Even at the age of ninety-nine Khushwant Singh used to wake up at 4 in the morning and write.
वो अपने अंतिम दिनों में कहा करते थे कि जिस्म बूढ़ा हो चुका है, लेकिन आंखों में बदमाशी आज भी मौजूद हैं। ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ और ‘द कंपनी ऑफ वूमन’ जैसी बेस्टसेलर किताबें लिखने वाले देश के जाने-माने लेखक, वकील, राजनयिक, पत्रकार, राजनीतिज्ञ, कवि व स्तंभकार खुशवंत सिंह की आज 20 मार्च को 9वीं पुण्यतिथि है। इस शख्सियत की रचनाओं ने कितने ही लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने का काम किया। खुशवंत की रचनाएं आज भी हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा है। इस अवसर पर जानिए मशहूर लेखक खुशवंत सिंह के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
अपने जीवन में 80 से अधिक किताबें लिखने वाले बहुमुखी प्रतिभा के धनी खुशवंत सिंह का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत स्थित खुशाब जिले के हदाली कस्बे में 2 फरवरी, 1915 को हुआ था। वहीं, खुशवंत सिंह अपनी जिंदगी में तीन चीजों से बेहद लगाव रखते थे। सबसे पहले उन्हें दिल्ली से प्यार था, इसके बाद वो ‘लेखन’ और तीसरा उन्हें खूबसूरत महिलाओं से बेहद लगाव था। खुद को दिल्ली का सबसे यारबाज और दिलफेंक बूढ़ा कहने वाले खुशवंत सिंह ने आखिरी सांस तक लिखना जारी रखा। यहां तक कि वो 99 साल की उम्र में भी सुबह जल्दी 4 बजे उठकर लिखा करते थे।
अपनी किताब में खुशवंत ने अपनी जिंदगी के शुरुआती सालों के बारे में काफी विस्तार से जिक्र किया है। उन्होंने बताया कि वो अपनी जिंदगी के कई साल अय्याशी में डूबे रहे। उन्हें कभी भी भारतीय सिद्धांत रास नहीं आए। यहां तक कि वो महिलाओं को कभी सम्मान की नज़र से नहीं देख पाते थे।
अपने करियर की शुरुआत खुशवंत सिंह ने वकील के तौर पर कीं। वकालत करते-करते विदेश सेवा की तैयारियों में जुट गए। आखिरकार वर्ष 1947 में उनका चयन हो गया। स्वतंत्र भारत में सरकार के सूचना अधिकारी के पद पर उन्होंने कनाडा, टोरंटो में 4 साल तक काम किया। हालांकि, वो अपनी किताबों में आगे हमेशा कहते रहे कि उन्होंने अपनी जिंदगी के कई साल पढ़ाई और वकालत में बर्बाद किए जो कि उन्हें कभी पसंद नहीं थे।
घर में बचपन से राजनीतिक माहौल देखकर खुशवंत सिंह का नाता राजनीति से भी जुड़ा ही रहा। इनके चाचा सरदार उज्जवल सिंह पंजाब और तमिलनाडु के राज्यपाल पद पर रहे थे। आखिरकार खुशवंत सिंह भी वर्ष 1980 में राजनीति में उतरे और साल 1986 तक राज्यसभा के सदस्य के रूप में सेवाएं दीं।
वर्ष 1974 में भारत सरकार ने उनके काम के सम्मान में उन्हें ‘पद्म भूषण’ से नवाजा, जिसे उन्होंने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ‘ब्लू स्टॉर ऑपरेशन’ के विरोध में वापस लौटा दिया। वहीं, साल 2007 में उन्हें ‘पद्म विभूषण’ भी दिया गया। 20 मार्च, 2014 को खुशवंत सिंह ने नई दिल्ली में आखिरी सांस लीं।
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