ये हुआ था

प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जबलपुर की सड़कों पर खुद ही बेचा करते थे अपनी पत्रिका

आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध व्यंग्यकार व हास्य लेखक हरिशंकर परसाई की 10 अगस्त को 28वीं पुण्यतिथि है। परसाई साहब अपनी सरल और सीधी व्यंग्य शैली लेखन के लिए जाने जाते हैं। उनको हिंदी साहित्य में व्यंग्य विधा को स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने व्यंग्य को हल्के-फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से निकालकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ दिया। उनकी व्यंग्य रचनाएं हमें गुदगुदाने को मजबूर करने के साथ उन सामाजिक वास्तविकताओं के सामने खड़ा करती हैं, जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असंभव है। इस अवसर पर जानिए महान शख्सियत हरिशंकर परसाई जी के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

हरिशंकर परसाई का आरंभिक जीवन

प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त, 1924 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के समीप जमानी गांव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही संपन्न हुई और मध्य प्रदेश में रहकर स्नातक उत्तीर्ण की। बाद में वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए नागपुर चले गए और उन्होंने हिंदी में स्नातकोत्तर आर.टी.एम., नागपुर विश्वविद्यालय से किया।

हरिशंकर ने 18 वर्ष की अवस्था में वन विभाग में नौकरी की और साथ में वह वर्ष 1942 में मॉडल हाई स्कूल में अध्यापन का भी कार्य करने लगे थे। बाद में उन्होंने नौकरी से त्याग पत्र दे दिया और वर्ष 1943 से 1947 तक निजी स्कूलों में अध्यापन किया। परसाई ने स्कूलों में पढ़ाने के साथ ही साहित्य लिखना भी शुरू कर दिया था।

परसाई जी का साहित्यिक सफर

परसाई ने जबलपुर से साहित्यिक पत्रिका ‘वसुधा’ का प्रकाशन शुरू किया और उसको बहुत सराहना मिली, परंतु घाटे की वजह से इसे बंद करना पड़ा। उन्होंने अपनी पहली व्यंग्य रचना ‘स्वर्ग से नरक जहां तक’ लिखी, जो मई, 1948 में ‘प्रहरी’ में प्रकाशित हुई थी। हरिशंकर परसाई जी ने कमजोर और खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्ग के मन की हकीकत को बहुत ही बारीकी से जाना और उसको अपने साहित्य में जगह दी।

उनकी भाषा-शैली में अपनापन के भाव छुपे हैं और पाठक को यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है। हरिशंकर परसाई ने अपनी व्यंग्य रचनाओं में लोक प्रचलित हिंदी के साथ उर्दू, अंग्रेजी शब्दों का भी खूब प्रयोग किया। जैसे कोई लेखक अपनी वसीयत लिख गया हो, वह लिखते हैं – ‘मैं मरूं तो मेरी नाक पर सौ का नोट रखकर देखना, शायद उठ जाऊं।’

हरिशंकर द्वारा लिखी प्रमुख साहित्यिक रचनाएं

उपन्यास: तट की खोज, ज्वाला और जल, रानी नागफनी की कहानी।

कहानी संग्रह: भोलाराम का जीव, हंसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे।

परसाई रचनावली: सजिल्द तथा पेपरबैक।

संस्मरण: तिरछी रेखाएं।

लेख संग्रह: वैष्णव की फिसलन, काग भगोड़ा, आवारा भीड़ के खतरे, तब की बात और थी, भूत के पांव पीछे, अपनी-अपनी बीमारी, बेईमानी की परत, प्रेमचंद के फटे जूते, माटी कहे कुम्हार से, शिकायत मुझे भी है, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन घिसे, हम एक उम्र से वाकिफ़ हैं, सदाचार का ताबीज।

सम्मान

परसाई जी को ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ रचना के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

महान रचनाकार हरिशंकर परसाई का निधन

हिंदी साहित्य को नई विधा देने वाले महान रचनाकार और व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने वर्ष 1995 में 10 अगस्त के दिन इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। उनका निधन जबलपुर में हुआ था।

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Raj Kumar

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