सीएए पर जिस तरह देश में आंदोलन हो रहे हैं, उससे लोगों की मानसिकता पता चलती है। सबसे ज्यादा राजनीतिक दलों की स्वार्थी महत्त्वाकांक्षा सामने आ रही है। यदि कोई कहे कि सीएए किसी एक धर्म के लोगों के साथ भेदभाव है, तो फिर दूसरे धर्म के लोगों और राजनीतिक पार्टियों का उनके साथ खड़ा होना अपनी महत्त्वाकांक्षा को पूरी करना मात्र है। जब केन्द्र सरकार ने यह विधेयक संसद के दोनों सदनों में पारित करवाया और कहा गया कि यह देश के मुस्लमानों के लिए नहीं, बल्कि उनके लिए हैं जो देश में घुसपैठिए हैं। यह कानून अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करता है।
दुनिया में करीब 7 करोड़ों लोग शरणार्थी हैं। क्यों बनने के लिए मजबूर है कई देशों के लोग शरणार्थी? दुनिया में बढ़ती जनसंख्या शरणार्थियों का एक बड़ा कारण भी है, क्योंकि जिन देशों का क्षेत्रफल कम है और वहां की सरकार जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं कर पाती है तो लोग समुदायों में बंटकर दूसरे समुदाय के लोगों को जहां छोड़ने के लिए मजबूर कर देते हैं।
ऐसे समुदाय जब जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं करेंगे तो अपने ही समुदाय के लोगों के लिए भी घातक बन सकते हैं। जिसका उदाहरण कई देश हैं। कई देश धार्मिक मान्यताओं के चलते जनसंख्या पर नियंत्रण लगा पाना बेहद कठिन है। सबको मालूम है धरती का क्षेत्रफल और संसाधन सीमित है। वैसे भी आज तक के इतिहास में धर्म ने दुनिया के लिए बड़ी समस्या पैदा की है। भारत में जहां बहुसंख्यक समुदाय जनसंख्या पर नियंत्रण चाहता है वहीं अल्पसंख्यक इसे अपनाने से इंकार करते हैं जोकि एक देश के विकास में बाधा बनी हुई है। कहीं न कहीं यह डर सता रहा है लोगों को। जब देश हमारा है और सारे समुदाय एक—दूसरे के धर्मों का सम्मान और सौहार्द्र की मिसाल पेश करते रहे हैं तो हमें डरने की जरूरत ही नहीं है।
किसी भी देश की सरकार अपने जनता के विकास के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चलाती है। यही नहीं वह हर समुदाय जाति का ख्याल रखती है और उनके लिए अलग से योजनाएं चलाती है। कई लोग पहले धर्म की आड़ में अपना वर्चस्व स्थापित करते हैं और फिर बाद में राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करते हैं। जिसके हाल के दिनों में कई उदाहरण सामने आए हैं। आम जनता को चाहिए कि वह इन लोगों के बहकावे में न आए और अपना विकास खुद करें, क्योंकि दुनिया का कोई धर्म किसी भी व्यक्ति को खाने को नहीं देता, केवल देश की सरकारें ही आज के समय में लोगों के लिए जनकल्याणकारी योजनाएं चलाकर विकास कार्य करती है। ऐसे में सरकार के प्रति अपना विश्वास प्रकट करना चाहिए।
भारत की जनता यह जान लें कि अब राजनीति दल अपनी महत्तवाकांक्षा पूरी करने के लिए धर्म की आढ़ ले रहे हैं। यदि यकीन नहीं है तो महाराष्ट्र में बनी नई सरकार इसका उदाहरण है। जो पहले कभी एक धर्म का पूरी तरह समर्थन करती थी और सत्ता के लोभ में, उसका साथ छोड़ दिया। आज जनता को चाहिए कि अपने विवेक से निर्णय लें और राजनीतिक दलों के पिछलग्गू न बने। धर्म विकास नहीं करता, सरकार ही मानव का विकास करती है, क्योंकि आज का दौर विज्ञान का है।
सीएए के खिलाफ देश के कई राज्य अपनी विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित कर चुके हैं और उन्होंने दिखा दिया कि वह दूसरी विचारधारा के बिल्कुल खिलाफ है। ये लोकतंत्र है और पक्ष—विपक्ष का बड़ा टकराव देखने को मिल रहा है। जो लोकतांत्रिक देश के लिए किसी भी मायने में सही नहीं है।
आज की परिस्थितियों को देखते हुए तो नहीं लग रहा कि भारत में बोलने की आजादी नहीं है। क्योंकि यहां का मीडिया और बौद्धिक वर्ग हमारे पीएम को हिटलर तक कह रहे हैं। इसके प्रतिउत्तर में पीएम ने यहां तक कह दिया कि आप मेरा पुतला जलाएं, लेकिन देश की सम्पत्ति को न जलाएं। लोगों के दिल में जो आ रहा है वहीं कह रहे हैं।
सत्ता पक्ष के लोग भी खुद को और अपनी पार्टी को नीचा दिखाने का काम कर रहे हैं। वह भी उन लोगों के प्रतिउत्तर में अपनी मानसिकता को जाहिर कर रहे हैं जोकि गलत है। विपक्ष भी उकसाने में पूरी तरह माहिर है। वे यह नहीं सोचते हैं कि जनता उनके बारे में सब जानती है। ऐसे में देश का माहौल शांतिमय बनाने के लिए सरकार ही नहीं, बल्कि विपक्ष की भूमिका बेहद जरूरी है। अब देखना है कि देश में धर्म की राजनीति है या विकास की राजनीति।
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