भारत की आज़ादी के दौरान राजस्थान की देशी रियासतों के लोगों में राष्ट्रीय चेतना फैलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारी गोकुलभाई भट्ट की आज 6 अक्टूबर को 37वीं पुण्यतिथि है। गोकुलभाई को ‘राजस्थान का गांधी’ के नाम से भी पुकारा जाता है। वह एक कुशल वक्ता, कवि, बहुभाषाविद, पत्रकार व लेखक थे। इसके अलावा गोकुलभाई एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। वह भारत की संविधान सभा के सदस्य थे और बॉम्बे राज्य का प्रतिनिधित्व करते थे। गोकुल भाई भट्ट कुछ समय तक सिरोही रियासत के मुख्यमंत्री भी बने थे। उन्होंने राज्य में जल संरक्षण पर काफी जोर दिया और लोगों को जागरूक भी बनाया। इस अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
गोकुलभाई भट्ट का जन्म 19 फरवरी, 1898 को राजस्थान की तत्कालीन सिरोही रियासत के हाथल गांव में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम गोकुलभाई दौलतराम भट्ट था। उनके पिता दौलतराम तथा माता चम्पाबाई सात्विक विचारों वाले थे। उनके पिता बंबई (मुंबई) के व्यवसायी के यहां नौकरी करते थे, इस कारण से उनका बचपन बंबई में बीता। उनकी आरंभिक शिक्षा बंबई में ही हुई थी। उन्होंने कृषि विज्ञान में आगे पढ़ाई के लिए यूएसए जाने का विचार किया, लेकिन बाद में वह गांधीजी के देश के प्रति समर्पण भाव को देखकर प्रभावित हुए। उन्होंने देश की आजादी और समाज सेवा में अपना जीवन लगा दिया।
क्रांतिकारी गोकुलभाई भट्ट पर वर्ष 1920 में ‘असहयोग आंदोलन’ के दौरान गांधीजी द्वारा की गई घोषणाओं का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने सरकारी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार किया और आगे पढ़ने का विचार ही त्याग दिया। वह देश की आज़ादी में कूद पड़े। गोकुलभाई को पहली बार 6 अप्रैल, 1921 को बंबई सरकार ने गिरफ्तार किया। इसके बाद भी उन्होंने गांधीजी के हर आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। वर्ष 1930 के ‘नमक सत्याग्रह’ के दौरान वह नमक कानून तोड़ने के सिलसिले में गिरफ्तार हुए। गोकुलभाई भट्ट जेल से रिहा होने के बाद भूमिगत रहे और आंदोलन में संलग्न रहे, जिसके कारण उन्हें पुन: गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्होंने वर्ष 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया व 8 अगस्त, 1944 को बंबई में गिरफ्तार हुए तथा 4 साल जेल में रहे।
समाज सेवक गोकुलभाई भट्ट ने मुख्यत: खादी ग्रामोद्योग, शराबबंदी, गोसेवा प्राकृतिक चिकित्सा, भूदान-ग्रामदान, ग्राम स्वराज का प्रचार-प्रसार किया। इसके अलावा उनका राजस्थान में विनोबा भावे के ‘भूदान आंदोलन’ को सफल बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
गोकुलभाई भट्ट ने 22 जनवरी, 1939 को सिरोही प्रजामंडल की स्थापना की थी। देश की आजादी के बाद उन्होंने राजस्थान के एकीकरण के दौरान सिरोही जिले के विभाजन और माउंट आबू को गुजरात को सौंपने का जमकर विरोध किया। इसके परिणामस्वरूप माउंट आबू राजस्थान का हिस्सा बना। हालांकि, जिले का कुछ हिस्सा गुजरात में सम्मिलित किया गया।
गोकुलभाई भट्ट को वर्ष 1971 में भारत सरकार द्वारा देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1982 को उन्हें ‘जमनालाल बजाज’ पुरस्कार से नवाजा गया। आज़ादी के बाद वर्ष 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें पाली संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया था, लेकिन गोकुलभाई को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।
राजस्थानियों में राष्ट्रीय चेतना जाग्रत करने वाले गोकुलभाई भट्ट का 6 अक्टूबर, 1986 को निधन हो गया।
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