कई दिनों से सोशल मीडिया पर एक शब्द ‘हैलोवीन’ काफी तेजी से वायरल हो रहा है जिसे लेकर काफी पोस्ट भी देखी जा रही है। देश में ‘मीटू’ की आंधी के तुरंत बाद ही हैलोवीन ने अपने पैर पसार लिए मगर कई लोगों को अभी भी इसका मतलब और औचित्य समझ नहीं आ रहा होगा। चलिए हम बताते हैं कि इस नई बला के बारे में।
दरअसल हैलोवीन एक अमेरिकी परंपरा है जिसे हर साल 31 अक्टूबर की रात को मनाया जाता है। ये परंपरा ईसाईयों द्वारा शुरू की गई थी जिसके तहत हर साल अक्टूबर के आखिरी रविवार को ईसाई लोग अपने दिवंगत प्रियजनों की याद में अजीबों गरीब कपड़े और चेहरे पर डरावने मुखौटे लगाए घूमते हैं। 21 सदी में इस परंपरा ने नया रूप ले लिया और अब लोग हैलोवीन मनाने के नाम पर पार्टियां करते और गेम्स खेलते दिखाई देते हैं।
पश्चिम की इस अनूठी परंपरा की हवा हमारे देश में भी आ पहुंची और जिसको सोशल मीडिया से काफी बल मिला है। आज देश के कई शहरों में हैलोवीन फेस्टिवल मनाया जाता है जिसके तहत लेट नाइट पार्टीज और हॉरर म्यूजिक बजाकर इसे सैलिब्रेट करते हैं।
इस बार भी 31 अक्टूबर की रात को देश के कई बड़े शहरों में होटल,पब,डिस्क और रेस्त्राओं पर हैलोवीन की थीम पर कई आयोजन हुए जिसमें युवाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। हैलोवीन मनाने पर कुछ लोग इसे पश्चिमी सभ्यताओं और मान्यताओं का भारत पर तेजी से हो रहे असर के रूप में भी देख रहे हैं और इसपर कड़ी आपत्ति दर्ज करा रहे हैं।
हैलोवीन फैस्टिवल मनाने की शुरूआत सबसे पहले इंग्लिश देशों आयरलैंड और स्कॉटलैंड से हुई थी।
अपने पूर्वजों की याद में ईसाई समूह अक्टूबर महीने के आखिरी रविवार के दिन इस त्यौहार को मनाता है जो कि कई दिन चलता है।
हैलोवीन मनाने के पारंपरिक तरीकों में कद्दू को काटकर उसे किसी डरावनी सूरत का आकार दिया जाता है और उसको अंदर से खोखला कर उसमें मोमबत्तियां डाल दी जाती हैं। इन कद्दूओं को लोग अपने घर के बाहर लगाते हैं और थोड़े दिनों के बाद इन्हें दफन कर दिया जाता है।
अमेरिका,इंग्लैंड और कुछ यूरोपिय देश इसे नए साल के आगमन की खुशियों के रूप में भी मनाते हैं।
हैलोवीन पर लोग डरावनी वेशभूषा इसलिए धारण करते हैं ताकि उनके प्रियजनों की आत्मा को शांति प्रदान हो सके।
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