रिश्ते—नातों और दुनियादारी में इधर की उधर करना सबसे बड़ी समस्या है। बेशक आप भी ऐसा करते होंगे और आपके आस—पास वाले लोग भी। जब बातें इधर की उधर होती हैं तो राई से पहाड़ बन जाती हैं। अगर आप भी रिश्तों को संवारना चाहते हैं तो जरूरी एक फिल्टर।
जैसे हम चाय को पीने से पहले छलनी से छानते हैं वैसे ही अपनी बातों को कहने से पहने छान लीजिए। चाय की पत्ती रस देती है मगर उसको जस का तस चाय में डाला नहीं जा सकता। ठीक उसी तरह अपने मन में चल रही हर बात को आगे कहने से पहले दो बार सोचें। उसमें से अनावश्यक शब्दों को निकाल दें। जो बोलना जरूरी नहीं है वो अंदर ही रखें। किसी ने भले ही आपका दिल दुखाया हो मगर बुरे शब्दों को छान लें। कहते हैं जिस तरह से कमान से निकला तीर वापिस नहीं आता वैसे ही बोले हुए शब्द भी नहीं। जब हम किसी को कोई तीखे शब्द बोल देते हैं तो वो हमेशा के लिए उसके दिमाग में बैठ जाते हैं।
दूसरा जब किसी की बोली हुई बात आगे बोलें तो इस फिल्टर को डबल कर लें। जरूरी ना हो तो दूसरे की कही बात आगे बोले नहीं। बहुत ज्यादा जरूरी हो तो उसमें से भी व्यर्थ के शब्दों की छंटनी कर लें। ध्यान रखें आपकी कही किसी बात से दो लोगों के रिश्तों में खटास ना आ जाए।
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