उत्तर भारत की राजनीति में डॉ. राम मनोहर लोहिया का विशेष स्थान रहा है। डॉ. लोहिया ने सिर्फ चार साल में भारतीय संसद को अपने मौलिक राजनीतिक विचारों से पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया था। इन्होंने भारतीय आज़ादी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाईं। भारत में ब्रिटिश राज के अंतिम दौर में इन्होंने कांग्रेस रेडिया के लिए गुप्त रूप से वर्ष 1942 तक विभिन्न जगहों पर काम किया। डॉ. राममनोहर लोहिया का योगदान इतिहास में भुलाया नहीं जा सकता। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर चिंतक व समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया की 23 मार्च को की 113वीं जयंती है। इनका जन्म वर्ष 1910 में उत्तर प्रदेश में अम्बेडकर नगर जिले के अकबरपुर में हुआ था। लोहिया साहब एक जोशीले नेता थे। इस ख़ास अवसर पर जानिए लोहिया के जीवन के बारे में कुछ अनसुने किस्से…
डॉ. राममनोहर लोहिया ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को प्रतिदिन 25 हज़ार रुपये खर्च करने वाला बताया था। उन्होंने इंदिरा गांधी को ‘गूंगी गुड़िया’ कहने का साहस किया था। उस जमाने में उनका कहना था कि महिलाओं को सती-सीता नहीं होना चाहिए, द्रौपदी बनना चाहिए। लोहिया ऐसे पहले राजनेता रहे, जिन्होंने कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान करते हुए कहा था ‘जिंदा कौमें पांच साल तक इंतज़ार नहीं करतीं।’ उत्तर भारत में आज भी आप राजनीतिक रुझान रखने वाले किसी युवा से बात करें तो वो इस नारे का जिक्र ज़रूर करेगा- ‘जब जब लोहिया बोलता है, दिल्ली का तख़्ता डोलता है।’
जब देश जवाहर लाल नेहरू को अपना सबसे बड़ा नेता मान रहा था, ये राममनोहर लोहिया ही थे जिन्होंने नेहरू को सवालों से घेरना शुरू किया था। नेहरू से उनकी तल्खी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक बार ये भी कहा था कि बीमार देश के बीमार प्रधानमंत्री को इस्तीफ़ा दे देना चाहिए। दिलचस्प बात ये है कि देश की एक कद्दावर शख्सियत होने के बावजूद डॉ. लोहिया के सामाजिक-राजनीतिक जीवन पर कभी कोई आंच नहीं आईं। उनका प्रेमी के रूप में जीवन भी निजी ही रहा।
गोवा में 1961 तक पुर्तग़ालियों का ही शासन था। गोवा में राष्ट्रवाद की शुरुआत तो ‘गोवा कांग्रेस समिति’ के अध्यक्ष डॉ. टी. बी. कुन्हा ने की, लेकिन इसकी स्वतंत्रता की असल नींव प्रमुख भारतीय समाजवादी डॉ. राम मनोहर लोहिया ने रखी। गोवा की आजादी में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका स्वतंत्रता सेनानी राममनोहर लोहिया की ही थी, क्योंकि उन्होंने ही लोगों में आजादी के प्रति जोश भरा और पुर्तगालियों के विरूद्ध एकजुट होने के लिए लोगों का नेतृत्व किया। उन्होंने नागरिक अधिकारों के हनन के विरोध में सभा करने की चेतावनी दी, जिसके चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा, लेकिन उनके नेतृत्व में लोगों में आजादी के प्रति जोश जाग उठा और विरोध तेज होने लगा था। 12 अक्टूबर, 1967 को डॉ. राम मनोहर लोहिया का निधन हो गया।
Read: वकालत छोड़कर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे गणेश वासुदेव मावलंकर
रोहित शर्मा ने सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ फील्डिंग की सजावट की और कप्तान हार्दिक पांड्या…
अग्निवीर स्कीम को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने…
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) रोक लगाने से इनकार कर दिया…
चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बड़ी भविष्यवाणी की है। प्रशांत…
आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंफोसिस के चेयरमैन नारायण मूर्ति…
कोलकाता हाई के पूर्व जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय भाजपा में शामिल हो गए है। उन्होंने हाल…
Leave a Comment