ये हुआ था

दोराबजी टाटा ने बतौर पत्रकार शुरू किया था करियर, बाद में बने प्रसिद्ध उद्योगपति

देश में स्टील उद्योग की नींव रखने वाले और टाटा ग्रुप के पहले चेयरमैन दोराबजी टाटा की 27 अगस्त को 163वीं जयंती है। ब्रिटिश भारत के समय उद्योग जगत में उनके योगदान के लिए वर्ष 1910 में उन्हें ‘नाइट’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था। देश के उद्योग में टाटा समूह का बड़ा योगदान रहा है। इस खास मौके पर जानिए प्रसिद्ध उद्योगपति दोराबजी टाटा के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

दोराबजी का आरंभिक जीवन

दोराबजी टाटा का जन्म 27 अगस्त, 1859 को महाराष्ट्र के मुबंई शहर में हुआ था। धनी पारसी परिवार में जन्मे दोराबजी, जमशेदजी नुसरवानजी टाटा और हीराबाई के बड़े बेटे थे। उनकी प्राथमिक शिक्षा बॉम्बे के प्रोप्रायटरी हाई स्कूल से प्राप्त की। उसके बाद वे वर्ष 1875 में इंग्लैंड चले गए। उन्होंने वर्ष 1877 में गोनविले और कैयस कॉलेज, कैम्ब्रिज में एडमिशन लिया, उसके बाद वहां दो साल तक रहे।

दोराबजी वर्ष 1879 में वापस बॉम्बे लौट आए। इसके बाद यहां सेंट जेवियर्स कॉलेज में अपनी पढ़ाई जारी रखी और वर्ष 1882 में उन्होंने अपनी स्नातक की डिग्री प्राप्त कर ली थी। उन्होंने अपने कॅरियर की शुरूआत एक पत्रकार के रूप में ‘बॉम्बे गजट’ से की और वहां दो साल काम किया। बाद में वर्ष 1884 में वह अपने पिता की फर्म के कपास व्यापार विभाग में कार्य करने लग गए। इस दौरान उन्होंने व्यवसाय की बारीकियां सीखी।

पिता के पारसी मित्र की बेटी से हुआ विवाह

दोराबजी टाटा के पिता जमशेदजी के पारसी मित्र डॉ. होरमुसजी भाभा जो एक पारसी थे। उनकी इकलौती बेटी मेहरबाई के साथ दोराबजी की शादी वर्ष 1897 में हुई। इस दंपति के कोई संतान नहीं थी।

दोराबजी की व्यवसाय के क्षेत्र में उपलब्धियां

दोराबजी टाटा ने अपने पिता जमशेदजी टाटा के सपनों को साकार रूप दिया। उन्होंने वर्ष 1907 में टाटा स्टील ग्रुप की स्थापना की, जो पहले टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड (टिस्को) के नाम से जाना जाता था। दोराबजी ने वर्ष 1911 में टाटा पावर की स्थापना की। यहीं पर उन्होंने जमशेदपुर नामक शहर बसाया। उनकी देखरेख में तीन कपास मिलों, ताज होटल बॉम्बे, भारत की सबसे बड़ी निजी क्षेत्र की स्टील कंपनी, तीन इलेक्ट्रिक कंपनियां और भारत की प्रमुख बीमा कंपनियां सम्मिलित थी।

उन्होंने वर्ष 1919 में भारत की सबसे बड़ी जनरल इंश्योरेंस कंपनी ‘न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी’ की स्थापना की। दोराबजी टाटा को जनवरी, 1910 में एडवर्ड सप्तम द्वारा नाइट किया गया था, सर दोराबजी टाटा बन गए। दोराबजी भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष रहे और वर्ष 1924 में पेरिस ओलंपिक में गए भारतीय दल की वित्तीय मदद भी की।

सामाजिक कार्यों के लिए दान की अपनी सारी संपत्ति

दोराबजी टाटा की पत्नी मेहरबाई टाटा की वर्ष 1931 में 52 वर्ष की आयु में ल्यूकेमिया से निधन हो गया। उनके देहांत के बाद दोराबजी ने ‘लेडी टाटा मेमोरियल ट्रस्ट’ की स्थापना की। इस ट्रस्ट का उद्देश्य रक्त संबंधी रोगों के अनुसंधान और अध्ययन में सहायता करना था। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति अपने नाम से स्थापित ट्रस्ट को सार्वजनिक कार्यों के लिए दे दी। इस राशि को कैंसर के इलाज के लिए स्थापित टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज और टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान आदि पर खर्च किया जा चुका है।

73 साल की उम्र में हुआ दोराबजी का निधन

दोराबजी टाटा दुनिया भर में स्टीलमैन के नाम से जाने जाते थे। उनका 73 साल की अवस्था में 3 जून, 1932 को जर्मनी के बैड किसिंगन में निधन हो गया। वह इंग्लैंड के वोकिंग के ब्रुकवुड कब्रिस्तान में अपनी पत्नी मेहरबाई के साथ दफन हैं।

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Raj Kumar

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