आजादी के 73वें जश्न के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले के प्राचीर से देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि क्या हम 2 अक्टूबर को देश को सिंगल यूज प्लास्टिक मुक्ति दिला सकते हैं? भारत ही नहीं दुनिया के सारे देश प्लास्टिक कचरे की समस्या से परेशान है और इससे निजात पाने के लिए किए गए अब तक के प्रयास बेकार हैं।
दुनिया भर में उत्पादित प्लास्टिक की गणना बताती है कि वर्ष 1950 से अब तक 8.3 से 9 अरब मैट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन हो चुका है। यह प्लास्टिक कचरा चार से अधिक माउंट एवरेस्ट के बराबर है। अब तक निर्मित कुल प्लास्टिक का लगभग 44 फीसदी उत्पादन वर्ष 2000 के बाद हुआ है। अगर भारत की बात करें तो यहां हर दिन 9 हजार एशियाई हाथियों के वजन के बराबर यानि 25,940 टन प्लास्टिक कचरा उत्पादित होता है। भारतीय दुनिया के सबसे कम प्लास्टिक उपभोक्ताओं में शामिल हैं। एक भारतीय एक वर्ष में औसतन 11 किग्रा प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है।
चालीस माइक्रोमीटर (माइक्रॉन) या उससे कम स्तर के प्लास्टिक को सिंगल यूज प्लास्टिक कहते हैं। इसमें प्लास्टिक के थैलियां (पॉलीथीन), स्ट्रॉ, कॉफी स्टिरर, सोडा और पानी की बोतल एवं भोजन का सुरक्षित रखने वाले पैकेजिंग सिंगल यूज प्लास्टिक ही होते हैं। ऐसे प्लास्टिक को आसानी से नष्ट नहीं किया जा सकता और न ही इसे रिसाइकिल किया जा सकता है। इसलिए इसे सिंगल यूज प्लास्टिक कहते हैं। यह भी सच है कि आज की लाइफ स्टाइल के चलन में सबसे अधिक उपयोग सिंगल यूज प्लास्टिक का ही होता है।
दिन—प्रतिदिन बढ़ते प्लास्टिक के उत्पादन का करीब 40 फीसदी प्रयोग पैकेजिंग में हो रहा है, जिसे एक बार इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है। आज बाजार में छोटी—छोटी पैकिंग में मिलने वाली खाने की वस्तुओं का इस्तेमाल बहुत बड़े स्तर पर बढ़ गया है। वर्ष 1950 के बाद से उत्पादित सभी प्लास्टिक का 79 फीसदी पर्यावरण में अभी भी मौजूद है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार हर वर्ष करीब पांच ट्रिलियन प्लास्टिक की थैलियां दुनिया भर में इस्तेमाल होती है। हमारे दैनिक जीवन में प्रयोग ली जाने वाली सिंगल यूज प्लास्टिक से पर्यावरण, समुद्र, वायु और मिट्टी सब प्रदूषित हो रहे हैं, जो न केवल मानव के लिए बल्कि हर जीव के लिए हानिकारक है। हम इस प्लास्टिक पैकिंग वाली वस्तुओं का उपयोग करने के बाद इन्हें सड़कों के किनारे या कूड़े में डाल देते हैं जिन्हें गाय या और जानवर खाकर बीमार पड़ जाते हैं। कई बार यह प्लास्टिक इन जानवरों की मौत का कारण बन जाते हैं और उनके पेट से ढ़ेर सारा प्लास्टिक निकलता है। वहीं समुद्र में फैल रहे प्लास्टिक कचरे से समुद्र के जीव और मछलियां प्रभावित हो रहे हैं। एक शोध के अनुसार प्लास्टिक का करीब 70 प्रतिशत हिस्सा महासागरों में फैला हुआ है।
वहीं जॉर्जिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक दुनिया भर से हर साल समुद्रों में 41 लाख टन से 1.27 करोड़ टन के बीच प्लास्टिक आता है, जो वर्ष 2025 तक दोगुना होने की उम्मीद है।
बड़ी बात यह है कि बांग्लोदश ने वर्ष 2002 में अपने यहां प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया और वह ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश था। कई अफ्रीकी देशों ने अपेक्षाकृत कम अपशिष्ट-संग्रह और रीसाइक्लिंग दरों के लिए जगह बनाई है। अमेरिका ने अभी तक प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध नहीं लगाया है, हालांकि उसके कुछ राज्यों ने स्वंय ही थैलियों पर प्रतिबंध लगा रखा है।
भारतीय संसद ने 20 अगस्त को कहा कि वह परिसर में सिंगल यूज प्लास्टिक की वस्तुओं के उपयोग पर प्रतिबंध लगाएगी। 2 अक्टूबर से भारतीय रेलवे सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने जा रही है। यह प्रतिबंध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस के भाषण का प्रभाव ही है, जिसमें उन्होंने भारतीय नागरिकों से प्लास्टिक के उपयोग नहीं करने को कहा है। प्लास्टिक के खिलाफ भारत ने आंदोलन की शुरुआत कर दी है।
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