ये हुआ था

रिकॉर्ड बाईस फिल्मफेयर व 5 बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीत चुके हैं गुलज़ार साहब

गुलज़ार.. नाम सुनते ही ज़हन में एक ऐसी शख़्सियत की तस्वीर सामने आती है, जिसके बिना भारतीय सिनेमा अधूरा-सा लगता है। हिंदी-उर्दू शायरी की दुनिया की अज़ीम हस्ती गुलज़ार साहब का आज 89वां जन्मदिन है। गुलज़ार का जन्म 18 अगस्त, 1934 को पंजाब प्रांत के झेलम जिले स्थित दीना गांव में हुआ था। वर्ष 1947 के बंटवारे के बाद अब यह क्षेत्र पाकिस्तान में आता है। उनका जन्म एक सिख परिवार में हुआ था। गुलज़ार का बचपन का नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा था। बाद में शेर-ओ-शायरी की दुनिया में आकर वह गुलज़ार हो गए। गुलज़ार साहब की अबतक की ज़िंदगी बड़ी दिलचस्प रही हैं। इस अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

बचपन में मां के गुजर जाने से नहीं मिला पिता का दुलार

गुलज़ार सा​हब अपने बचपन का लुत्फ उठा ही रहे थे कि उनके सिर से मां का आंचल उठ गया। बहुत कम उम्र में मां को खोने वाले इस शायर को पिता से बहुत दुलार नहीं मिला। वर्ष 1947 में देश का बंटवारा होने की वजह से उनका परिवार पंजाब के अमृतसर आकर बस गया। वर्ष 1950 में गुलज़ार अपने भाई के काम में हाथ बंटाने के लिए मुंबई चले आए। तब उन्होंने सोचा भी नहीं था कि एक दिन वे फ़िल्मों में काम करेंगे।

पैसों की तंगहाली की वजह से उन्होंने मुंबई के वर्ली स्थित एक मोटर गैराज में मैकेनिक का काम करना शुरू कर दिया था। गुलजार को बचपन से लिखने का बहुत शौक था, इसलिए वह खाली समय में कविताएं लिखा करते थे। हालांकि, उनके पिता को यह सब पंसद नहीं था। इसके बावजूद गुलज़ार साहब नियमित लिखा करते थे। धीरे-धीरे उनका रूझान फ़िल्मी दुनिया की तरफ़ हुआ। अपनी शानदार लेखिनी के दम पर गुलज़ार बहुत जल्द ही बॉलीवुड की बड़ी हस्ती बन गए।

बिमल रॉय के बतौर असिस्टेंट फिल्मी करियर की शुरुआत की

गुलज़ार उन दिनों के फ़िल्मी गीतकारों में से एक राजेंद्र कृष्ण के घर पर किराएदार की हैसियत से रहा करते थे। यहां रहते हुए ही वे शैलेंद्र जैसे गीतकारों के संपर्क में आए। बाद में गुलज़ार ने बिमल रॉय के सहायक के तौर पर काम करना शुरु कर दिया था। लेकिन लेखन की शुरुआत नहीं हो पाई थी। शैलेंद्र ने ही उन्हें सबसे पहले बिमल रॉय की फ़िल्म में गाने लिखने के लिए प्रेरित किया और गुलज़ार साहब का नाम बिमल रॉय के सहयोगी देबू सेन को सुझाया। इस तरह से वर्ष 1963 में बंदिनी फ़िल्म के गीत ‘मोरा गोरा अंग लइ ले, मोहे श्याम रंग दई दे’ हुई। धीरे-धीरे उनके साथ शायर, लेखक, गीतकार, निर्माता, निर्देशक जैसी कई पहचान जुड़ती गई।

कई सम्मानों से नवाजे जा चुके हैं गुलजार

निर्देशक के तौर पर गुलजार साहब ने अपना करियर वर्ष 1971 में ‘मेरे अपने’ से शुरू किया था। इससे पहले बतौर लेखक उन्होंने ‘आशीर्वाद, आनन्द, खामोशी’ जैसी फिल्मों के लिए डायलॉग और स्क्रिप्ट लिखी थी। गुलजार ने संजीव कुमार के साथ मिलकर ‘आंधी, मौसम, अंगूर और नमकीन’ जैसी फिल्में भी निर्देशित कीं।

गुलज़ार साहब 22 बार फिल्मफेयर तो पांच राष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम कर चुके हैं। वर्ष 2010 में उन्हें ‘स्लमडॉग मिलेनेयर’ के गाने ‘जय हो’ के लिए ग्रैमी अवार्ड से नवाजा गया था। उन्हें वर्ष 2013 के ‘दादा साहेब फालके’ सम्मान से भी नवाज़ा जा चुका है। गुलज़ार ने एक्ट्रेस राखी से शादी की थी। बाद में दोनों अलग हो गए। इनकी एक बेटी मेघना गुलज़ार है। मेघना ‘राज़ी’, ‘छपाक’ जैसी बॉलीवुड फिल्मों का निर्देशन कर चुकी हैं।

Read: वर्षों पहले जुदा होकर भी एक्ट्रेस राखी ने नहीं लिया मशहूर गीतकार पति से डिवोर्स

Raj Kumar

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