राजस्थानी साहित्य के मशहूर साहित्यकार और ‘बिज्जी’ के नाम से प्रसिद्ध विजयदान देथा की 1 सितंबर को 97वीं जयंती है। देथा को साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए ‘साहित्य अकादमी’ और ‘पद्मश्री पुरस्कार’ जैसे बड़े सम्मानों से नवाज़ा गया था। वह हिंदी और राजस्थानी भाषा दोनों में लेखन करते थे। उन्होंने राजस्थान की लोक-कथाओं को पहचान और आधुनिक स्वरूप प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई थी। इस खास अवसर पर जानिए प्रसिद्ध लोक साहित्यकार विजयदान देथा के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
राजस्थान के जाने-माने साहित्यकार विजयदान देथा का जन्म 1 सितंबर, 1926 को जोधपुर स्थित बोरूंदा नामक गांव में हुआ था। लोग उन्हें प्यार से ‘बिज्जी’ उपनाम से बुलाते थे। देथा राजस्थान के चारण समुदाय से आते हैं। उनके पिता सबलदान देथा और दादा जुगतिदान भी प्रसिद्ध राजस्थानी कवि हुआ करते थे। विजयदान ने एक छोटे से गांव में बैठकर ही अंतरराष्ट्रीय स्तर के साहित्य का सृजन किया। उनके पिता और दो भाइयों की मौत एक झगड़े में हो गई थी। इसके बाद विजयदान जैतारण चले आए। यहां पर उनके भाई सुमेरदान ने दीवानी अदालत में नौकरी की और विजयदान देथा ने कक्षा चार तक की पढ़ाई यहीं रहकर की थी।
बाद में सुमेरदान का ट्रांसफर होने के बाद विजयदान भी उनके साथ चले गए। सुमेरदान बाद में जोधपुर चले गए, जहां विजयदान ने दरबार स्कूल में पढ़ाई की। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय को देथा अपनी पहली प्रेरणा मानते थे। विजयदान ने अपना जीवन बेहद सादगी में बिताया। आज भी बोरूंदा के रास्ते में साइकिल की दुकान पर पंचर बनाने वाले से लेकर गायों को हंकाकर ले जा रहा किसान तक बिज्जी के घर का पता जानते हैं।
राजस्थानी साहित्यकार विजयदान देथा ने अपने जीवन में 800 से अधिक लघु कथाएं लिखीं, जिनका अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में भी अनुवाद किया गया है। उन्होंने कोमल कोठारी के साथ रूपायन संस्थान की स्थापना की, जो राजस्थानी लोकगीत, कला और संगीत की संरक्षक संस्था थी। उनके द्वारा लिखित साहित्यिक कृतियों में ‘बातां री फुलवारी’ भी शामिल है, जो 14 खंडों में प्रकाशित हुईं। यह राजस्थान की बोलियों और लोक-कथाओं पर आधारित है। इसके दसवें खण्ड को भारतीय राष्ट्रीय साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया गया, जो अभी तक किसी भी राजस्थानी कृति को मिला पहला पुरस्कार है।
विजयदान देथा द्वारा लिखी गई कहानियों पर ‘दुविधा’, ‘परिणति’ और ‘कांचली’ जैसी फिल्में बन चुकी हैं। हबीब तनवीर द्वारा निर्देशित प्रसिद्ध नाटक ‘चरणदास चोर’ उन्हीं की कहानी पर आधारित है। विजय द्वारा लिखी ‘दुविधा’ कहानी पर वर्ष 2005 में अमोल पालेकर ने शाहरुख खान और रानी मुखर्जी को लेकर फिल्म ‘पहेली’ बनाई थी। दिलचस्प बात ये है कि विजयदान देथा दूसरे ऐसे भारतीय थे, जिनका नाम रवींद्रनाथ टैगोर के बाद वर्ष 2011 में साहित्य के ‘नोबेल पुरस्कार’ के लिए नामित हुआ था।
राजस्थान में विजयदान देथा इतने मशहूर थे कि जो कोई व्यक्ति पढ़ भी नहीं सकता, उन्होंने तक भी उनकी कहानियां सुनी हुई हैं। प्रदेश के हर एक घर में लोग बिज्जी की कहानियां सुनते-सुनाते रहे हैं। लोक-कथाओं को मौजूदा समाज, राजनीति और बदलाव के औजारों से लैस कर उन्होंने कथाओं की ऐसी फुलवारी रची कि जिसकी सुगंध दूर-दूर तक महसूस की जा सकती है। विजयदान की अन्य प्रकाशित कृतियों में ‘राजस्थानी हिंदी कहावत कोष’, ‘साहित्य और समाज’, ‘प्रेमचन्द्र के पात्र’, ‘दुविधा’, ‘टीडो राव’ ‘उलझन’, ‘अलेखूं हिटलर’, ‘रूंख’ और ‘काबू रानी’ प्रमुख रूप से शामिल हैं।
राजस्थान के इस लोकप्रिय साहित्यकार विजयदान देथा का 10 नवंबर, 2013 को 87 वर्ष की अवस्था में निधन हुआ। विजयदान की पांच संतानों में से एक बेटा कैलाश कबीर देथा भी लेखन के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं और वह अनुवादक होने के साथ ही कवि भी हैं।
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