देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों पर 21 विद्वानों की टिप्पणियों वाली पांडुलिपि के 11 खंडों का विमोचन किया। इस मौके पर पीएम मोदी ने कहा कि ‘गीता’ के विश्वरूप ने महाभारत से लेकर आज़ादी की लड़ाई तक हर कालखंड में हमारे राष्ट्र का पथप्रदर्शन किया है। उन्होंने कहा कि भारत को एकता के सूत्र में बांधने वाले आदि शंकराचार्य ने गीता को आध्यात्मिक चेतना के रूप में देखा। वहीं, रामानुजाचार्य ने गीता को आध्यात्मिक ज्ञान की अभिव्यक्ति के रूप में देखा था। प्रधानमंत्री ने ये बात श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों पर 21 विद्वानों की टिप्पणियों वाली पांडुलिपि के खंडों का विमोचन करते हुए कही।
पीएम मोदी ने कार्यक्रम में कहा कि किसी एक ग्रंथ के हर श्लोक पर ये अलग-अलग व्याख्याएं, इतने मनीषियों की अभिव्यक्ति, ये गीता की उस गहराई का प्रतीक है, जिस पर हजारों विद्वानों ने अपना पूरा जीवन दिया है। ये भारत की उस वैचारिक स्वतंत्रता का भी प्रतीक है, जो हर व्यक्ति को अपने विचार रखने के लिए प्रेरित करती है। उन्होंने कहा कि आज जब देश आजादी के 75 साल मनाने जा रहा है तो हम सभी को गीता के इस पक्ष को देश के सामने रखने का प्रयास करना चाहिए। कैसे गीता ने आज़ादी की लड़ाई को नई ऊर्जा दी। कैसे गीता ने देश को एकता के आध्यात्मिक सूत्र में बांधकर रखा। इन सब पर हम शोध करें और अपनी युवा पीढ़ी को इससे परिचित कराएं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे कहा कि ये गीता ही है जिसने दुनिया को निस्वार्थ सेवा जैसे भारत के आदर्शों से परिचित कराया। नहीं तो भारत की निस्वार्थ सेवा, विश्व बंधुत्व की हमारी भावना बहुतों के लिए आज भी किसी आश्चर्य से कम नहीं होती। इस दौरान कार्यक्रम में केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और पूर्व महाराजा व वरिष्ठ नेता डॉ. कर्ण सिंह भी उपस्थित रहे।
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