भारत वर्ष में दिवाली का पर्व सदियों से मनाया जा रहा है। इस पर्व को मानने के लिए भारतीय लोग करीब एक महीने पहले से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं। जिसके अंतर्गत लोग घरों की साफ-सफाई करते हैं और नए कपड़े खरीदते हैं। दिवाली के दिन लोग पटाखे भी खूब चलाते हैं। खुशी के इस त्योहार पर पटाखे चलाते समय हमें अपनी सुरक्षा का भी ख्याल रखना चाहिए।
दिवाली के दिन छुड़ाए जाने वाले पटाखों से हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है। यह न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि हमारी सेहत के लिए भी हानिकारक होता है। अत: हमें सीमित और कम हानिकारक ग्रीन पटाखे ही चलाने चाहिए। पटाखों से ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण और वायु प्रदूषण होता है। पटाखों की तेज आवाज से कई बार लोगों के कान के पर्दों पर बुरा असर पड़ता है।
दिवाली पर पटाखों के चलाने के बाद उसमें से रंग-बिरंगी रोशनी बिखर जाती है, जो हमें बेहद खुशी देती है। पर क्या आप जानते हैं इन पटाखों में इस्तेमाल होने वाले रसायन हमारी सेहत के लिए कितने घातक होते हैं?
पटाखों में कैडमियम, सीसा, कॉपर, जिंक, आर्सेनिक, पारा एवं क्रोमियम जैसे जहरीले रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। ये रसायन पर्यावरण के साथ ही हमारी सेहत के लिए भी हानिकारक हैं। इनसे होने वाला प्रदूषण और शोर पशु-पक्षियों पर भी बुरा असर डालते हैं। कॉपर हमारे श्वसन तंत्र को, कैडमियम गुर्दे को और सीसी तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। आर्सेनिक एवं पारा कैंसर जैसी घातक बीमारियों के लिए जिम्मेदार है।
दिवाली के दिन होने वाली आतिशबाजी से निकलने वाले धुएं में हानिकारक रसायन होते हैं जो श्वासनली को प्रभावित करती है। इससे दमा/ अस्थमा के रोगियों को विशेषकर दूर रहना चाहिए।
इनमें इस्तेमाल होने वाले रसायन और उसके धमाकों से आंखों में खुजली, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, हृदयाघात, कान के पर्दे पर असर या बहरापन, सांस लेने में दिक्कत, ब्लड प्रेशर बढ़ना हो सकता है।
यही नहीं पटाखे अगर सावधानीपूर्वक नहीं छुड़ाते हैं तो कई बार आग लगने से जन-माल की हानि होती है।
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