मशहूर स्वतंत्रता सेनानी व आजाद भारत के प्रथम लोकसभा अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर की आज 27 फरवरी को 67वीं पुण्यतिथि है। उन्हें ‘दादा साहेब’ के नाम से भी जाना जाता है। मावलंकर पेशे से वकील थे, परंतु उन्होंने असहयोग आंदोलन के दौरान वकालत छोड़ आजादी की लड़ाई लड़ीं। भारत की स्वतंत्रता के बाद गणेश वासुदेव मावलंकर सर्वसम्मति से लोकसभा के अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने लोकसभा की बेहतरी के लिए उल्लेखनीय कार्य किए थे। गणेश मावलंकर कई भाषाओं के जानकार थे। इस अवसर पर जानिए उनके बारे में कुछ अनसुनी बातें…
भारतीय सेनानी व राजनेता गणेश वासुदेव मावलंकर का जन्म 27 नवंबर, 1888 को गुजरात के बड़ोदरा में हुआ था। अपनी आरंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद मावलंकर वर्ष 1902 में उच्च शिक्षा के लिए अहमदाबाद आ गए थे। यहां से उन्होंने स्नातक की परीक्षा ‘गुजरात कॉलेज’ से उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने कानून की शिक्षा ‘मुंबई यूनिवर्सिटी’ से हासिल की।
गणेश मावलंकर ने अपने कॅरियर की शुरुआत अहमदाबाद में वकालत के रूप में की। इसके साथ ही वह आजादी के लिए चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय रहने लगे थे। इस दौरान उनके पर महात्मा गांधी और सरदार वल्लभ भाई पटेल के व्यक्तित्व का गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने आज़ादी के आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया। इस दौरान गणेश वासुदेव मावलंकर ने ‘खेड़ा सत्याग्रह’ में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अपने वकालत के दिनों से जुड़ी घटनाओं पर आधारित एक पुस्तक ‘माई लाइफ’ का लेखन कार्य भी किया था।
वर्ष 1921 में मावलंकर ‘असहयोग आंदोलन’ में शामिल हो गए। देश की आजादी की चाह में उन्होंने इस आंदोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार का असहयोग करने के लिए वकालत छोड़ दीं। इसके बाद वह ‘गुजरात विद्यापीठ’ में अध्यापक के रूप में कार्य करने लगे। बाद में उन्होंने वर्ष 1930 में गांधी जी द्वारा चलाए गए ‘नमक सत्याग्रह’ आंदोलन में भाग लिया और वह जेल भी गए। इस प्रकार उन्होंने देश की आजादी के लिए हुए कई महत्वपूर्ण आंदोलनों और विरोध प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया।
वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मावलंकर जेल गए। उन्होंने बंदी रहते हुए जेल में कैदियों के बीच कई सुधार कार्य किए। इस दौरान उन्होंने कैदियों की वास्तविक परिस्थितियों पर गुजराती भाषा में पुस्तक ‘मानवतन झरन’ लिखीं, जो बहुत लोकप्रिय भी हुई थी। बाद में इस पुस्तक का अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ। गणेश वासुदेव मावलंकर वर्ष 1937 से 1946 तक बॉम्बे विधानसभा के अध्यक्ष रहे थे। वर्ष 1946 में वह केंद्रीय विधानसभा के सदस्य चुने गए।
वर्ष 1947 में देश की स्वतंत्रता के बाद गणेश वासुदेव मावलंकर को 17 नवंबर, 1947 को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया। वर्ष 1952 में हुए पहले सार्वजनिक चुनाव के बाद 15 मई, 1952 को मावलंकर को स्वतंत्र भारत की पहली लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया। अपनी अध्यक्षता के इस पूरे कार्यकाल में मावलंकर ने सदन के संचालन में नए मानदंडों की स्थापना कीं। उन्हें भारतीय लोकसभा का जनक भी कहा जाता हैं, क्योंकि उन्होंने लोकसभा की बेहतरी के लिए बहुत-से मुद्दों पर काम किया था।
प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी व प्रथम लोकसभा अध्यक्ष जी वी मावलंकर को जनवरी, 1956 में दिल का दौरा पड़ा। बाद में उन्होंने अपने कार्यालय से इस्तीफा दे दिया। मावलंकर का 27 फरवरी, 1956 को कार्डिएक अरेस्ट आने से अहमदाबाद में निधन हो गया।
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