अगर ये कहा जाए कि कोई बड़ा परिवर्तन कौन कर सकता है? क्या वो लोग जो मध्यम वर्गीय है या वो जो आर्थिक रूप से सक्षम संस्था या व्यक्ति?
शायद सही सोचा आपने। वो वर्ग आर्थिक रूप से सम्पन्न व्यक्ति या संस्था ही हो सकता है जो कोई भी परिवर्तन बड़े पैमाने पर ला सकते हैं। क्योंकि इन लोगों व संस्थाओं के इर्दगिर्द ही पूरी व्यवस्था घूमती है। अगर यह वर्ग एक सकारात्मक माहौल बनाये तो क्या असंभव है।
ऐसा ही कुछ टोक्यो ओलम्पिक की आयोजन समिति कर रही है। वह हमें ई-कचरे से ही निजात नहीं दिलाएगी बल्कि ओलम्पिक मेडल विजेताओं के लिए इस ई-कचरे से निकलने वाले धातुओं से मेडल भी बनाएगी। यानि एक सकारात्मक सोच जो मानव व पर्यावरण के हित में है। तो हुआ न बड़े आर्थिक समुदाय की की पहल से एक बड़ा परिवर्तन जिसे ओलम्पिक 2020 में देखने को मिलेगा और बार-बार यही दोहराया जाएगा ताकि लोगों में ई-कचरे के प्रति एक सकारात्मक सोच विकसित हो और इन्हें वे इधर-उधर न फेंके, बल्कि उसे संभाल कर रखे और अपने नजदीकी केन्द्र पर बेच सकते हैं।
क्या है टोक्यो ओलम्पिक आयोजन समिति की पहल
जापान अपनी तकनीक व सोच के लिए दुनिया में जाना जाता है। जापान में होने वाले टोक्यो ओलम्पिक 2020 की आयोजन समिति ने 2017 से ही लोगों से पुराने स्मार्टफोन और लैपटॉप सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक कचरे को एकत्रित करने की योजना लॉन्च की थी, जिसका उद्देश्य पदकों के लिए धातु इकट्ठा करना था, साथ ही पर्यावरण व मानव को ई-कचरे के दुष्परिणामों से बचाना था।
जापान में 2020 में ओलम्पिक खेलों का आयोजन होगा, इन खेलों में कोई नई बात नहीं है खास है मेडल, जो ई-कचरे से बनाए जाएंगे।
दुनिया के सर्वश्रेष्ठ एथलिट टोक्यो ओलंपिक में इलेक्ट्रॉनिक कचरे के पुनःचक्रण (रिसाइकल) प्रक्रिया से मिली धातु से बने पदक हासिल करने के लिए मैदान में उतरेंगे। इन खेलों के आयोजकों ने बताया है कि इन पदकों को पुराने स्मार्टफोन, लैपटॉप और दूसरे गैजेट्स से बनाया जाएगा। आयोजकों ने कहा कि जितनी मात्रा में धातु मिली है, उससे उसका लक्ष्य पूरा हो जाएगा और यह प्रक्रिया मार्च के अंत में समाप्त हो जाएगी।
इस योजना में पिछले साल नवंबर तक आयोजकों ने 47,488 टन बेकार उपकरण एकत्रित किए थे, जिसमें से स्थानीय लोगों ने 50 लाख इस्तेमाल किए फोन दिए थे। इनमें से करीब 8 टन गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज निकाला जाएगा, जिससे 5000 पदक बनाए जाएंगे।
इससे पहले रियो ओलंपिक में भी मेडल बनाने के लिए ई-कचरे के रिसाइकल से मिली धातु का इस्तेमाल किया था, जिसमें 30 प्रतिशत चांदी और कांसा ऐसे ही प्राप्त किया गया था।
इस ई-कचरे से गोल्ड मेडल के लिए 28.4 किलोग्राम धातु एकत्रित किया जा चुका है जिसका लक्ष्य 30.3 किग्रा है। वहीं, सिल्वर मेडल के लिए 3500 किग्रा धातु एकत्रित किया जा चुका है जिसका लक्ष्य 4100 किग्रा है। वहीं, ब्रॉन्ज के लिए यह लक्ष्य 2700 किग्रा रखा गया था जोकि पूरा किया जा चुका है।
2017 में शुरू इस अभियान में जनता, बिजनेस और उद्योग जगत को भी शामिल किया गया। ऐसा यह पहला अभियान है।
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