देश के मंदिरों और मजारों में महिलाओं की एंट्री को लेकर पिछले काफी समय से मांग उठ रही है, ऐसे में अब ताजा मामला दिल्ली की हजरत निजामुद्दीन दरगाह का है जहां एंट्री को लेकर पुणे की कुछ लॉ छात्राओं ने आवाज उठाई है। छात्राएं इस बारे में दरगाह प्रशासन की तरफ से कोई जवाब ना मिलने के बाद अब दिल्ली हाईकोर्ट पहुंची है।
हाईकोर्ट ने पीआईएल स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और दरगाह प्रशासन को इस बारे में नोटिस जारी कर जवाब मांगा है और अगली सुनावाई 11 अप्रैल 2019 को करने का फैसला किया है। ये तो रहा पूरा ताजा मामला अब ऐसे में यह जानना भी जरूरी है कि दरगाह के कौनसे एरिया में महिलाओं का जाना मना है और इसके पीछे क्या तर्क दिया जाता है।
हजरत निजामुद्दीन दरगाह- एक अलग एहसास
हजरत निजामुद्दीन दरगाह हर समय यहां आने वाले को एक अलग ही एहसास करवाती है। यहां की हवा में हमेशा संगीत, इत्र और मुगलई खाने की महक, इबादत, सुफियाना तराना घुला रहता है। लोगों के अलावा फिल्म डायरेक्टरों के लिए भी यह दरगाह पहली पसंद है। देश हो या विदेश सब जगह से, हर धर्म के लोगों का हुजूम यहां आता है।
कौन थे निजामुद्दीन औलिया ?
12वीं सदी से लेकर 13वीं सदी तक करीब 85 साल दिल्ली में गुजारने वाला यह सूफी संत काफी लोकप्रिय रहा। आज इनके अनुयायियों की लाखों-करोड़ों में तादाद है। उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्मे निजामुद्दीन औलिया अपने पिता को कम उम्र में खोने के बाद दिल्ली में आ बसे। दिल्ली आने के कुछ ही सालों बाद निजामुद्दीन औलिया का प्रभाव यहां बढ़ने लगा। निजामुद्दीन औलिया ने दिल्ली में रहते हुए सात बादशाहों को राज करते हुए देखा। अमीर खुसरो इनके प्रिय शिष्य माने जाते हैं।
सिर्फ औलिया की मजार में जाना है महिलाओं के लिए वर्जित
हजरत निजामुद्दीन दरगाह में वैसे तो महिलाएं कहीं भी जा सकती है लेकिन औलिया की मजार कक्ष में महिलाओं की एंट्री बैन है। महिलाएं बाहर से ही झुकती हैं, मत्था टेकती हैं। साल दर साल बीतते चले गए महिलाएं ऐसे ही बाहर इंतजार करती हैं या मत्था टेक कर चली जाती हैं।
महिलाओं के बैन पर क्या दिया जाता है तर्क
इतने सालों बाद भी महिलाओं की मजार कक्ष में एंट्री क्यों नहीं होती इसके पीछे कोई खास तर्क सामने नहीं आता है, हालांकि औलिया खुद जिंदगी भर अविवाहित रहे थे।
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