होली यूं तो रंगों का त्योहार है ही, पर इसे भारत में अलग-अलग अंदाज में मनाया जाता है। जैसे – लठमार होली, कोड़ा मार होली और भी कई तरह से लोग होली मनाते हैं। होली पर लोग एक-दूसरे से मिलते हैं और अनेक रंगों व गुलाल से एक-दूसरे को रंग लेते हैं।
रंगों से होली तो आपने खेली भी है और देखी भी है पर क्या ऐसा भी देखा है जहां रंगों से होली खेलना मना है। हमारे देश के कई इलाकों में बिना रंगों के आज भी होली खेली जाती है और यदि रंगों का कोई गलती से इस्तेमाल करता है तो वहां के लोग उसे अनोखी सजा देते हैं।
झारखंड राज्य के जमशेदपुर के संथाल अदिवासी बहुल इलाकों में होली बाहा पर्व के साथ ही शुरू हो जाती है। इस बार भी होली रविवार रात से ही बिना रंगों के पानी खेली जा रही है जो सोमवार सुबह तक जारी रहती है। इस होली के पर्व पर सभी उम्र के लोग सारी रात पानी की होली खेल रहे हैं।
ये आदिवासी प्रकृति पूजक हैं जो आज भी अपनी पंरपराओं को बनाए रखे हैं। वे ईको फ्रेंडली होली मनाते हैं। इसमें रंगों का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं किया जाता है।
हर साल बाहा पर्व के अवसर पर पानी की होली का आयोजन होता है। बाहा पर्व के दूसरे दिन एक-दूसरे पर पानी डाल संथाल आदिवासी खुशियां मनाते हैं। ये सारी रात नाचते-गाते हैं और सुबह तक एक-दूसरे पर पानी डालते हुए होली खेलते हैं। इस समय वे आदविासी पहनावा पहनकर, ढोल-नगाड़ों के साथ गांव में जागते रहते हैं।
इस दौरान पति-पत्नी के अलावा और किसी के साथ रंग लगाने की अनुमति नहीं है। ऐसा करना सामाजिक नियमों के विपरीत है और दंडनीय अपराध है।
अगर भूलवश कोई पुरुष किसी लड़की को लाल रंग से रंग देता है और आदिवासी लोगों ने ऐसा करते उन्हें देख लिया तो रंग डालने वाले पुरुष को सजा देने का प्रावधान है।
ऐसी मान्यता है कि संथाल आदिवासियों में लड़की पर रंग डालना जबरन उसकी मांग भरने के समान होता है। इसके बाद पंचों की बैठक होती है और लड़की से पूछा जाता है कि क्या वह उस पुरुष को अपना पति रूप में स्वीकार करने को तैयार है। अगर लड़की हां कर देती है तो रंग डालने वाले पुरुष से उसकी शादी कर दी जाती है, फिर चाहे उस व्यक्ति को वह लड़की पसंद है या नहीं। यदि लड़की उस व्यक्ति से शादी के लिए मना कर दे तो उस रंग डालने वाले व्यक्ति को पूरे गांव को भोज और आर्थिक दंड (संथाल में डांडोम कहते है) देना ही पड़ता है। साथ ही लड़की को उसकी मांग के अनुसार हर्जाना भी देना पड़ता है।
आज भी इन आदिवासियों में अपनी प्रथा को लेकर वही दीवानगी है जो पूर्व काल में थी यानि पानी से होली खेलना और रंगों से दूर रहना। यदि कोई रंगों का इस्तेमाल करता है तो उन्हें विवाह के बंधन में बंधना पड़ता है।
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