संगीत की दुनिया में एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। उनकी आवाज के दीवानों में पंडित नेहरू व महात्मा गांधी भी शामिल थे। सुब्बुलक्ष्मी की आवाज पर स्वयं स्वर कोकिला लता मंगेशकर भी मंत्र-मुग्ध थीं। सुरों की देवी कही जाने वाली एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी का जन्म 16 सितंबर, 1916 को मदुरै के देवदासी परिवार में हुआ था। यही वजह है कि उन्हें कुजम्मा के नाम से भी जाना जाता था। भक्ति परिदृश्य में पली-बढ़ी सुब्बुलक्ष्मी को भक्ति गायन के संस्कार भी वहीं से मिले। एम एस सुब्बुलक्ष्मी की 107वीं जयंती के अवसर पर जानते हैं उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
सुरों की मल्लिका एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी के भीतर छुपी प्रतिभा को जल्द ही उनके परिवार ने भांप लिया। एम एस सुब्बुलक्ष्मी ने महज 8 साल की उम्र में पहली बार जनसभा के सामने गाना शुरू किया। उनका पहला कार्यक्रम कुम्बाकोनम में महामहम उत्सव में हुआ था।
गायन की दुनिया में एम. एस. सुब्बालक्ष्मी का नाम उभर रहा था, जब एक हद तक पुरुष वर्ग का वर्चस्व था। ठीक उसके विपरित सुब्बुलक्ष्मी अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहीं। महज 10 साल की उम्र में सुब्बुलक्ष्मी का भक्ति एलबम आया था। इसके बाद उन्होंने मद्रास जाने का फैसला किया और यहां आकर सुब्बुलक्ष्मी मद्रास संगीत अकादमी से जुड़ गईं।
एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी ने अभिनय पारी की शुरुआत वर्ष 1938 में आई फिल्म ‘सेवासदन’ से की। इस फिल्म के बाद वर्ष 1945 में उनकी यादगार फिल्म भक्त मीरा आई। इस फिल्म के भजनों को सुब्बुलक्ष्मी ने ही आवाज दी थी। सुब्बुलक्ष्मी ने कई फिल्मों में काम किया, मगर आखिरकार उन्होंने गायन में ही करियर बनाने को चुना।
संगीत और अभिनय में उनके योगदान को देखते हुए एम एस सुब्बुलक्ष्मी को कई पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें वर्ष 1954 में पद्म भूषण, 1954 में संगीत कालानिधि, 1974 में रैमन मैग्सेसे अवॉर्ड, 1975 में पद्म विभूषण, 1988 में कालीदास सम्मान, 1990 में इंदिरा गाँधी पुरस्कार और 1998 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। प्रसिद्ध पार्श्व गायिका एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी का निधन 11 दिसंबर, 2004 को चेन्नई में हुआ।
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