‘बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था, हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा’ हम सभी ने ये शेर कई दफा पढ़ा और सुना होगा। इस शेर का अधिकतर इस्तेमाल राजनीति में या किसी गलत व्यक्ति के लिए किया जाता है। मगर बहुत ही कम लोग इस शेर को अर्ज करने वाले शायर का नाम जानते हों। इस मशहूर शेर को लिखने वाले शायर का नाम शौक़ बहराइची है, जिससे शायद ही लोग वाकिफ रखते हों। वह अपने ज़माने में हास्य व व्यंग्य शायर के रूप में खूब विख्यात हुए।
शौक़ बहराइची का जन्म 6 जून, 1884 को उत्तरप्रदेश में अयोध्या के सैयदवाड़ा मोहल्ले में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनका असली नाम रियासत हुसैन रिज़वी था। जन्म के बाद वे बहराइच में आकर बस गए और इसी कारण उनका नाम बहराइची पड़ गया। वे अपने दौर के बड़े ही मशहूर शायर हुआ करते थे। मगर, अफसोस कि आज उन्हें जानने वाला कोई नहीं। उनका साहित्य की दुनिया में भी बहुत कम जिक्र मिलता है। 13 जनवरी, 1964 को बहराइची ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। बहराइची ने अपने अंतिम दिन बहराइच में बिताए थे। मशहूर शायर शौक़ बहराइची की आज 139वीं जयंती के मौके पर पढ़िए उनके कुछ चुनिंदा शेर…
“अल्लाहो गनी इस दुनिया में, सरमाया परस्ती का आलम,
बेज़र का कोई बहनोई नहीं, ज़रदार के लाखों साले हैं”
“सांस फूलेगी खांसी सिवा आएगी, लब पे जान हजी बराह आएगी,
दादे फ़ानी से जब शौक़ उठ जाएगा, तब मसीहा के घर से दवा आएगी”
“हर मुल्क इस के आगे झुकता है एहतिरामन
हर मुल्क का है फ़ादर हिन्दोस्ताँ हमारा”
“वाइज़ ये गुलिस्ताँ ये बहारें ये घटाएँ
साग़र कोई ऐसे में खनक जाए तो क्या हो”
“उठ कर तेरी चौखट से हम और चले जाएँ
इंग्लैण्ड अरे तौबा जापान अरे तौबा”
सकूँ मिलता है उन को और न हम को चैन रातों को
परेशाँ कर रखा है आप के हाल-ए-परेशाँ ने
उन की वहशत से ये ज़ाहिर हो रहा है ख़ुद-ब-ख़ुद
ये उसी मौज़ा में रहते हैं जो है मंगल के पास।।
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