दो बार कार्यवाहक पीएम रहे थे गुलज़ारीलाल नंदा, कई किताबों का किया लेखन

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देश की आजादी और श्रमिकों की समस्याओं के समाधान के लिए लड़ने वाले राजनेता और शिक्षाविद गुलज़ारीलाल नंदा की 4 जुलाई को 125वीं जयंती है। गुलजारी लाल भारत के दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे। नन्दा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनके जीवन का सिद्धांत सादा जीवन और उच्च विचार था। वह श्रमिकों की समस्याओं को लेकर हमेशा जागरूक और तत्पर रहे व उन समस्याओं के निदान का खूब प्रयास भी किया। इस खास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

गुलज़ारी लाल नंदा का प्रारंभिक जीवन

गुलज़ारी लाल नंदा का जन्म 4 जुलाई, 1898 को अविभाजित भारत के पंजाब स्थित सियालकोट (पाकिस्तान) में हुआ था। इनके पिता बुलाकी राम नंदा तथा माता श्रीमती ईश्वर देवी नंदा थी। इनकी प्रारंभिक शिक्षा सियालकोट में पूरी हुई, जिसके बाद नंदा ने लाहौर के फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। वह अध्ययन करने के लिए आगरा और अमृतसर भी गए।

उन्होंने कला वर्ग में स्नातकोत्तर किया और क़ानून की स्नातक (एल.एल.बी) उपाधि प्राप्त की। इनका विवाह वर्ष 1916 में 18 वर्ष की अवस्था में लक्ष्मी देवी से हुआ। इन दोनों के दो बेटे और एक बेटी थी। गुलज़ारीलाल नंदा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय (वर्ष 1920-1921) में श्रम संबंधी समस्याओं पर एक शोध अध्येता के रूप में कार्य किया। नंदा वर्ष 1921 में नेशनल कॉलेज (मुंबई) में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक के पद पर कार्य करने लगे।

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नंदा का राजनीतिक व सार्वजनिक जीवन

पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने देश की आजादी में बढ़-चढ़कर भाग लिया था। नंदा वर्ष 1921 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन में शामिल हो गए थे। वर्ष 1922 में वह अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन के सचिव बने, जिसमें उन्होंने वर्ष 1946 तक काम किया। उन्हें वर्ष 1932 में सत्याग्रह आंदोलन के दौरान कारावास की सजा काटनी पड़ीं। वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान आंदोलन में भाग लेने के कारण नंदा को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और वर्ष 1944 तक जेल में कैद रहे।

गुलजारी लाल वर्ष 1937 में बम्बई विधानसभा से निर्वाचित हुए और वह वर्ष 1937 से वर्ष 1939 तक मुंबई सरकार के संसदीय सचिव (श्रम एवं उत्पाद शुल्क) के पद पर कार्यरत रहे। बाद में, मुबंई सरकार के श्रम मंत्री (वर्ष 1946 से वर्ष 1950 तक) के रूप में उन्होंने राज्य विधानसभा में सफलतापूर्वक ‘श्रम विवाद विधेयक’ को सफलता पूर्वक पास कराया। नंदा ने कस्तूरबा मेमोरियल ट्रस्ट में न्यासी के रूप में, हिंदुस्तान मजदूर सेवक संघ में सचिव के रूप में एवं बॉम्बे आवास बोर्ड में अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वे राष्ट्रीय योजना समिति के सदस्य भी रहे। इन्होंने ‘इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बाद में वह इसके अध्यक्ष भी बने।

श्रम व आवास पर अध्ययन के लिए विदेश भेजे गए

वर्ष 1947 में नंदा को जेनेवा में हुए अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में एक सरकारी प्रतिनिधि के रूप में भाग लेने के लिए भेजा गया। उन्होंने सम्मेलन द्वारा नियुक्त ‘द फ्रीडम ऑफ़ एसोसिएशन कमेटी’ पर कार्य किया तथा स्वीडन, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, बेल्जियम एवं इंग्लैंड का दौरा किया, ताकि वे उन देशों में श्रम एवं आवास की स्थिति का अध्ययन कर सकें। वर्ष 1950 में उन्हें योजना आयोग के उपाध्यक्ष के लिए चुना गया। गुलज़ारीलाल नंदा को वर्ष 1951 में केंद्र सरकार में योजना मंत्री का पद दिया गया। उन्हें सिचाई और ऊर्जा विभाग की जिम्मेदारी भी सौंपी गईं।

वर्ष 1952 में वे बॉम्बे से लोकसभा के लिए चुने गए और केंद्र में पुनः योजना, सिंचाई और ऊर्जा मंत्री बनाये गए। वर्ष 1957 में नंदा एक बार फिर लोकसभा चुनाव में विजयी हुए और पुनः केन्द्रीय श्रम, रोज़गार और योजना मंत्री का कार्यभार संभाला। इसके बाद उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया। वर्ष 1962 के लोकसभा चुनाव में गुलजारीलाल साबरकांठा से चुने गए और वर्ष 1962-63 में ‘श्रम और रोज़गार’ तथा वर्ष 1963 से वर्ष 1966 तक केन्द्रीय गृह मंत्री के पद पर रहे।

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दो बार 13-13 दिनों के लिए कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने

पूर्व पीएम गुलज़ारीलाल नंदा को दो बार भारत का कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया और दोनों बार ही वह महज 13-13 दिनों के लिए पीएम बने। पहली बार उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद वर्ष 1964 में और दूसरी बार लालबहादुर शास्त्री की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद वर्ष 1966 में कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य मिला।

गुलजारीलाल नंदा ने कई पुस्तकों का किया लेखन

गुलजारी राजनेता होने के साथ ही एक अच्छे लेखक भी थे। उन्होंने अपने जीवन काल में कई पुस्तकें लिखी, जिनमें प्रमुख हैं- सम आस्पेक्ट्स ऑफ़ खादी, अप्रोच टू द सेकंड फ़ाइव इयर प्लान, गुरु तेगबहादुर, संत एंड सेवियर, हिस्ट्री ऑफ़ एडजस्टमेंट इन द अहमदाबाद टेक्सटाल्स, फॉर ए मौरल रिवोल्युशन तथा सम बेसिक कंसीड्रेशन।

भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित हुए

पूर्व कार्यवाहक प्रधानमंत्री गुलज़ारी लाल नन्दा को वर्ष 1997 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। इससे पहले वह दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से भी नवाजे गए थे।

गुलजारी लाल नन्दा का देहांत

देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री और गांधीवादी राजनेता गुलज़ारीलाल नंदा का निधन 100 वर्ष की अवस्था में 15 जनवरी, 1998 को हुआ।

डेढ़ दर्जन भाषाओं के जानकार थे पूर्व पीएम पी. वी. नरसिम्हा राव, आर्थिक सुधारों के रहे जनक

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