प्रधानमंत्री मोदी का एक वीडियो धल्लड़े से वायरल हो रहा है। देहरादून में युवा छात्रों के साथ एक लाइव कार्यक्रम में मोदी मौजूद थे जहां एक छात्रा मोदी को लर्निंग डिसऑर्डर के बारे में कुछ बता रही थी।
वो स्टूडेंट मोदी से डिस्लेक्सिया से जूझ रहे बच्चों में शुरुआती स्टेज पर इसकी पहचान के लिए अपनी टीम का आइडिया शेयर कर रही थी इसी पर पीएम मोदी ने इस बात को राजनैतिक तंज में बदल दिया।
इस कार्यक्रम में खड़गपुर में पढ़ने वाली उत्तराखंड की एक छात्रा ने कहा कि हमारा आइडिया डिस्लेक्सिक लोगों पर आधारित है।
डिस्लेक्सिक बच्चों की सीखने और लिखने की रफ्तार धीमी होती है, जबकि इंटेलिजेंस और क्रियटिविटी अच्छी होती है, जैसा कि तारे जमीन पर फिल्म का किरदार…’
बात पूरी होती कि इससे पहले ही पीएम बीच में ही बोल पड़े और कहा कि क्या 40-45 साल के बच्चे को भी ये योजना काम आएगी? इसके बाद ऑडिटोरियम हंसी में बदल गया। मजाक खत्म होता कि नरेन्द्र मोदी ने एक और तंज कस दिया और कहा कि तब ऐसे बच्चों की मां बहुत खुश हो जाएगी।
साफ पता चलता है कि उनका इशारा राहुल गांधी और उनकी माता सोनिया गांधी की ओर था। बहरहाल हम यहां इसके बारे में बात नहीं करने वाले हैं। मुद्दे और गंभीरता की बात यही है कि लोगों को इस बीमारी डिस्लेक्सिया के बारे में पता होना चाहिए। ये बीमारी कोई मजाक नहीं है।
यह एक दिमाग की एक कंडीशन होती है जिसमें किसी व्यक्ति को पढ़ने या किसी भी शब्द को पढ़ पाने में बहुत ही मुश्किल होती है जैसा कि तारे जमीन पर फिल्म में ईशान अवस्थी को होता था। इस कंडीशन में बच्चे अपने ब्रेन में जानकारी को प्रोसेस नहीं कर पाते हैं।
एक उदहारण से समझते है। इस विकार से पीड़ित बच्चों को अक्सर b और d में फर्क करने में मुश्किल होती है। फिल्म तारे जमीन पर में भी इसके बारे में बताया गया था। बार बार बताने के बाद भी स्पेलिंग गलत बोलना या बोल नहीं पाना इसी के लक्षण हैं।
ऐसे कई तरह के लेटर्स में वे कन्फ्यूज हो जाते हैं। ऐसे बच्चे मानसिक तौर पर ज्यादा बोझ झेलते हैं। आज के दौर में जहां मां बाप अपने बच्चों की पढ़ाई पर ज्यादा जोर देते हैं ऐसे में ऐसी बीमारी से पीड़ित बच्चे ज्यादा परेशानी का सामना करते हैं। ऐसे में बच्चों को मां बाप और टीचर्स से ज्यादा अटेंशन की जरूरत होती है। ताकि वे अच्छे तरीके से समझ सकें।
ऐसे बच्चे आमतौर पर बोलने में कमजोर होते हैं। किसी चीज को बोलने पर जो इमेज बनती है वो इमेज इन बच्चों पर बन नहीं पाती और वे बोलने में काफी बार रूकते हैं। इस बीमारी के लिए हमेशा प्रोफेशनल्स का ही सहारा लेने की जरूरत है। ये भी चीज है कि दो डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चों में समान लक्षण हों ऐसा जरूरी नहीं होता है।
इस बीमारी से जूझ रहे बच्चों को क्लासरूम के अलावा अपने आस पास के वातावरण से भी फर्क पड़ता है। यह ध्यान देने की जरूरत है कि ये बीमारी एडवांस लेवल पर ना पहुंची हो। टीचर और माता पिता को बच्चों को अलग से टाइम देने की जरूरत होती है। बच्चों को एक्स्ट्रा प्यार करें और उन्हें बेहतर फील करवाएं और लिखने और बोलने की प्रेक्टिस करवाते रहें।
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