जैसा आप सभी ने सुना ही था कि सोमवार को उर्जित पटेल ने RBI गर्वनर के अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उर्जित पटेल ने इसके पीछे कुछ निजी कारणों का हवाला दिया है। लेकिन इसको लेकर कई अन्य कयास मीडिया और जानकारों द्वारा लगाए जा रहे हैं।
आपको बता दें कि उर्जित पटेल का कार्यकाल 2019 तक का था। उन्होंने नौ महीने पहले ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया। और ये तब हुआ है जब संसद का सत्र भी शुरू हो रहा है और साथ ही विधानसभा चुनावों के रिजल्ट भी एक दिन बाद जारी होने वाले हैं।
ऐसे में विपक्ष संसद में सत्र के दौरान इस मुद्दे पर भी सरकार को घेरने की कोशिश करेगा। लेकिन इस सब के बीच हम आपको बताने जा रहे हैं कि मोदी सरकार और आरबीआई के बीच तनातनी का माहौल क्यों चल रहा है।
इसकी शुरूआत तब हुई जब विरल आचार्य ने मुंबई में देश के कई बड़े उद्योगपतियों के सामने कहा था कि केंद्रीय बैंक की आज़ादी को कमज़ोर करना त्रासदी जैसा हो सकता है जो सरकार केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता की अनदेखी करती हैं उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। आपको बता दें कि विरल आचार्य RBI में डिप्टी गवर्नर के पद पर हैं।
कई लोगों का मानना है कि मोदी सरकार रिजर्व बैंक के खजाने से एक बड़ी रकम चाहती थी। जिसके बाद पार्टी को सामने आकर कहना पड़ा था कि हमें अभी किसी तरह की रकम की जरूरत नहीं है।
रिजर्व बैंक पर मोदी सरकार द्वारा कई बार आरोप लगाए गए। पीएनबी घोटाले में भी सरकार ने RBI को सवालों के घेरे में रखा। वित्त मंत्री अरूण जेटली का कहना था कि रिजर्व बैंक ने कर्ज बांटने के काम में लापरवाही बरती। सरकार ने रिजर्व बैंक पर आरोप लगाए कि उन्हीं के ठीक से काम न करने के कारण एनपीए की समस्या पैदा हुई।
बैंकिंग सेक्टर में काम करने और उसमें सुधार करने के लिए रिजर्व बैंक काम कर रहा था और कई तरह के नियम भी बनाए गए। इसका असर यह हुआ कि ग़ैर बैंकिंग फ़ाइनेंशियल कंपनियों पर कंट्रोल कसा गया। इस पर सरकार को यह डर सता रहा था कि कर्ज देने में इससे कई तरह की दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं।
इसके अलावा जो मुद्दा दोनों के बीच रहा वो है आरबीआई का सेक्शन 7 इसमें कहा गया था कि केन्द्र सरकार रिजर्व बैंक को निर्देश दे सकती है। जिस पर सरकार ने कहा कि अभी तक उन्होंने इसका इस्तेमाल नहीं किया है।
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