हलचल

ईवीएम के पैदा होने से लेकर विवादों में फंसने तक की पूरी कहानी पढ़ लो यहां

देश में चाहे किसी राज्य के विधानसभा चुनाव हों या लोकसभा चुनाव हर बार ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन)  का मुद्दा छाया ही रहता है। अब ऐसा लगने लग गया है मानो चोली-दामन का साथ वाली कहावत ईवीएम और विवाद पर सही बैठती है। एक बार फिर लोकसभा चुनाव के लिए होने वाली मतगणना से ठीक पहले ईवीएम विवाद ने तूल पकड़ लिया । पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों से ईवीएम को लेकर गड़बड़ी की खबरें आ रही है।

उत्तर प्रदेश और बिहार समेत देशभर से विपक्षी पार्टियों के नेता ईवीएम और वीवीपैट (वोटर-वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रायल) की अदला बदली के आरोप लगा रहे हैं। हालांकि,चुनाव आयोग के जवाब के बाद भी लोग कई जगह अभी भी मतगणना स्थल के बाहर धरना दे रहे हैं। ईवीएम में गड़बड़ी और हेरफेर का विवाद कोई नया नहीं है, भारतीय चुनावों में ईवीएम के आने से लेकर आज की तारीख तक हर बार ईवीएम विवादों से घिरी रही है।

कुछ समय पहले एक भारतीय साइबर विशेषज्ञ सैयद शुजा ने दावा किया था कि 2014 के लोकसभा चुनावों में ईवीएम को हैक किया गया था, जिसके कारण भाजपा ने भारी अंतर से जीत हासिल की। हालांकि, चुनाव आयोग ने इन सभी दावों को तुरंत खारिज कर दिया, वहीं शुजा भी अपने किसी दावे के लिए कोई सबूत नहीं दे पाया।

इसके अलावा शुजा ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा के अलावा, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, आप और कांग्रेस भी ईवीएम की धांधली में शामिल रही हैं।

एक ईवीएम मशीन अधिकतम 3,840 वोट रिकॉर्ड कर सकती है। देश की संसद में 543 लोकसभा क्षेत्र हैं। किसी भी पार्टी को साधारण बहुमत से जीतने के लिए 272 से अधिक सीटों की आवश्यकता होती है। 2014 के चुनावों में भाजपा ने 51.9 प्रतिशत सीटें जीतीं थी।

जुलाई 2014 में जारी एक रिसर्च पेपर जिसका शीर्षक था “India’s Electronic Voting Machines (EVMs): Social construction of a “frugal” innovation” में बताया गया कि भारत में ईवीएम एक शानदार मशीन है जो अन्य देशों की ईवीएम से काफी अलग हैं। कई देशों में ईवीएम बड़े, महंगे कंप्यूटर सिस्टम से जुड़ी होती है, जबकि भारतीय ईवीएम मशीन पूरी तरह से सरल और सक्षम है।

भारतीय  चुनाव आयोग ईवीएम को लेकर बहुत गर्व करता है और मशीनों को हैक ना किए जाने का दावा करता आया है, लेकिन कई राजनीतिक दल, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद ईवीएम की सुरक्षा को लेकर संदेह जताते रहे हैं।

वहीं 2009 के आम चुनावों के बाद राजनीतिक दलों और कई विशेषज्ञों ने यह दावा किया कि ईवीएम से छेड़छाड़ की जा सकती है जो गलत चुनाव परिणाम का कारण बन सकता है।

VeTA (सिटीज़न्स फॉर वेरिफ़िबिलिटी, ट्रांसपेरेंसी एंड इलेक्टेबिलिटी इन इलेक्शन) नामक एक पहल के सदस्यों ने संदेह जताया था कि जब लोग ईवीएम से छेड़छाड़ करने की कोशिश करते हैं तो उसमें “खराबी” आती है।

भारत में पहली बार ईवीएम का उपयोग कब किया गया ?

