आरंभिक हिंदी साहित्य के लेखक, पत्रकार, अनुवादक, समाज सुधारक व कवि प्रताप नारायण मिश्र की 6 जुलाई को 129वीं पुण्यतिथि है। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के काल में ‘हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान’ जैसा प्रसिद्ध नारा देकर देश को एकजुट होने का संदेश दिया था। प्रताप नारायण मिश्र द्वारा लिखित प्रसिद्ध रचनाओं में ‘भारत दुर्दशा’, ‘लोकोक्ति शतक’, ‘कलि कौतुक’, ‘श्रीप्रेम पुराण’, ‘हठी हम्मीर’ आदि प्रमुख हैं। इस अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
कवि प्रताप नारायण मिश्र का जन्म 24 सितंबर, 1856 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बैजे गांवा में हुआ था। उनके पिता ने उन्हें ज्योतिषी की शिक्षा दिलानी चाही, लेकिन उनका मन ज्योतिष में नहीं लगा। उन्हें अंग्रेजी शिक्षा हासिल करने के लिए स्कूल में प्रवेश दिलाया, परंतु इनका मन वहां भी नहीं लगा। जब स्कूल में वह पढ़ न सके तो घर पर ही स्वाध्याय से उन्होंने हिंदी, उर्दू, फारसी, संस्कृत और बंगला भाषा सीखी। इन पर अच्छी पकड़ बना ली। बाद में उन्होंने कई पुस्तकों को अनुवाद भी किया।
वह भारतेंदु हरिश्चंद्र के विचारों और आदर्शों के महान प्रचारक और व्याख्याता थे। वह प्रेम को परमधर्म मानते थे और उसी को दृष्टि में रखकर सैकड़ों लेख लिखे। वह आधुनिक हिंदी निबंधों की परंपरा को पुष्ट कर हिंदी साहित्य के सभी अंगों की पूर्णता के लिए रचना करते रहे। एक सफल व्यंग्यकार के अलावा हास्यपूर्ण गद्य-पद्य-रचनाकार के रूप में भी हिंदी साहित्य में उनका विशिष्ट स्थान है।
नाटक:
गौ-संकट, कलि—कौतुक, कलि-प्रभाव, हठी हम्मीर, जुआरी खुआरी, सांगीत शाकुंतल, दूध का दूध और पानी का पानी।
मौलिक गद्य कृतियां:
चरिताष्टक, पंचामृत, सुचाल शिक्षा, बोधोदय, शैव सर्वस्व।
अनूदित कृतियां:
नीति रत्नावली, कथामाला, सेनवंश का इतिहास, सूबे बंगाल का भूगोल, वर्णपरिचय, शिशुविज्ञान, राजसिंह, इंदिरा, राधारानी, युगलांगुलीय, देवी चौधरानी, कपाल कुंडला।
कविता:
प्रेम-पुष्पावली, मानस विनोद, रसखान शतक, रहिमन शतक, मन की लहर, ब्रैडला स्वागत, दंगल खंड, कानपुर महात्म्य, श्रृंगार-विलास, लोकोक्ति-शतक, और उर्दू में दीवो बरहमन के अलावा प्रताप पीयूष।
निबंध:
नवनीत, प्रताप लहरी, काव्य कानन जैसी रचनाओं से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया।
प्रताप मिश्र ने ‘ब्राह्मण’ और ‘हिन्दुस्तान’ नामक पत्रों का सफलतापूर्वक संपादन किया। उन्होंने करीब 40 पुस्तकों की रचना की। उनकी साहित्यिक विशेषता ही थी कि उन्होंने दांत, भौं, वृद्ध, धोखा, बात, मूंछ जैसे साधारण विषयों पर भी चमत्कार पूर्ण और असाधारण निबंध लिखे। उनकी निबंधों में हास्य और व्यंग्य शैली की पुटता अधिक है।
प्रताप नारायण मिश्र का कानपुर में 6 जुलाई, 1894 को 38 वर्ष की उम्र में देहांत हो गया। उनकी स्मृति में भारत सरकार ने वर्ष 2013 में उन पर एक डाक टिकट भी जारी किया।
Read: हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि नागार्जुन कई प्रमुख आंदोलनों का रहे थे हिस्सा
रोहित शर्मा ने सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ फील्डिंग की सजावट की और कप्तान हार्दिक पांड्या…
अग्निवीर स्कीम को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने…
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) रोक लगाने से इनकार कर दिया…
चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बड़ी भविष्यवाणी की है। प्रशांत…
आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंफोसिस के चेयरमैन नारायण मूर्ति…
कोलकाता हाई के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय भाजपा में शामिल हो गए है। उन्होंने हाल…
Leave a Comment