाका में ‘माइकल मधुसूधन’ अवार्ड लेने गए हुए थे, जहां उन्होंने एक संगीत समारोह में भी प्रस्तुति दी। इसके बाद वे भारत लौटे लेकिन उन्हें हार्ट अटैक आ गया था। 26 सितंबर, 1989 को महान संगीतकार हेमंत कुमार ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन आज भी उनके गीत फिजां में गूंजते रहते हैं।
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