एमबी हनीफा ने 1980 में पहली भारतीय वोटिंग मशीन यानि ईवीएम का आविष्कार किया था जिसका इस्तेमाल 1981 में केरल के उत्तर परावुर विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव के दौरान 50 सीटों पर किया गया था। इसके बाद हनीफा के डिज़ाइन को तमिलनाडु में आयोजित एकप्रदर्शनी में लगाया गया। ईवीएम का अधिकारिक निर्माण 1989 में भारत इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स लिमिटेड और इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के सहयोग से भारत के चुनाव आयोग ने करवाया।

मशीनों का इंडस्ट्रियल डिजाइन आईआईटी बॉम्बे के इंडस्ट्रियल डिजाइन सेंटर ने तैयार किया। नवंबर 1998 में देश की 16 विधानसभा [मध्य प्रदेश (5), राजस्थान (5) और दिल्ली (6)] क्षेत्रों के चुनावों में पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल किया गया। इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव पूरी तरह से ईवीएम पर हुए थे।

मतदान के लिए इस तरह की मशीन का इस्तेमाल 1892 में ही हो जाता है, जब पेपर बैलट पर भरोसा करने के दशकों बाद न्यूयॉर्क में पहली बार “लीवर वोटिंग मशीन” का उपयोग किया गया था। अमेरिका में 1960 के दशक में पंच-कार्ड वोटिंग मशीनों को पेश किया गया था। लेकिन जब साल 2000 के राष्ट्रपति चुनावों में कुछ विवाद हुए तो अमेरिका ने 1975 में शुरू की गई ईवीएम की ओर ध्यान दिया।

वहीं ईवीएम तकनीक में एक नया अपडेट 2011 में  वीवीपीएटी के आने के साथ हुआ। जैसा कि नाम से पता चलता है कि मतों की ऑडिटिंग और वेरिफिकेशन करने के लिए वीवीपीएटी लाया गया।

क्या ईवीएम को किसी पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में पहले सेट किया जा सकता है ?

किसी विशेष उम्मीदवार को वोट डलवाने के लिए उम्मीदवार के ईवीएम सीरियल नंबर पता होना जरूरी है। अब बैलेट पेपर में यह सीरियल नंबर उम्मीदवार के दाखिल किए गए नामांकन पर निर्भर करता है जिसके बारे में पहले नहीं बताया जा सकता है।

ईवीएम और वीवीपीएटी के बारे में थोड़ा जान लो

ईवीएम में एक कंट्रोल यूनिट और एक बैलेटिंग यूनिट होती है, जहां वीवीपीएटी एक केबल द्वारा जुड़ी होती है। वीवीपीएटी ईवीएम में एक और यूनिट होती है जो उम्मीदवार का नाम, पार्टी का चिह्न और क्रम संख्या को कागज की एक छोटी पर्ची पर प्रिंट करती है जिसे मतदाता सात सैकेंड तक देख सकता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, मतदान अधिकारी के पास कंट्रोल यूनिट होती है, जबकि बैलेटिंग यूनिट और वीवीपीएटी को एक डिब्बे में रखा जाता है।

ईवीएम के आलोचकों ने 2014 के चुनावों के बाद बैलेट पेपर को वापस लाने की मांग की। बीजेपी ने भी मांग की थी कि सिस्टम को पेपर बैलेट में वापस कर देना चाहिए और कई राजनीतिक दलों ने भी इस मांग का समर्थन भी किया था। ईवीएम विवाद ने 2017 में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद वापसी की।

छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान भी कई आरोप सामने आए। विशेषज्ञों ने कहा कि पुराने बैलट पेपर सिस्टम की तुलना में ईवीएम के साथ बचत होती है। फिलहाल पूरे देश में ईवीएम से ही लोकसभा चुनाव हुए हैं जिनके नतीजे आने वाली 23 मई को जारी होंगे।

sweta pachori

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