हलचल

गुर्जर…आरक्षण…और आंदोलन, वो तीन शब्द जिन्होंने 13 साल से पूरे राजस्थान को हिला रखा है

गुर्जर…आरक्षण… और आंदोलन। ये तीन शब्द मैं क्लास 10 से सुनता आ रहा हूं, तब से लेकर आज तक हर कुछ समय बाद राजस्थान की धरती गुर्जर आरक्षण आंदोलन की आग में झुलसती है। ताजा आंदोलन की शुरूआत 8 फरवरी से से एक बार फिर सवाई माधोपुर के मलारना डूंगर से हुई है। पिछले करीब एक दशक से राजस्थान का गुर्जर समाज सरकारी नौकरियों में 5 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहा है।

हर नई सरकार में गुर्जर समाज के लोग कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की अगुवाई में पुरजोर आंदोलन करते हैं, हर बार कागजी आश्वासन भर से शांत हो जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ आंदोलन की आग ठंडी पड़ने के बाद सरकारी तंत्र को करोड़ों का नुकसान, यातायात चौपट और जनजीवन अस्त-व्यस्त यह तस्वीरें भर देखने के लिए रह जाती है।

गुर्जर हर बार आंदोलन के लिए रेल की पटरियों का या सड़क मार्गों पर विरोध प्रदर्शन का रास्ता चुनते हैं। ऐसे में आइए आपको बताते हैं क्या और कैसा रहा है गुर्जर आरक्षण आंदोलन का इतिहास।

2006 में पहली बार सड़कों पर उतरे गुर्जर

देश में आरक्षण को लेकर समय-समय पर आंदोलन हुए हैं लेकिन राजस्थान का गुर्जर समाज पहली बार साल 2006 में गुर्जर आरक्षण आंदोलन समिति के बैनर तले सड़कों पर उतरा। गुर्जर समाज के नेता किरोड़ी सिंह बैंसला की अगुवाई में तब से लेकर अब तक 6 बार उग्र प्रदर्शन हुआ है। भाजपा और कांग्रेस की सरकारें आती और जाती रही लेकिन गुर्जरों की समस्या का समाधान नहीं निकला। 2006 में एसटी में आरक्षण देने की मांग को लेकर पहली बार गुर्जर सड़कों पर थे उस समय की भाजपास सरकार ने एक कमेटी बनाई लेकिन वो बेनतीजा रही।

चोपड़ा कमेटी ने गुर्जरों को एसटी के लाय़क नहीं माना

2006 का आंदोलन कमेटी बनने से एक बार के लिए शांत हुआ लेकिन खत्म नहीं हुआ। 21 मई 2007 फिर एक बार गुर्जर पीपलखेड़ा पाटोली से आंदोलन में उतरे। सड़कों को जाम कर दिया गया और इस दौरान हुए दंगों में 28 लोगों को जान गंवानी पड़ी। आखिर में जाकर सरकार ने चोपड़ा कमेटी बनाई जिसने गुर्जरों को एसटी कैटेगरी में शामिल करने के योग्य ही नहीं माना।

आमने-सामने की लड़ाई का ऐलान कर तीसरी बार उतरे गुर्जर

पीपलखेड़ा पाटोली से गुर्जर आंदोलन का खास नाता रहा है। आंदोलन की तीसरी बार शुरूआत भी 2007 के सालभर बाद यहीं से ही हुई। इस बार गुर्जरों ने आर-पार की लड़ाई का ऐलान किया। 23 मार्च 2008 को आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया, रेलवे ट्रैक पर ट्रैन रोकी गई। पुलिस ने वहां फायरिंग भी की जिसमें सात आंदोलनकारियों को गोली लगी। वहीं हाईवे जाम के दौरान भी हिंसा में 23 लोग मारे गए। आंदोलन के आगे बढ़ते-बढ़ते मौतों का आंकड़ा भी बढ़ गया जो 72 तक पहुंच चुका है।

आगे के आंदोलनों का राजस्थान का भरतपुर जिला बना केंद्र

साल 2008 के बाद 2010 और 2015 में भी दो बार फिर गुर्जरों ने आंदोलन किया। इस बार आंदोलन के लिए राजस्थान का भरतपुर जिले का गांव पीलु का पुरा चुना गया। आखिरकार सरकार 5 प्रतिशत आरक्षण के लिए मानी लेकिन आगे चलकर कानूनी दावपेंचों के बीच 1 प्रतिशत ही मिला। साल 2018 आ गया मामला अनसुलझा ही रहा और अब वर्तमान में एक बार फिर राजस्थान का गुर्जर समाज सड़कों और रेल की पटरियों पर है।

sweta pachori

Leave a Comment

Recent Posts

रोहित शर्मा ने कप्‍तान हार्दिक पांड्या को बाउंड्री पर दौड़ाया।

रोहित शर्मा ने सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ फील्डिंग की सजावट की और कप्‍तान हार्दिक पांड्या…

9 months ago

राजनाथ सिंह ने अग्निवीर स्कीम को लेकर दिया संकेत, सरकार लेगी बड़ा फैसला

अग्निवीर स्कीम को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने…

9 months ago

सुप्रीम कोर्ट का CAA पर रोक लगाने से इनकार, केंद्र सरकार से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) रोक लगाने से इनकार कर दिया…

9 months ago

प्रशांत किशोर ने कि लोकसभा चुनाव पर बड़ी भविष्यवाणी

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बड़ी भविष्यवाणी की है। प्रशांत…

9 months ago

सुधा मूर्ति राज्यसभा के लिए नामित, PM मोदी बोले – आपका स्वागत है….

आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंफोसिस के चेयरमैन नारायण मूर्ति…

10 months ago

कोलकाता हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने थामा भाजपा दामन, संदेशखाली पर बोले – महिलाओं के साथ बुरा हुआ है…

कोलकाता हाई के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय भाजपा में शामिल हो गए है। उन्होंने हाल…

10 months ago