Education of children orphaned by Corona should not be interrupted: Supreme Court.
देश की सर्वोच्च अदालत ने राज्य सरकारों से कहा है कि वह इस बात को सुनिश्चित करे कि कोरोना काल में अनाथ हुए बच्चों की पढ़ाई किसी भी तरह से बाधित न हो। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए सुझाव दिया कि या तो स्कूल फीस माफ करे या राज्य सरकार अनाथ बच्चों का खर्चा वहन करे। शीर्ष अदालत ने राज्यों की चाइल्ड वेलफेयर कमेटी और जिला शिक्षा अधिकारी से कहा है कि वह इस मामले में स्कूल प्रशासन से चर्चा करें और यह सुनिश्चित कराएं कि निजी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों की पढ़ाई मौजूदा साल में किसी भी तरह बाधित न हो।
जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूरे देश के जिलाधिकारियों को कहा है कि कोरोना काल में अनाथ हुए बच्चों के लिए आवेदन की प्रक्रिया पूरी करे, ताकि पीएम केयर्स फंड से ऐसे बच्चों को लाभ मिल सके। वहीं, केंद्र सरकार ने सर्वोच्च अदालत को बताया कि पीएम केयर्स फंड से बच्चों को लाभ देने के लिए अलग से पोर्टल बनाया गया है और इसके तहत 21 अगस्त तक 2600 बच्चे रजिस्टर्ड हुए हैं। इसमें अबतक 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा अनाथ बच्चों का पंजीकरण किया गया है। इनमें से 418 आवेदनों को जिलाधिकारियों द्वारा मंजूर किया गया है।
केंद्र सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एश्वर्य भाटी ने कोर्ट को बताया कि प्रधानमंत्री केयर्स फंड में 18 साल तक बच्चों को शिक्षा दिलाने की व्यवस्था की गई है। एएसजी भाटी ने कहा कि पीएम केयर्स स्कीम के तहत कोविड-19 वायरस से अनाथ हुए बच्चों को 23 वर्ष पूरे होने पर 10 लाख रुपये देने का प्रावधान किया है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने हाल में सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी दी थी कि एक अप्रैल, 2020 और 23 अगस्त, 2021 के बीच देश में कोरोना महामारी या अन्य कारणों से 1,01,032 बच्चे बेसहारा हो गए। इनमें से 8,161 बच्चे अनाथ हो गए, 396 बच्चों को छोड़ दिया गया और 92,475 ने अपने माता-पिता में से किसी एक को खोया। कई बाल सेवी संस्थानों के अनुमान के अनुसार इस अवधि में अनाथ हुए बच्चों की संख्या सरकार के आंकड़ों से काफी अधिक हो सकती है।
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