हिंदी साहित्य के ख्यातनाम कवि नागार्जुन की आज 30 जून को 112वीं जयंती है। वह एक नामी हिन्दी और मैथिली भाषी कवि थे। उन्होंने अपने जीवन काल के दौरान कई प्रसिद्ध उपन्यास, लघु कथाएं, साहित्यिक आत्मकथाएं और यात्रा-वृतांत भी लिखे। नागार्जुन को जनकवि के नाम से भी जाना जाता है- ‘द पीपल्स पोएट।’ यहां तक कि उन्हें आधुनिक मैथिली भाषा का सबसे मशहूर कवि भी माना जाता है। उन्होंने हिंदी में ‘नागार्जुन’ और मैथिली में ‘यात्री’ उपनाम से अपनी कविताएं लिखीं। इस खास अवसर पर जानिए कवि नागार्जुन के बारे में कुछ अनसुने किस्से…
नागार्जुन का जन्म 30 जून, 1911 को बिहार के मधुबनी जिले स्थित सतलखा गांव में हुआ, जबकि उनका पैतृक गांव बिहार के दरभंगा जिले के तरौनी था। उनके पिता का नाम गोकुल मिश्र और माता उमा देवी थी। उनसे पहले गोकुल के चार संतानें हुईं, जो पैदा होने के साथ ही मृत्यु को प्राप्त हो गई थी। नागार्जुन अपने माता-पिता की पांचवीं संतान थे। उनके जन्म के लिए उनके पिता ने भगवान शंकर की उपासना की थी। इसके बाद नागार्जुन का जन्म हुआ था और उनका नाम ‘वैद्यनाथ’ रखा गया। नागार्जुन का शुरुआती ज्यादा वक्त उनके ननिहाल सतलखा में बिता था। जब वह महज 3 साल के ही थे कि उनकी मॉं का देहांत हो गया और कम उम्र में उनसे मां का प्यार छीन गया।
वैद्यनाथ (नागार्जुन) की प्रारंभिक शिक्षा मिथिलांचल में हुई। मिथिलांचल के धनी लोग यहां के गरीब मेधावी छात्रों की शिक्षा के लिए आर्थिक सहयोग देते थे। बाद में वह संस्कृत की पढ़ाने के लिए बनारस गए। यहीं पर नागार्जुन आर्य समाज से काफी प्रभावित हुए और फिर उनका बौद्ध दर्शन की ओर झुकाव हो गया। बाद में वह बौद्ध भी बन गए। इस दौरान उन्होंने अपना नाम बदलकर वैद्यनाथ से नागार्जुन रख लिया। उन्हें बौद्ध के रूप में राहुल सांकृत्यायन का अग्रज माना जाता है। उन्होंने संस्कृत, पाली और प्राकृत भाषाएं सीखीं। इस दौरान उन्होंने अपराजिता देवी नाम की एक महिला से शादी कर ली, जिनसे उन्हें छह संतानें प्राप्त हुईं।
रचनाकार नागार्जुन ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1930 के दशक में ‘यात्री’ उपनाम से मैथिली भाषा में कविताओं के साथ की थी। वर्ष 1930 के दशक के मध्य तक उन्होंने हिंदी में कविता लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने एक शिक्षक के रूप में सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में अध्यापन करवाया। लेकिन वह यहां लंबे समय तक नहीं रहे और बाद में श्रीलंका के केलानिया में बौद्ध मठ चले गए। यहां पर वह वर्ष 1935 में बौद्ध भिक्षु बन गए। वहां के मठ में प्रवेश लिया और शास्त्रों का अध्ययन किया। इस सब के बीच ही उन्होंने अपना नाम “नागार्जुन” रख लिया।
नागार्जुन ने साहित्यिक रचनाओं के साथ देश की आजादी के दौरान हुए आंदोलनों में भाग लिया था। आजादी के बाद भी उन्होंने कई जन-जागरण आंदोलनों में भाग लिया। वह किसान नेता स्वामी सहजानंद से काफी प्रभावित थे। वर्ष 1939 से वर्ष 1942 के बीच उन्होंने बिहार में किसान आंदोलन का नेतृत्व किया, इस दौरान उन्हें जेल में भी डाल दिया गया था। वह आजादी के बाद लंबे समय तक पत्रकारिता से भी जुड़े रहे।
हिंदी कवि नागार्जुन ने वर्ष 1974 में हुए जेपी आंदोलन में भाग लिया था। इसमें भाग लेते हुए ही उन्होंने कहा था कि सत्ता की दुर्नीतियों के विरोध में एक जनयुद्ध चल रहा है, जिसमें मेरी हिस्सेदारी सिर्फ वाणी की ही नहीं, कर्म की हो, इसीलिए मैं आज अनशन पर हूं, कल जेल भी जा सकता हूँ। इस आंदोलन के सिलसिले में आपातकाल से पूर्व ही इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फिर काफी समय जेल में रहना पड़ा।
उपन्यास — रतिनाथ की चाची, बाबा बटेश्वरनाथ, दु:ख मोचन, बलचनमा, वरूण के बेटे, उग्रतारा, पारो, नई पौध, कुंभीपाक और आसमान में चांद तारे आदि।
कविता संग्रह — युगधारा, सतरंगे पंखो वाली, प्यासी पथराई आंखें, तालाब की मछलियां, चन्दना, खिचड़ी विप्लव देखा हमने, तुमने कहा था, पुरानी जूतियों का कोरस, हजार-हजार बांहोंवाली, पका है यह कटहल, अपने खेत में, मैं मिलिट्री का बूढ़ा घोड़ा।
खंडकाव्य — भस्मांकुर, भूमिजा
अन्य — एक संस्कृत काव्य “धर्मलोक शतकम्” तथा संस्कृत से कुछ अनूदित कृतियों के रचयिता
नागार्जुन द्वारा मैथिली भाषा में लिखित उनके काव्य संग्रह ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ के लिए वर्ष 1965 में उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें साहित्य अकादमी ने वर्ष 1994 में ‘साहित्य अकादमी फेलो’ के रूप में नामांकित कर सम्मानित भी किया था।
प्रसिद्ध हिंदी कवि नागार्जुन को दमा की बीमारी थी, जिसके कारण उनका 5 नवंबर, 1998 को निधन हो गया।
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