हलचल

कुत्ते ने ब्लड डोनेट करके बचाई जान, कभी नहीं सुना होगा ऐसा किस्सा…

​कहते हैं कि इंसान से ज्यादा वफादार जानवर होते हैं। खासतौर से कुत्ते की वफादारी पर तो फिल्में तक बनी हैं। हाल ही में एक ऐसा ही केस हुआ। मध्यप्रदेश के नरसिंहपुरा शहर में एक ऐसा ही केस सामने आया है। यहां एक जर्मन शेफर्ड डॉग ने अपने साथी की जान बचाने के लिए ब्लड डोनेट किया।

खून की कमी से जा सकती थी जिमी की जान

नरसिंहपुरा शहर के रौंसरा गांव में जर्मन शेफर्ड ​ब्रीड के ‘लियो’ नाम के डॉग ने अपने ही ब्रीड के एनीमिक डॉग ‘जिमी’ की जान बचाने के लिए ब्लड डोनेट किया। ये ब्लड डोनेशन गांव के वेटेनरी डॉक्टर्स की देख—रेख में हुआ।​ लियो ने अपना ब्लड डोनेट करके साथी जिमी की जान बचा ली। बताया जा रहा ​है कि जिमी पिछले छह महीने से खून की कमी की वजह से बीमार था। जिमी के खून में सिर्फ 6 प्रतिशत ही हीमोग्लोबिन था जबकि एक नॉर्मल डॉग में 12 से 13 प्रतिशत तक हीमोग्लोबीन होना चाहिए। इस वजह से उसकी जान का खतरा भी बना हुआ था।

जिमी के लिए लियो बनकर आया जीवन रक्षक

जिमी की ओनर वंदना जाटव उसके स्वास्थ्य को लेकर बहुत चिंतित थी मगर जिमी पिछले छह महीने से ब्लड डोनेशन करने वाला कोई मिल नहीं रहा था। वंदना पिछले कई दिनों से जिमी के लिए खून का इंतजाम करने में लगी थी। उनके गांव के पास के गांव कोसमखेड़ा निवासी महेन्द्र प्रताप सिंह ने अपने डॉग लियो के जरिए उनकी मदद की। लियो का 90 एमएल खून जिमी को चढ़ाया गया।

ब्लड डोनेशन करवाने वाले वेटेनरी डॉक्टर संजय मांझी ने बताया कि रक्तदान के बाद जिमी और लियो दोनों ही हेल्दी है। बहुत से लोगों को ये गलतफहमी रहती है कि ब्लड डोनेट करने से उनके डॉग के शरीर में कमजोरी आ जाती है। मगर ऐसा बिल्कुल नहीं है। ये केस इस बात का जीता—जागता उदाहरण है।

इंसानों की तरह डॉग्स के ​भी होते हैं ब्लड ग्रुप्स

वेटेनरी डॉक्टर संजय मांझी ने बताया कि कुत्तों में 12 तरह के ब्लड ग्रुप्स होते हैं। इन्हे डॉग एरिथ्रोसाइट एंटीजन कहा जाता है। ये 12 ब्लड ग्रुप्स हैं डीईए-1.1, डीईए-1.2, डीईए-1.3, डीईए-4,डीईए-5, डीईए-6, डीईए-7, डीईए-2.11, डीईए-2.12,डीईए-2.13,डीईए-3.11, डीईए-3.12 इनमें से डीईए-2.11 ब्लड ग्रुप कॉमन होता है और 90 फीसदी कुत्तों में कॉमन होता है।

डॉग्स के लिए यूं तो किसी भी नस्ल का रक्त लग सकता है, लेकिन एक ही नस्ल का हो तो ज्यादा अच्छा होता है। आमतौर पर डॉग में हीमोग्लोबिन कम होने का कारण यही रहता है कि वह ठीक से खाते नहीं हैं। अन्य बीमारियां भी रहती हैं और उम्र का असर भी होता है। डॉग की अधिकतम उम्र 12 वर्ष होती है।

sweta pachori

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