भारत के 10वें राष्ट्रपति के. आर. नारायणन की 27 अक्टूबर को 103वीं जयंती है। दिलचस्प बात ये है कि नारायणन बतौर राष्ट्राध्यक्ष वोट देने वाले देश के पहले राष्ट्रपति थे। उन्होंने वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में पहला वोट डाला था। यही नहीं नारायणन भारत के पहले दलित व्यक्ति थे, जो देश के राष्ट्रपति बने। के. आर. नारायणन युवा अवस्था में पत्रकार रहे थे। इन्होंने बतौर आईएफएस अधिकारी के रूप में विदेश सेवा में भी कार्य किया। इस खास अवसर पर जानिए पूर्व राष्ट्रपति के. आर. नारायणन के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
पूर्व राष्ट्रपति के. आर. नारायणन का जन्म 27 अक्टूबर, 1920 को केरल राज्य के त्रावणकोर स्थित पेरुमथानम उझावूर गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम कोचेरील रमन नारायणन था। नारायणन का जन्म एक गरीब दलित परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा सरकारी प्राइमरी स्कूल, कुरिचिथमम में हुईं। इसके बाद की शिक्षा के लिए वे अपने गांव से प्रतिदिन 15 किमी दूर पैदल चलकर पढ़ने जाया करते थे। उन्हें अक्सर फीस न चुका पाने के कारण क्लासरूम के बाहर से ही लेक्चर सुनना पड़ता था।
नारायणन ने अपनी पढ़ाई में कभी पैसों को कमजोरी नहीं बनने दिया। वह प्रारंभ से ही होशियार छात्र रहे। उन्होंने आर्थिक तंगी के बाद भी वर्ष 1943 में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की और त्रावणकोर विश्वविद्यालय (वर्तमान में केरल विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है) से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर डिग्री हासिल कीं। के. आर. नारायणन ने विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान हासिल किया था। नारायणन त्रावणकोर में प्रथम श्रेणी के साथ डिग्री प्राप्त करने वाले पहले दलित छात्र बने थे।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद के. आर. नारायणन दिल्ली चले गए और एक पत्रकार के रूप में नौकरी करने लगे। उन्होंने वर्ष 1944-45 में ‘द हिंदू’ और ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ जैसे समाचार-पत्रों में काम किया था। इस दौरान ही उन्होंने महात्मा गांधी का साक्षात्कर लिया था। नारायणन के मन में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड जाने की इच्छा थीं। आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से उन्हें थोड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
लेकिन इस दौरान वह उद्योगपति जेआरडी टाटा से मिले। टाटा ने उन्हें छात्रवृत्ति प्रदान कीं। इससे वह वर्ष 1945 में इंग्लैंड पढ़ने गए। वहां जाकर उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स(LSE) में राजनीति विज्ञान का अध्ययन किया।
के. आर. नारायणन अपनी पढ़ाई करने के बाद वर्ष 1948 में इंग्लैंड से भारत वापस लौट आए। यहां पर उन्होंने पं. जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात कीं। बाद में उन्हें भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) में नौकरी की पेशकश की गईं। नारायणन ने वर्ष 1949 में बतौर आईएफएस में नौकरी शुरू कर दी थी। उन्होंने भारतीय विदेश सेवा की नौकरी के दौरान रंगून, टोक्यो, लंदन, हनोई और कैनबरा में एक राजनयिक के रूप में अपनी सेवाएं दीं। इसके अलावा नारायणन थाईलैंड, तुर्की और चीन में भारत के राजदूत रहे। वह वर्ष 1978 में विदेश सेवा से सेवानिवृत हुए।
इसके बाद उन्होंने कुछ समय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के कुलपति के रूप में कार्य किया। इंदिरा गांधी के समय में उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत का राजदूत नियुक्त गया था। वर्ष 1984 में केआर नारायणन ने इंदिरा गांधी के कहने पर ही राजनीति में प्रवेश किया। वह वर्ष 1984, 1989 व 1991 में केरल के ओट्टापल्लम क्षेत्र से 3 बार चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। उन्हें राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में बतौर राज्यमंत्री जगह दी गईं।
विदेश सेवा से सेवानिवृत होने के बाद राजनीति में उतरे के. आर. नारायणन 21 अगस्त, 1992 को भारत के 9वें उप-राष्ट्रपति चुने गए। वह इस पद पर वर्ष 1997 तक रहे। इसके बाद नारायणन 14 जुलाई, 1997 को हुए राष्ट्रपति चुनाव में विजयी हुए। इस चुनाव में उन्हें कुल मतों का 95 प्रतिशत प्राप्त हुआ। के आर नारायणन को 25 जुलाई, 1997 को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जे. एस. वर्मा ने राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाईं। उन्होंने इस पद को 25 जुलाई, 2002 तक सुशोभित किया।
पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन ने अपने जीवन काल में कुछ पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें ‘इण्डिया एण्ड अमेरिका एस्सेस इन अंडरस्टैडिंग’, ‘इमेजेस एण्ड इनसाइट्स’ और ‘नॉन अलाइमेंट इन कन्टैम्परेरी इंटरनेशनल रिलेशंस’ प्रमुख हैं। उनको अमेरिका के टोलेडो विश्वविद्यालय ने ‘डॉक्टर ऑफ साइंस’ की तथा ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय ने ‘डॉक्टर ऑफ लॉस’ की उपाधि प्रदान करते हुए सम्मानित किया था।
भारतीय विदेश सेवा की नौकरी के दौरान के आर नारायणन को बर्मा में नियुक्त किया गया। वहीं एक स्थानीय युवती मा टिंट टिंट से उनकी मुलाकात हुईं। बाद में दोनों 8 जून, 1951 को शादी के बंधन में बंध गए। इसके बाद वह भारतीय नागरिक बन गई और अपना नाम बदलकर उषा रख लिया। गौरतलब है कि पूर्व राष्ट्रपति नारायणन की पत्नी विदेशी मूल की एकमात्र ऐसी महिला हैं, जो भारत की पहली महिला बनीं। इन दोनों के दो बेटियां हैं।
साल 2005 में के. आर. नारायणन को गुर्दे में तकलीफ होने पर आर्मी रिसर्च एण्ड रैफरल हॉस्पिटल, नई दिल्ली इलाज के लिए ले जाया गया, जहां 9 नवंबर को उनका निधन हो गया। इस तरह उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा।
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