प्रसिद्ध कन्नड़ नाटककार, रंगकर्मी, अभिनेता, निर्देशक और स्क्रीन राइटर गिरीश कर्नाड का सोमवार को 81 साल की उम्र में निधन हो गया। मल्टीपल ऑर्गन फेल होने के कारण उन्होंने बेंगलुरु में अंतिम सांस ली। वे पिछले काफी समय से बीमार थे। गिरीश के निधन की खबर से मनोरंजन जगत के लोग दुखी हैं और सोशल मीडिया के जरिए अपना दुख प्रकट कर रहे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर शोक जताया है। मोदी ने ट्विटर पर लिखा, ‘गिरीश कर्नाड को सभी माध्यमों में उनके बहुमुखी अभिनय के लिए याद किया जाएगा। उनके काम आने वाले वर्षों में लोकप्रिय होते रहेंगे। उनके निधन से दुखी हूं। उनकी आत्मा को शांति मिले।’
गिरीश के कॅरियर की शुरुआत की बात करें तो उन्होंने 1970 में कन्नड़ फ़िल्म ‘संस्कार’ से अपने सफर की शुरुआत की थी। उनकी पहली फिल्म को ही कन्नड़ सिनेमा के लिए राष्ट्रपति का गोल्डन लोटस पुरस्कार मिला था।
गिरीश के कॅरियर में ‘मालगुड़ी डेज’ काफी खास रहा था। आर. के. नारायण की किताब पर आधारित टीवी सीरियल ‘मालगुड़ी डेज’ में उन्होंने स्वामी के पिता की भूमिका निभाई थी। यह आज भी वह शो याद किया जाता है। इसके अलावा 1990 की शुरुआत में विज्ञान पर आधारित टीवी शो ‘टर्निंग पॉइंट’ में उन्होंने होस्ट की भूमिका निभाई थी। यह शो में काफी फेमस हुआ था और गिरीश का अंदाज सभी को भाया था।
उनकी आखिरी फिल्म कन्नड़ भाषा में बनी ‘अपना देश’ थी, जो 26 अगस्त को रिलीज हुई। बॉलीवुड की उनकी आखिरी फ़िल्म ‘टाइगर ज़िंदा है’ (2017) में डॉ. शेनॉय का किरदार निभाया था।
कन्नड़ : ‘तब्बालियू मगाने’, ‘ओंदानोंदु कलादाली’, ‘चेलुवी’, ‘कादु’ और ‘कन्नुड़ु हेगादिती’
हिंदी : ‘निशांत’ (1975), ‘मंथन’ (1976) और ‘पुकार’ (2000) ‘इक़बाल’ (2005), ‘डोर’ (2006), ‘8×10 तस्वीर’ (2009) और ‘आशाएं’,’एक था टाइगर’ (2012), ‘टाइगर ज़िंदा है’ (2017) आदि।
गिरीश कर्नाड की कन्नड़ और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में उनकी समान पकड़ थी उन्होंने अपना पहला नाटक कन्नड़ में लिखा जिसे बाद में अंग्रेज़ी में भी अनुवाद किया। साथ ही उनके नाटकों में ‘ययाति’, ‘तुग़लक’, ‘हयवदन’, ‘अंजु मल्लिगे’, ‘अग्निमतु माले’, ‘नागमंडल’ और ‘अग्नि और बरखा’ काफी प्रसिद्ध रहे हैं।
गिरीश कर्नाड को 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1974 में पद्म श्री, 1992 में पद्म भूषण, 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1992 में कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार और 1998 में उन्हें कालिदास सम्मान से सम्मानित किया गया।
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