विलक्षण प्रतिभा के धनी ‘भारत के मिसाइलमैन’ और ‘जनता के राष्ट्रपति’ जैसे उपनामों से प्रसिद्ध रहे देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की 15 अक्टूबर को 91वीं जयंती है। उनका एक कोट ‘सपने वे नहीं होते, जो आपको रात में सोते समय नींद में आते हैं बल्कि सपने वे होते हैं, जो रात में सोने ही न दें।’ काफी प्रसिद्ध है, जो हर युवा को आज भी अपने लक्ष्य की ओर प्रेरित करता है। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम देश के 11वें राष्ट्रपति बने और उन्होंने इस पद की गरिमा को बढ़ाया। वे ‘जनता के राष्ट्रपति’ कहलाए। इस ख़ास मौके पर जानिए डॉ. कलाम साहब के प्रेरणादायी जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम् में हुआ था। उनका पूरा नाम अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम था। उनके पिता जैनुलाब्दीन थे, जो कम पढ़े-लिखे थे। इनके पिता मछुआरों को नाव किराये पर देते थे और उससे परिवार का निर्वहन करते थे। डॉ. कलाम के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय थी। उनके पांच भाई और पांच बहनें थीं। डॉ. कलाम परिवार की स्थिति से भली-भांति परिचित थे, अत: वे पढ़ाई के साथ अखबार बेचने का कार्य भी करते थे।
डॉ. अब्दुल कलाम का पढ़ाई के प्रति बचपन से ही लगाव था। वे पढ़ने के लिए आठ साल की उम्र भी आलस्य नहीं करता थे और सुबह 4 बजे उठ नहाकर गणित पढ़ने के लिए शिक्षक के घर पहुंच जाते थे। सुबह नहाने के पीछे कारण यह था कि प्रत्येक साल पांच बच्चों को मुफ्त में गणित पढ़ाने वाले उनके टीचर बिना नहाए आए बच्चों को नहीं पढ़ाते थे। वहां से आने के बाद वह नमाज पढ़ते और फिर आठ बजे तक रामेश्वरम् रेलवे स्टेशन और बस अड्डे पर अखबार बांटते थे। उस जमाने में उनके घर में बिजली नहीं हुआ करती थी और वे अपनी पढ़ाई केरोसिन तेल का दीपक जलाकर करते थे।
डॉ. अब्दुल कलाम के जीवन का उद्देश्य ‘एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी’ में तब तय हुआ जब वह पांचवीं कक्षा में पढ़ते थे। इसके लिए उनके शिक्षक सुब्रह्मण्यम अय्यर ने उन्हें प्रेरित किया। उनकी बातों ने उनके जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर दिया था। बाद में उन्होंने भौतिकी में पढ़ाई की। उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिला लिया और एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में अध्ययन किया।
डॉ. अब्दुल कलाम वर्ष 1962 में ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ में गए। उन्हें यहां पर प्रोजेक्ट डायरेक्टर बनाया गया और उनके नेतृत्व में ही भारत ने अपना पहला स्वदेशी उपग्रह यान एसएलवी-3 बनाया था। डॉ. कलाम भारत के मिसाइल कार्यक्रम के जनक माने जाते हैं। वर्ष 1980 में भारत ने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के समीप स्थापित किया गया और अंतर्राष्ट्रीय स्पेस क्लब का सदस्य बन गया। डॉ. कलाम ने स्वदेश निर्मित गाइडेड मिसाइल का डिजाइन तैयार किया। उन्होंने ‘अग्नि’ और ‘पृथ्वी’ जैसी मिसाइलें स्वेदशी तकनीक से बनाईं। मिसाइल कार्यक्रम के तहत भारत ने सबसे पहले सितंबर 1985 में ‘त्रिशूल’ का फिर फरवरी 1988 में ‘पृथ्वी’ और मई 1989 में ‘अग्नि’ मिसाइल का सफल परीक्षण किया।
बाद में वर्ष 1998 में रूस के सहयोग से सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें बनाने का कार्य शुरू किया और इसके लिए ब्रह्मोस प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की गई। ब्रह्मोस मिसाइल को धरती, आकाश और समुद्र कहीं से भी दागा जा सकता है। इस कामयाबी के साथ डॉ. कलाम को ‘मिसाइल मैन’ के रूप में ख्याति मिली और उन्हें ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया। उन्होंने 20 वर्ष तक इसरो के मिशनों को आगे बढ़ाने का काम किया, इसके बाद वह 10 साल तक रक्षा शोध और विकास संगठन (डीआरडीओ) के अध्यक्ष रहे।
डॉ. कलाम ने वर्ष 1992 से 1999 तक रक्षा मंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार की भी भूमिका निभाई थी। उन्होंने अटल वाजपेयी सरकार में पोखरण में दूसरी बार न्यूक्लियर टेस्ट का सफल परीक्षण किया और भारत परमाणु हथियार बनाने वाले देशों की कतार में शामिल हो गया। डॉ. कलाम ने विजन 2020 दिया, जिसके तहत वह भारत को विज्ञान के क्षेत्र में तरक्की के जरिए 2020 तक अत्याधुनिक करने की खास सोच दी गई।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम 18 जुलाई, 2002 को भारत के 11वें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे। उन्हें भारतीय जनता पार्टी (BJP) समर्थित एनडीए घटक दलों ने अपना उम्मीदवार बनाया था, जिसका वामदलों के अलावा समस्त दलों ने भी समर्थन किया था। वे 25 जुलाई, 2007 तक राष्ट्रपति के पद पर रहे। डॉ. कलाम को वर्ष 1981 में भारत सरकार ने ‘पद्म भूषण’ और फिर वर्ष 1990 में ‘पद्म विभूषण’ और वर्ष 1997 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। भारत के सर्वोच्च पर पर नियुक्ति से पहले यह सम्मान पाने वाले डॉ. कलाम देश के तीसरे ऐसे राष्ट्रपति हैं। उनसे पहले सर्वपल्ली राधाकृष्णन और जाकिर हुसैन इस सम्मान से नवाज़े जा चुके थे।
भारत को विज्ञान और परमाणु आयुधों के क्षेत्र में कई सफलताएं दिलाने वाले पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का 27 जुलाई, 2015 को शिलांग के आईआईएम में एक व्याख्यान देने के दौरान दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। इस तरह आखिरी समय तक कार्य करते हुए उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा।
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