तमिलनाडु विधानसभा सचिवालय में स्वीपर और सेनेटरी वर्कर्स की पोस्ट पर एम टेक, बी टेक और एमबीए वालों के अप्पलाई करने के बाद एक बार फिर इंजीनियरिंग की साख कटघरे में है। आखिर क्यों इंजीनियर चपरासी की नौकरी के लिए जा रहे हैं? क्या इंजीनियरिंग करने के बाद अच्छी जॉब नहीं मिलती है? कुछ इस तरह के सवालों का फिर चारों तरफ हो-हल्ला है।
लेकिन सिर्फ इंजीनियरिंग ही क्यों देखा जाए तो दिन-रात बढ़ती बेरोजगारी एक वायरस की तरह हमारे युवाओं में फैल रही है, फिर चाहे उनके पास कोई सी भी डिग्री हो या कितनी भी डिग्रियां हों, योग्यता और संतुष्टि के मुताबिक नौकरी है ही कहां? अब नौकरी औप योग्यता से इतर एक बड़ा सवाल इस पापी पेट का भी है जो किसी भी योग्यता को ताक पर रखने में जरा भी गुरेज नहीं करता। चलिए बिना इमोशनल हुए सीधा मुद्दे पर आते हैं।
तमिलनाडू राज्य विधानसभा सचिवालय में 14 पदों पर भर्तियां निकाली गई जिनमें सेनेटरी कर्मचारी स्वीपर के पद थे। इन पदों के लिए 4,000 लोगों ने अप्लाई किया। जब आवेदन करने वालों के क्वालिफिकेशन देखे गए तो उनमें सबसे ज्यादा इंजीनियर्स और एमबीए वाले निकले। इससे पहले महाराष्ट्र में भी चौथी पास उम्मीदवारों के लिए निकाली गई भर्तियों में 7000 हजार से ज्यादा ग्रेजुएट उम्मीदवारों ने अप्लाई किया था।
क्या आपने कभी जानने की कोशिश की हमारे देश में ग्रेजुएट युवाओं ऐसे हालात क्यों है ? आइए ऐसे कुछ कारणों पर गौर करते हैं जिनकी वजह से इंजीनियर्स कैसी भी नौकरी करने के लिए दौड़े जा रहे हैं।
सिलेबस का रेगुलर अपडेट ना हो पाना
हमारे इंजीनियरिंग कॉलेजों में युवाओं को जो सिखाया जाता है वो सिलेबस वास्तव में नौकरी हासिल करने में मदद नहीं कर पाता है। बाजार को क्या जरूरत है और सिलेबस में क्या सिखाया जाता है इसके बीच काफी अंतर है। हमारे सिस्टम में दुनिया भर में विज्ञान और प्रौद्योगिकी में तेजी होने के बावजूद सिलेबस को शायद ही कभी अपडेट किया गया है।
टीचरों की कमी
भारत में 33,023 से अधिक कॉलेज डिग्री कोर्स करवाते हैं। इतने कॉलेज होने के बावजूद भी पर्याप्त टीचर्स की कमी एक मुख्य कारण है। इंजीनियरिंग कॉलेजों में कुछ युवा पीएचडी पूरी करने के लिए या आगे किसी परीक्षा की तैयारी के लिए पढ़ाना शुरू कर देते हैं। वहीं ज्यादातर पढ़े-लिखे इंजीनियर जोश की वजह से नहीं बल्कि पेशे के तौर पर पढ़ाने से जुड़ते हैं, क्योंकि उन्हें रोजी-रोटी कमानी होती है।
एग्जाम सिस्टम
सेमेस्टर सिस्टम और हर महीने होने वाले टेस्ट अपनी भूमिकाओं पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं जिसकी वजह से छात्रों को निरंतर सीखने में कोई दिलचस्पी नहीं रही है वे केवल अच्छे ग्रेड चाहते हैं।
स्किल बेस्ड स्टडी की कमी
स्किल बेस्ड स्टडी हमारे कॉलेजों के एजुकेशन सिस्टम की सख्त जरूरत है। इंजीनियरिंग के छात्रों को उन समस्याओं के आधार पर स्किल सिखाने की जरूरत है जो वास्तविक दुनिया में उनको सामना करनी होती है।
जबकि देश में बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग के छात्र अपनी किताबें पढ़ते हैं, परीक्षा देते हैं और अपनी डिग्री हासिल करते हैं लेकिन जब वे वास्तविक दुनिया की समस्याओं का सामना करते हैं तभी उन्हें अपनी कमी का एहसास होता है।
वहीं हमारे देश की कंपनियां पिछले कुछ समय से एक तनावपूर्ण आर्थिक स्थिति से गुजर रही है जिससे कंपनियां ट्रेनिंग पर ज्यादा खर्च नहीं करना चाहती हैं और उन्हें सीधे स्किल वाले उम्मीदवार ही पसंद आते हैं।
कॉलेज का नाम
कंपनियां नई पोस्ट के लिए केवल टॉप कॉलेजों तक ही जाती है। इस प्रकार, ऐसी कितनी ही कॉलेज हैं जहां के छात्रों के रिज्यूमे को शॉर्टलिस्ट तक नहीं किया जाता है। यह न केवल समान अवसरों में कमी पैदा करता है, बल्कि क्वालिटी इंजीनियर्स की कमी का कारण भी बनता है।
अंग्रेजी स्किल में कमी
एक स्टडी में पाया गया कि करीब 73.63 प्रतिशत उम्मीदवारों को जॉब ना मिलने का कारण उनकी कमजोर इंग्लिश होना पाया गया। यहां तक कि आईटी क्षेत्र में उन इंजीनियर्स की आवश्यकता होती है जो अंग्रेजी की अच्छी नॉलेज रखते हों।
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