‘चेचक’ यानि छोटी माता से कौन परिचित नहीं है, यह प्राचीनकाल से ही दुनियाभर में एक घातक रोग माना जाता था। कोई भी देश इससे अछूता नहीं था। दुनिया में कहीं भी इसका इलाज का तरीका नहीं था, भारत जैसे देश में इसे ‘शीतला माता’ का प्रकोप माना जाता था और बास्योड़ा के दिन शीतला माता की पूजा की जाती रही है। इस रोग के कारण अनेक लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त होते थे और यदि कोई बच भी जाता था तो उनका चेहरा विकृत हो जाता था। इस रोग के कारण कई लोगों की आंखे भी खराब हो जाया करती थी।
यदि एडवर्ड जेनर नहीं होते तो आज सम्पूर्ण दुनिया के 1.5 करोड़ लोग प्रतिवर्ष सिर्फ़ ‘चेचक’ के द्वारा काल के ग्रास बन रहे होते। ऐसे भयानक रोग से दुनियाभर को निजात दिलाने में अहम योगदान देने वाले अंग्रेजी चिकित्सक और वैज्ञानिक एडवर्ड जेनर की 17 मई को 274वीं जयंती है। इस अवसर पर जानिए उनके बारे में कुछ रोचक बातें…
वैज्ञानिक एडवर्ड जेनर (Edward Jenner) का जन्म 17 मई, 1749 को इंग्लैंड के ग्लॉस्टरशायर के बर्कले नगर में हुआ था। उनके पिता रेवरेंड स्टीफन जेनर थे, जो बर्कले के विक्टर थे। इस कारण से जेनर की बुनियादी शिक्षा अच्छी तरह से सम्पन्न हुई। जेनर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ब्रिस्टल के पास सडबरी नामक एक छोटे से गांव में ली थी। उन्होंने बचपन से ही प्रकृति और चिकित्सा में रूचि होने के कारण लंदन के सर्जन जॉन हंटर की देखरेख में 21 वर्ष की आयु तक चिकित्सा का अध्ययन किया।
एडवर्ड जेनर ने चेचक के टीके का आविष्कार किया। उन्होंने इसके लिए इंग्लैंड में प्रचलित एक मान्यता को आधार बनाया था। इसके अनुसार जिस व्यक्ति को काउपॉक्स हो गया है, उसे चेचक नहीं हो सकता है। इसी के आधार पर जेनर चेचक ने टीके का आविष्कार किया। शीतला-काउ बीमारी का असर गायों के थनों पर पड़ता है और जो भी इस रोग से पीड़ित गाय का दूध दुहता है उसे यह बीमारी हो जाती है। इस रोग से छोटे-छोटे घाव-फुंसियां हाथों में हो जाती है, लेकिन रोगी को कोई विशेष कष्ट नहीं होता। जेनर सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल, लंदन में अपना परीक्षण पूरा करने के बाद अपने गांव आ गए और यहीं पर अपनी प्रैक्टिस शुरू कर दी।
उन्होंने कई वर्षों बाद जब चेचक की भयानकता का अनुभव किया। तभी एडवर्ड जेनर ने शीतला-काउ बीमारी का कथन सुना। इसके बाद जेनर ने इस कथन का परीक्षण करने का निश्चय किया। उन्होंने एक गौ-शीतला से पीड़ित व्यक्ति के घाव से कुछ द्रव लिया और उसे एक पांच साल के जेंमस फिप्स नामक बच्चे को इंजेक्शन लगा दिया। बच्चे को गौ-शीतला का हल्का-सा प्रकोप हो गया। उसे 7 सप्ताह बाद जेनर ने एक व्यक्ति के घाव से जिसे चेचक निकली हुई थी, कुछ पस लेकर उस लड़के को इंजेक्शन लगा दिया। उस लड़के को फिर चेचक निकलने की कोई शिकायत न हुई। इस तरह चेचक के टीके का आविष्कार हुआ था। इसके बाद लोगों को इस रोग से मुक्ति मिली।
वर्ष 1803 में चेचक के टीके के प्रसार के लिए रॉयल जेनेरियन संस्था स्थापित हुई। एडवर्ड जेनर के उल्लेखनीय योगदान कार्यों के लिए उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने इन्हें ‘एम.डी.’ की सम्मानित उपाधि से विभूषित किया। जेनर का वर्ष 1822 में ‘कुछ रोगों में कृत्रिम विस्फोटन का प्रभाव’ पर निबंध प्रकाशित हुआ और अगले वर्ष उन्होंने रॉयल सोसाइटी में ‘पक्षी प्रव्रजन’ पर निबंध लिखा था। महान वैज्ञानिक एडवर्ड जेनर का 26 जनवरी, 1823 को उनकी जन्मस्थली बर्कले में देहावसान हो गया। इस तरह उन्होंने अपने शहर में ही आखिरी सांस ली।
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