भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, कांग्रेस के प्रसिद्ध राजनेता व राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री जय नारायण व्यास की आज 18 फ़रवरी को 124वीं जयंती है। जयनारायण का जन्म वर्ष 1899 में राजस्थान के जोधपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित सेवारामजी व्यास और माता का नाम गोपी देवी था। जय नारायण की शादी गौरजा देवी से हुई थी। इनसे उन्हें 4 संतानें एक पुत्र और तीन पुत्रियां हुईं। जय नारायण मात्र मैट्रिक तक ही पढ़े-लिखे थे। व्यास ने देश में दासता की जंजीरों से मुक्ति और रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए कई बार आंदोलन किए। इस अवसर पर जानिए जय नारायण व्यास के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
1920 के दशक की शुरुआत में जय नारायण व्यास और उनके साथी जोधपुरी राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने जोधपुर राज्य में मारवाड़ हितकारिणी सभा (मारवाड़ सुधार सोसाइटी) का गठन किया था। इस सोसायटी का उद्देश्य जोधपुर राज्य को अंग्रेजों के अधीन शासन चला रहे स्थानीय शासकों और अंग्रेजों की गुलामी से मुक़्त करना था। व्यास को सामंतशाही के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने, ‘जागीरदारी प्रथा’ की समाप्ति और रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना पर जोर देने के लिए जाना जाता है।
राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही वे पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने सबसे पहले सामंत शासन के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की थी। वर्ष 1927 में व्यास ‘तरुण राजस्थान’ पत्र के प्रधान सम्पादक बने थे। साल 1936 में उन्होंने बंबई से ‘अखण्ड भारत’ नामक दैनिक समाचार-पत्र की शुरुआत की थी।
जय नारायण व्यास के मन में शुरु से ही देशभक्ति जाग उठी थी। अंग्रेजों की गुलामी के दौर में पैदा हुए व्यास ने देश की आज़ादी की लड़ाई में कई बार जेल की यात्राएं की थीं। वे क्रांतिकारी गतिविधियों में हमेशा आगे रहते थे। महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण व्यास को गिरफ्तार कर लिया गया था।
आज़ादी के बाद वर्ष 1948 में जय नारायण व्यास को जोधपुर प्रजामण्डल का प्रधानमंत्री बनाया गया था। वे साल 1956 से 1957 तक प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे थे। इसके बाद उन्हें राजस्थान के तीसरे और पांचवें मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। मुख्यमंत्री के रूप में व्यास का कार्यकाल पहली बार 26 अप्रैल 1951 से 3 मार्च 1952 तक और दूसरी बार 1 नवंबर 1952 से 12 नवंबर 1954 तक रहा।
वर्ष 1952 में पूरे देश में चुनाव हो चुके थे। लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक ही हुए थे। इसके बाद चुनाव के नतीजों का समय आया। मतदान पोस्टल बैलेट के माध्यम से हुआ था, इसलिए परिणाम आने में कई दिन लग रहे थे। उस समय राजस्थान के मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास ही थे। चुनाव नतीजों के दौरान व्यास अपने खास राजनीतिक मित्रों माणिक्यलाल वर्मा, मथुरादास माथुर और रामकरण जोशी के साथ बैठकर परिणाम के हिसाब-किताब की जानकारी ले रहे थे।
इस चुनाव में जय नारायण व्यास प्रदेश के सिटिंग सीएम थे और वे दो सीटों से चुनाव लड़ रहे थे। पहली सीट जालौर-ए और दूसरी सीट थी जोधपुर शहर-बी। इन दोनों ही सीटों पर व्यास अपनी जीत को लेकर पूर्व में ही निश्चिंत थे। नतीजों के दौरान व्यास के निजी सचिव वहां आए और बोले साहब दो ख़बर हैं। आपके लिए एक ख़बर अच्छी है और एक बुरी। सचिव ने कहा कि अच्छी ख़बर ये है कि पार्टी 160 में से 82 सीटों पर चुनाव जीत गई है। लेकिन बुरी ख़बर ये है कि व्यासजी दोनों ही सीटों से चुनाव हार गए हैं।
इसके बाद जैसे कमरे में एकदम से सन्नाटा पसर गया। कमरे में बैठे लोगों के लिए कांग्रेस जीत की खुशी ज्यादा मायने नहीं रख रही थी। उनसे व्यास की हार का बड़ा दुख हो रहा था। इसके पीछे का कारण यह भी था कि सालभर पहले ही इस खेमे ने मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री को कुर्सी से हटवाकर जयनारायण व्यास को राजस्थान का सीएम बनवाया था। अब व्यास के साथ उनकी भी आगे की राजनीति ख़तरे में पड़ गई थी।
राजस्थान के दो बार सीएम रहे जय नारायण व्यास एक बार राज्यसभा सांसद भी बने थे। इसके अलावा वे दो साल प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। व्यास का निधन 14 मार्च, 1963 को राजधानी दिल्ली में हुआ। उनके सम्मान में जन्म स्थली जोधपुर में ‘जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय’ नाम से एक यूनिवर्सिटी भी संचालित है।
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